लोकसभा और राज्यसभा में बुधवार को चुनाव सुधारों और मतदाता सूची के एसआईआर, चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका, चुनाव आयुक्तों की चयन प्रक्रिया से सीजेआई को हटाने, वोट चोरी, बीएलओ मौतें आदि मुद्दों पर बहस हुई. बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के बीच तीखी नोकझोंक हुई, जिसके बाद विपक्ष के सदस्य सदन से वॉकआउट कर गए.

नई दिल्ली: लोकसभा में बुधवार को चुनाव सुधारों और मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर हुई बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह और राहुल गांधी के बीच तीखी नोकझोंक हुई, जिसके बाद विपक्ष के सदस्य सदन से वॉकआउट कर गए.
द टेलीग्राफ के अनुसार, संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि विपक्ष में किसी मुद्दे पर चर्चा करने का धैर्य नहीं है और वह सिर्फ संसद का समय बर्बाद करना चाहता है. इसी बीच शाह और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मतदाता घोटाले और चुनाव प्रक्रिया पर एक-दूसरे को चुनौती दी.
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा हरियाणा के एक ही घर में 501 मतदाता पंजीकृत होने के आरोप पर जवाब देते हुए शाह ने कहा कि चुनाव आयोग इस मामले में पहले ही सफाई दे चुका है.
उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी कह रहे हैं कि हरियाणा के एक ही घर में 501 वोट हैं. चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि हाउस नंबर 265 कोई छोटा घर नहीं है. यह एक एकड़ में फैला हुआ परिसर है, जिसमें तीन पीढ़ियां रहती हैं. उस घर का नंबर नहीं है. न ये फर्जी घर हैं, न ही फर्जी मतदाता.’
शाह ने यह भी कहा कि घरों की नंबरिंग व्यवस्था हरियाणा में कांग्रेस सरकार के समय से ही चल रही है. गृह मंत्री ने चुनाव आयोग के संवैधानिक अधिकार पर ज़ोर देते हुए कहा कि एसआईआर कवायद पर बहस करने के लिए संसद सही मंच नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘एसआईआर पर बहस संसद में नहीं हो सकती क्योंकि यह चुनाव आयोग का विषय है. चुनाव आयोग सरकार के साथ मिलकर काम नहीं करता है.’
चुनाव आयोग की निष्पक्ष भूमिका पर सवाल, सीजेआई को प्रक्रिया से हटाने पर कड़ी आलोचना
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए पूछा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति प्रक्रिया से भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को क्यों हटा दिया गया.
उन्होंने सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट पीठ के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि जब तक संसद कोई कानून न बनाए, तब तक नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री, सीजेआई और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष शामिल होने चाहिए. वेणुगोपाल ने कहा कि शीर्ष अदालत की मंशा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना था.
उन्होंने कहा, ‘आप सीजेआई को उस समिति में नहीं चाहते थे, इसलिए आपने उन्हें हटाने के लिए कानून बना दिया. निष्पक्ष चुनावी अम्पायर की धारणा अब खत्म हो चुकी है और राजनीतिक दबाव में चुनाव आयोग पक्षपाती बन गया है. वोट देना सरकार की दया नहीं, लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है.’
कांग्रेस नेता ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि बिहार चुनाव के दौरान राज्य सरकार द्वारा की गई कैश ट्रांसफर को रोकने आयोग नाकाम रहा. उन्होंने पूछा, ‘ईसीआई सत्ता पक्ष की एजेंट की तरह व्यवहार क्यों कर रहा है?’
उन्होंने कहा, ‘वोट चोरी राष्ट्र के खिलाफ अपराध है. इसे रोकने के बजाय हमारा चुनाव आयोग इसे सक्षम बना रहा है.’
नियुक्ति प्रक्रिया पर विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार पर परमाणु बटन की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है, ‘तो एक अच्छे सीईसी या ईसी के चयन पर क्यों नहीं भरोसा किया जा सकता?’
उन्होंने मतपत्रों पर लौटने की मांग को कड़े शब्दों में खारिज करते हुए कहा कि यह ‘बूथ कैप्चरिंग के दिनों में वापस लौटने जैसा होगा.’ विपक्षी नेताओं, जिनमें समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव भी शामिल थीं, ने मतपत्रों की वापसी और एसआईआर को रोकने की मांग की थी.
वोट चोरी को लेकर तीखी बहस
द टेलीग्राफ के अनुसार, तनाव उस समय बढ़ गया जब राहुल गांधी ने अपनी हाल की प्रेस वार्ताओं पर बहस की चुनौती दी. उन्होंने कहा, ‘अमित शाह, मैं आपको चुनौती देता हूं कि मेरी तीन प्रेस कॉन्फ़्रेंसों पर बहस कीजिए.’
उन्होंने यह भी दावा किया कि हरियाणा में 19 लाख फर्जी मतदाता हैं और सरकार को मतदाता सूची में छेड़छाड़ के उनके आरोपों का जवाब देना चाहिए.
वहीं, शाह ने कहा कि संसद किसी एक नेता की इच्छा पर नहीं चल सकती. उन्होंने कहा, ‘विपक्ष के नेता कहते हैं कि पहले मेरे सवालों का जवाब दो. संसद आपकी इच्छाओं से नहीं चलेगी. मैं तय करूंगा कि क्या बोलना है. संसद ऐसे नहीं चल सकती. उन्हें मेरे जवाब सुनने का धैर्य रखना चाहिए.’
