राजस्थान के हनुमानगढ़ के टिब्बी में निर्माणाधीन इथेनॉल संयंत्र के ख़िलाफ़ किसानों का महीनों पुराना आंदोलन 10 दिसंबर को हिंसक झड़पों में बदल गया. पुलिस लाठीचार्ज में 16 किसान घायल हुए और 40 गिरफ़्तार किए गए. संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार पर कॉरपोरेट हितों के लिए किसानों को दबाने का आरोप लगाया है.

नई दिल्ली: राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में निर्माणाधीन इथेनॉल संयंत्र के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन पर शनिवार (10 दिसंबर) को पुलिस की कड़ी कार्रवाई के बाद तनाव बढ़ गया है. टिब्बी तहसील के राठीखेड़ा और आसपास के गांवों में हुई झड़पों में कम से कम 16 किसान घायल हुए और 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया.
यह आंदोलन अप्रैल 2024 से जारी है, लेकिन 10 दिसंबर को यह तब उग्र हो गया जब हजारों किसान महापंचायत के लिए जमा हुए, उनकी मांग थी कि 2 से 4 फसली उपजाऊ कृषि भूमि पर बन रहे इस इथेनॉल संयंत्र को तुरंत रोका जाए.
किसानों का कहना है कि राज्य की भाजपा सरकार कॉरपोरेट हितों के दबाव में उनकी जमीन और आजीविका पर चोट कर रही है.
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने शुक्रवार को जारी बयान में राज्य सरकार की कार्रवाई को ‘किसानों पर योजनाबद्ध हिंसा’ बताया है और कहा है कि कॉरपोरेट हितों को साधने के लिए किसानों को दबाया जा रहा है. मोर्चा ने चेतावनी दी है कि ‘लोकतांत्रिक विरोधों को दबाना और कृषि से जुड़े गंभीर मुद्दों की अनदेखी भाजपा शासित सरकारों की आदत बन चुकी है.’
किसानों की आपत्ति: पानी, मिट्टी और हवा सबके प्रदूषित होने का डर
जिस संयंत्र का किसान लंबे समय से विरोध कर रहे हैं, वह ड्यून इथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 40 एकड़ भूमि पर विकसित किया जा रहा है. इसे 2021 में पर्यावरण मंत्रालय से 1320 किलोलीटर प्रतिदिन क्षमता वाले अनाज-आधारित इथेनॉल प्लांट और 40 मेगावाट के सह-उत्पादन विद्युत संयंत्र की अनुमति मिली थी.
किसानों का आरोप है कि इस संयंत्र से पानी का उपयोग कई गुना बढ़ जाएगा. इथेनॉल उत्पादन के दौरान निकलने वाला अपशिष्ट (डिस्टिलरी स्लज) जहरीला होता है, जिसमें माइकोटॉक्सिन, भारी धातुएं, कार्बनिक अम्ल और कीटनाशक अवशेष शामिल हो सकते हैं.
किसानों को आशंका है कि यह अपशिष्ट भूमिगत जल में छोड़ा जाएगा, जिससे पीने का पानी, मिट्टी और फसलों की गुणवत्ता पर स्थायी असर पड़ेगा.
इसके अलावा संयंत्र के साथ प्रस्तावित 40 मेगावाट विद्युत परियोजना में पराली जलाने की योजना है. किसानों का कहना है कि इसमें प्रतिदिन 220 क्विंटल से अधिक राख निकलेगी, जिसका सुरक्षित निस्तारण मुश्किल है और इससे मिट्टी विषाक्त हो सकती है.
‘रोजगार’ के नाम पर खरीदी गई जमीन
सरकार और कंपनी ने शुरुआत में स्थानीय लोगों को रोजगार देने का वादा किया था. 2020 में अधिग्रहित की गई इस भूमि पर किसान चार बार फसलें उगाते आए हैं.
यह इलाका घग्घर नदी के बेसिन में आता है, जो राजस्थान के कुछ हरे-भरे क्षेत्रों में से एक है. किसानों का कहना है कि संयंत्र बनने पर उनकी खेती, पशुपालन और पेयजल – तीनों पर गंभीर खतरा है.
पुलिस कार्रवाई के बाद तनाव बढ़ा; विपक्ष हमलावर
10 दिसंबर की महापंचायत में लगभग 15 गांवों के हजारों लोग पहुंचे थे. किसानों के अनुसार, पुलिस ने लाठीचार्ज व आंसू गैस का इस्तेमाल किया. इसमें 16 किसान गंभीर रूप से घायल हो गए और 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया.
स्थानीय कांग्रेस नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने भी पुलिस कार्रवाई की निंदा की है और कहा है कि ‘किसानों की सहमति के बिना कोई औद्योगिक परियोजना थोपना पूरी तरह गैर-लोकतांत्रिक है.’
एसकेएम की मांगें
एसकेएम ने राज्य सरकार से तीन प्रमुख मांगें रखी हैं:
गिरफ्तार किसानों की तत्काल रिहाई.
घायलों को मुआवजा और उचित चिकित्सा सहायता.
समस्या के समाधान के लिए किसान प्रतिनिधियों के साथ औपचारिक चर्चा.
एसकेएम ने यह भी कहा है कि उद्योग लगाने के नाम पर ‘उपजाऊ कृषि भूमि को नष्ट करने’ की अनुमति किसी भी स्थिति में नहीं दी जानी चाहिए. मोर्चे ने चेतावनी दी है कि यदि किसानों की मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर तेज किया जाएगा.