शिवराज सरकार को गायों के संरक्षण की फिक्र नहीं

देश में गोहत्या को लेकर भले ही तनावपूर्ण माहौल हो, मगर मध्यप्रदेश में गायों की रक्षा को लेकर सरकार की कथनी और करनी में फर्क साफ दिखता है। हालत यह है कि विधानसभा में गायों के संरक्षण का वादा करने के बावजूद सरकार ने इसके कानून का मसौदा ठंडे बस्ते में डाल दिया है। इस मसौदे में गायों को खुला छोडऩे वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और ऐसा प्रथा पर अंकुश लगाने का प्रावधान किया गया है। ऐसे में पशुपालक और किसान कानूनी शिकंजे में फंसते। चूंकि, चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में सरकार किसी को नाराज करना नहीं चाहती। इसलिए, वह इस पर कोई कदम आगे नहीं बढ़ा रही है।
पिछले दो साल में सात हजार से अधिक हादसे
सडक़ पर घूमने और बैठने वाले आवारा मवेशियों के कारण प्रदेश में पिछले दो साल में सात हजार से अधिक हादसे हुए हैं। पुलिस की डॉयल 100 के आंकड़ों के अनुसार हर दिन औसतन 10 हादसे हो रहे हैं। इन हादसों में मौत हो रही है और लोग अपाहिज भी हो रहे हैं।
ऐसे लिया यू-टर्न
आवारा पशुओं की वजह से खेती पर गहराए संकट का मुद्दा विधानसभा तक पहुंचा। इसके बाद सरकार ने पशु मालिकों पर कार्रवाई के लिए कानून में बदलाव करने के निर्देश दिए। इसका ड्रॉफ्ट तैयार कर विधि विभाग को भेजा गया। अब गोवंश प्रतिषेध कानून में बदलाव में प्रस्ताव को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है। सरकार ने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए 2004 में गोवंश प्रतिषेध कानून बनाया था। इसमें गायों की हत्या, तस्करी और मांस बेचने पर पाबंदी लगाते हुए तीन से सात साल तक की सजा का प्रावधान है। प्रदेश में यह कानून प्रभावशील है, लेकिन सरकार गायों के संरक्षण को भूल गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 13 लाख से अधिक पशु खुले में घूम रहे हैं। इनमें गौवंश के अलावा भैसें भी शामिल हैं। इनमें राहगीरों के साथ ही फसलों को भी नुकसान हो रहा है।
अटक गई सभी योजनाएं
गाय संरक्षण कानून के पीछे हटने के बाद सरकार ऐसा प्रथा पर रोक का दूसरा प्रस्ताव लेकर आई। इस मामले में वित्तमंत्री जयंत मलैया की अध्यक्षता में गठित समिति में अब तक तीन बैठकें हो चुकी है, लेकिन आवारा मवेशियों की वजह से खेती को होने वाले बड़े नुकसान से निपटने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बन सकी। मंत्री, विधायक और अधिकारियों ने दीर्घकालीन योजनाओं का सिर्फ खाका पेश किया। वह भी कृषि और वित्त विभाग के बीच फंस गया है। समिति ने अप्रैल में बैठक में हर जिले में दो क्लस्टर तैयार कर 100-100 एकड़ की बाड़ा बनाने की सिफारिश की थी, वह भी फाइलों में ही अटक गई।