राहुल गांधी ने शाह के उत्तर को ‘डर कर दिया गया जवाब’ बताया. उन्होंने कहा, ‘यह डरा हुआ जवाब था, असली जवाब नहीं.’ इस पर शाह ने कहा कि वे किसी उकसावे में नहीं आएंगे: ‘मैं अपने विषय पर ही बोलूंगा, उनके उकसावे में नहीं आऊंगा.’
उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष जनता में यह भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहा है कि सरकार चर्चा से बच रही है.
अपने संबोधन में शाह ने ‘वोट चोरी’ के विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि कांग्रेस ने चुनाव अभियानों में बार-बार यह मुद्दा उठाया, इसलिए उन्हें जवाब देना पड़ा.
शाह ने कांग्रेस की चुनावी पराजय का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘आपने बिहार में रैलियों के दौरान ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाया, फिर भी चुनाव हार गए. आपकी हार का कारण आपकी नेतृत्व क्षमता है, न कि ईवीएम या मतदाता सूची… मैं गलत हो सकता हूं, लेकिन एक दिन कांग्रेस के कार्यकर्ता पूछेंगे कि इतने चुनाव कैसे हार गए.’
उन्होंने दिल्ली की एक अदालत की उस नोटिस का भी ज़िक्र किया जिसमें सोनिया गांधी द्वारा भारतीय नागरिक बनने से पहले मतदान करने का मामला उठाया गया है. उन्होंने कहा, ‘तीसरी ‘वोट चोरी’ का विवाद तो अब अदालतों में पहुंचा है कि सोनिया गांधी नागरिक बनने से पहले कैसे मतदाता बनीं.’
बीएलओ आत्महत्या का मुद्दा
द हिंदू के अनुसार, वेणुगोपाल, जो खुद एसआईआर प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता हैं, ने सदन में बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) की आत्महत्याओं का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने पूछा, ‘जो बीएलओ आत्महत्या कर चुके हैं, उनके परिवारों को कौन जवाब देगा?’
वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सदन की मर्यादाओं के अनुसार वेणुगोपाल को इस विषय पर बोलना नहीं चाहिए था, क्योंकि वे इस मामले में याचिकाकर्ता हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं अध्यक्ष से अनुरोध करता हूं कि इस पर गौर करें और उचित लगे तो इनके वक्तव्य को रिकॉर्ड से हटाया जाए.’
बुधवार को चुनावी चुनावों पर लोकसभा में बहस का दूसरा दिन था, जिसे विपक्ष ने कई दिनों से एसआईआर पर विशेष चर्चा की मांग करते हुए आगे बढ़ाया था.
भाजपा सांसद द्वारा फॉरेंसिक सवाल वापस लेने पर विपक्ष का राज्यसभा से वॉकआउट
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार (10 दिसंबर) को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने राज्यसभा से वॉकआउट किया, जब भाजपा के एक सांसद ने बिना किसी स्पष्टीकरण के अपना वह प्रश्न वापस ले लिया, जिसे उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से नए आपराधिक कानूनों के मद्देनज़र देश में फॉरेंसिक क्षमता बढ़ाने के बारे में पूछा था.
भाजपा सांसद आदित्य ने गृह मंत्री से यह पूछते हुए एक प्रश्न लगाया था कि ‘क्या सरकार नए आपराधिक कानूनों के तहत अनिवार्य किए गए साक्ष्य संग्रह के लिए केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (सीएफएसएल) का विस्तार कर रही है? यदि हां, तो उसके विवरण क्या हैं?’
उन्होंने यह भी जानना चाहा था कि ‘नए आपराधिक कानूनों के मद्देनज़र निर्भया फंड के तहत फॉरेंसिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं; और फॉरेंसिक डाटा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से व्यवस्थित तरीके से संग्रहित और प्रबंधित करने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?’
राज्यसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध आधिकारिक प्रश्न सूची के अनुसार, प्रसाद का प्रश्न बुधवार के प्रश्नकाल के लिए प्रश्न संख्या 2 के रूप में सूचीबद्ध था. हालांकि, बाद में जारी एक सुधार नोट में कहा गया कि इस प्रश्न को ‘वापस लिया गया’ माना जाए.
जब सभापति सीपी राधाकृष्णन ने इस प्रश्न को छोड़ दिया, तो कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अन्य विपक्षी सांसदों ने पूछा कि प्रश्न वापस क्यों लिया गया.
सभापति ने जवाब देते हुए कहा, ‘आप नियम जानते हैं. नियम 53 किसी भी सदस्य को अपना प्रश्न वापस लेने की अनुमति देता है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘आप भी चाहें तो अपना प्रश्न वापस ले सकते हैं. मैं सदस्यों के अधिकारों में दखल नहीं दे सकता.’
जब विपक्षी सांसद स्पष्टीकरण की मांग पर अड़े रहे, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसे उठाने का ‘कोई अधिकार नहीं’ है.
इसके बाद उन्होंने निर्देश दिया कि इस मुद्दे पर विपक्ष द्वारा कही गई कोई भी बात रिकॉर्ड में नहीं जाएगी और उनसे प्रश्नकाल बाधित न करने को कहा.
जब उन्हें कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला, तो विपक्ष ने नाराज़ होकर सदन से वॉकआउट कर दिया.