अपनी सरकार में लगातार उपेक्षा से नाराज चल रही प्रदेश की वरिष्ठ मंत्री और राजमाता की पुत्री यशोधरा राजे सिंधिया साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के समय भाजपा को बड़ा झटका दे सकती हैं। उनकी सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान से लगातार पटरी नहीं बैठ रही है। इसके अलावा वे सीएम के करीबी आला अफसरों के असहयोग से भी परेशान हैं। यही वजह है कि उन्हें अपने विस क्षेत्र में विकास कार्यों को कराने में प्रशासनिक उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। इससे परेशान होकर हाल ही में उन्होंने शिवपुरी में बीते दिनों यह कहकर सनसनी फैला दी कि हो सकता है कि वे अगला चुनाव यहां से न लड़े। जिसकी वजह से उनके विधानसभा चुनाव लडऩे को लेकर संशय की स्थिति बन गई है। दरअसल, यशोधरा राजे ने खुद ही अपनी पंरपरागत शिवपुरी सीट छोडऩे की बात कह कर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि वे कहीं नाराजगी के चलते भाजपा से नाता तोडऩे तो नहीं जा रही है। गौरतलब है कि यशोधरा राजे सिंधिया व्यक्तिगत तौर पर एक भावुक महिला के रूप में जाना जाता है। उन्हें सीधे तरीके से काम करने वाले राजनेता के रूप में भी जाना जाता है। उनके इस कार्यकाल में काम के दौरान अफसरशाही के साथ ही पार्टी में विरोधियों के द्वारा रोड़े अटकाए जाने से वे सही तरीके से काम नहीं कर पा रही हैं। यही नहीं एक आईएएस अफसर के कहने पर सीएम ने उनसे उद्योग मंत्रालय ऐसे समय छान लिया था, जब वे विदेशी निवेश के लिए काफी बड़े स्तर पर कोशिश कर रहीं थीं। हाल ही में शिवपुरी में मीडिया से बात करते हुए यशोधरा राजे सिंधिया ने कहा है कि मैं अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटूंगी, आने वाले विधानसभा चुनाव में डेढ़ वर्ष का समय है, मैं तब तक अपना सारा काम खत्म करना चाहती हूं, मुझे नहीं पता कि मैं अगला चुनाव शिवपुरी विधानसभा से लडूंगी या नहीं, लेकिन मैं हर हाल में अपना काम समय-सीमा में पूरा करूंगी। कितनी भी चुनौतियों का सामना करना पड़े, लेकिन मैं पीछे नहीं हटूंगी, क्योंकि मुझे अब चुनौतियों का सामना करने की आदत पड़ चुकी है। मुझे अब पीछे नहीं देखना है और प्रोग्रेसिव रहना है।
यह माने जा रहे हैं कारण
दरअसल श्रीमति सिंधिया के इस कार्यकाल में शिवपुरी शहर अन्य शहरों की अपेक्षा विकास में लगातार पिछड़ता गया। पहले से पेयजल संकट का सामना कर रहे इस शहर में सडक़ों की हालत इतनी खराब हो गई कि पूरी पूरी गाडिय़ां गड्ढोंं में समा गईं। ट्रक के पहिए धंस गए, क्रेन बुलाकर निकालना पड़ा। सारा शहर सरकारी अव्यवस्थाओं की वजह से त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस स्थिति की वजह से विधायक यशोधरा राजे सिंधिया पेरशान हैं। माना जा रहा है कि उन्हें डर सता रहा है कि कहीं आने वाले चुनाव में जनता उनके विरोध में मतदान न कर दे। सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य आज तक चुनाव नहीं हारा है। शिवपुरी में तो हालात यह रहे हैं कि सिंंधिया परिवार के किसी भी सदस्य की एक अपील पर लोग दागी प्रत्याशी को भी जिता देते थे। संभव है लोगों की नाराजगी के कारण हार का डर उन्हे किसी और सुरक्षित सीट की तलाश के लिए बाध्य कर रहा हो।
सांसद का लड़ सकती हैं चुनाव
यशोधरा राजे सिंधिया ने शिवपुरी विधानसभा से राजनीति की शुरूआत की और वे एक बार ग्वालियर लोकसभा सीट से सांसद रह चुकी हैं। माना जा रहा है कि वे विस चुनाव की जगह लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहती हों। इसकी वजह है उनका प्रदेश के नेताओं के साथ ही सूबे के मुखिया के साथ पटरी का न बैठना। ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना सीट से सांसद हैं। वो मप्र में सीएम कैंडिडेट के दावेदार भी हैं। यदि हाईकमान ने हरी झंडी दे दी तो सिंधिया परिवार की यह लोकसभा सीट खाली हो जाएगी। दिल्ली में यशोधरा राजे खुद को भोपाल से ज्यादा कंफर्ट पातीं हैं। केंद्र में उनकी पहचान और पकड़ भी अच्छी है। मोदी सरकार में मंत्रीपद आसानी से हासिल हो जाएगा और भोपाल की खिटपिट से मुक्ति भी मिल जाएगी।
भाजपा छोडक़र कांग्रेस ज्वाइन कर लेंगी
यशोधरा राजे सिंधिया खुद को राजमाता सिंधिया का उत्तराधिकारी मानतीं हैं परंतु जो भाजपा राजमाता सिंधिया का सम्मान करती है वही भाजपा यशोधरा राजे सिंधिया को सामंतवादी बताकर अपमानित भी करती है। यह कई बार हो चुका है। कुछ समय पहले तक सिंधिया परिवार के लोग इसका विरोध नहीं करते थे परंतु पिछले दिनों यशोधरा राजे सिंधिया ने 1857 की क्रांति को लेकर सिंधिया राजवंश पर उठाए गए सवालों का तल्ख विरोध किया। हालात अब भी नहीं बदले हैं। भाजपा अपने पैरों पर खड़ी हो गई है। अब वो राजमाता के चित्र पर माल्यार्पण तो कर सकती है परंतु उनके परिवार को सम्मान देने के लिए तैयार नहीं है। जबकि वर्तमान कांग्रेस में ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। वहां श्रीमंत और महाराजों का बोलबाला है। यह भी संभव है कि यशोधरा राजे सिंधिया भाजपा को हमेशा के लिए अलविदा कह दें।