प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल द्वारा डेढ़ दशक बाद सत्ता पाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत कांग्रेस इस बार अन्य समान विचार धारा वाले दलों से गठबंधन की पूरी तैयारी कर रही है। इसके तहत वह वोटों का बंटवारा रोकना चाहती है। यही वजह है कि वह चुनाव पूर्व बसपा और सपा से गठबंधन के प्रयासों में लगी हुई है। इन दोनों ही दलों का प्रदेश के उन जिलों में प्रभाव है जो उप्र से लगे हुए हैं। कांग्रेस के इस कदम की भनक लगने के बाद से ही भाजपा के रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं। इस स्थिति के आंकलन के लिए भाजपा ने अपने संभागीय संगठन मंत्रियों से उनके संभाग में इन दलों के प्रभाव के बारे में जानकारी जुटाने का कहा है। इसके अलावा पार्टी ने पूछा है कि यह दल गठबंधन करते हैं तो इसका क्या असर होगा। पार्टी संगठन मंत्रियों की रिपोर्ट के बाद गठबंधन के प्रभाव वाले इलाकों में नए समीकरण और नई रणनीति बनाने पर काम शुरू कर सकती है। गौरतलब है कि प्रदेश के विंध्य, बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल अंचल में बसपा और सपा का असर है। उत्तरप्रदेश से सटे इन इलाकों में ये दोनों पार्टियां कुछ सीटें जीतती रही हैं। पिछले चुनाव में बसपा ने 6.29 प्रतिशत और सपा ने 0.3 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। इनके कांग्रेस से गठबंधन से भाजपा को खतरे का अहसास है। उसकी यहां के दलित और यादव वोट बैंक पर भी नजर है और उसे साधने के लिए भी पार्टी कुछ कदम उठा सकती है।