उज्जैन : आज सावन का पहला सोमवार है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल मन्दिर में भस्म आरती के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होने के लिए उज्जैन के महाकाल मंदिर पंहुचे. आधी रात 2.30 बजे ही मंदिर में भस्म आरती शुरू हुई जिसमें दूध, दही, घी , शहद, फूल इत्र आदि से भगवान को स्नान कराया गया. मान्यता है कि सावन में सोमवार को शिव के दर्शन करने से जो मांगो वो फल मिलता है. भस्म आरती के बाद भक्तों को दर्शन देने के लिए आज शाम 4 बजे महाकाल की सवारी भी मंदिर से निकलेगी.
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल के मंदिर में आज भस्म आरती में शामिल होने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से उज्जैन पंहुचे थे. मंदिर का हॉल पूरी तरह भक्तों से भरा हुआ था. बाबा महाकाल का फूलों से श्रृंगार करने के बाद बाबा की आरती शुरू हुई. ढोल-नगाड़ों और मंदिर की घंटियों के बीच झांज-मंजीरो के साथ बाबा महाकाल की आरती हुई, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल हुए. मान्यता है कि सावन के सोमवार का व्रत रखने वाले श्रद्धालु आज के दिन महाकाल मंदिर में पूजन-अभिषेक करते हैं तो भोले उनकी सभी मुरादें पूरी करते हैं. आज शाम 4 बजे महाकाल मंदिर से बाबा पालकी में सवार होकर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलेंगे.आज सावन का पहला सोमवार है और देशभर के शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का मेला लगना शुय हो गया है. महीनों में सावन का अपना महत्व है. इसी के साथ सोमवार के व्रत रखने का भी खास होता है. देवों में देव महादेव ऐसे भगवान हैं जो सिर्फ जलाभिषेक से ही खुश हो जाते हैं. सोमवार का दिन चंद्र का दिन होता है और चंद्रमा के नियंत्रक भगवान शिव हैं. इस दिन पूजा करने से न केवल चंद्रमा बल्कि भगवान शिव की कृपा भी मिलती है .सोमवार का व्रत रखने से स्वास्थ्य की समस्या, विवाह की मुश्किल, दरिद्रता से मुक्ति मिलती है. सोमवार को जो भी व्यक्ति विधि पूर्वक भगवान शिव की आराधना करता है तो तमाम समस्याओं से मुक्ति पा सकता है. इससे भी अधिक सावन के सोमवार के व्रत रखने से मिलता है.
सावन के सोमवार का व्रत रखने से अगर कुंडली में विवाह का योग न हो या विवाह होने में अड़चने आ रही हों तो संकल्प लेकर व्रत किया जाना चाहिए. अगर कुंडली में आयु या स्वास्थ्य बाधा हो या मानसिक स्थितियों की समस्या हो तब भी सावन के सोमवार का व्रत श्रेष्ठ परिणाम देता है. सोमवार व्रत का संकल्प सावन में लेना सबसे उत्तम होता है, इसके अलावा इसको अन्य महीनों में भी किया जा सकता है. इसमें मुख्य रूप से शिव लिंग की पूजा होती है और उस पर जल तथा बेल पत्र अर्पित किया जाता है.
सावन महीने में महाकाल की नगरी उज्जैन में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है. उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी के रूप में भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. प्राचीन काल में इस शहर को अवन्तिका के नाम से जाना जाता था. इसका उल्लेख प्राचीन धर्मग्रन्थों में भी मिलता है. मान्यता है कि आज भी उज्जैन शहर में भगवान शिव राजाधिराज महाकाल महाराज के रूप में साक्षात निवास करते हैं. सावन, महाकाल और उज्जैन इन तीनों की पवित्र त्रिवेणी से भक्तों का जीवन सफल हो जाता है. सावन में शिवभक्ति और शिवभक्तों का उत्साह देखते ही बनता है.