टिकटों के बंटवारे पर व्यंग.

मंगल भारत :-भारतीय राजनीतिक इतिहास में फिर वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था कार्यकर्ता वहीं का वहीं रह गया वंशवाद सिर चढ़कर बोला. भारतीय जनता पार्टी वंशवाद के विरोध को लेकर  काफी चर्चा में रहती है कि हम वंशवाद के खिलाफ है कांग्रेस को हमेशा उल्टे हाथ लेती है.

लेकिन टिकट के बंटवारे ने यह साबित किया कि हम नए कार्यकर्ताओं को न तो टिकट देंगे ना ही उसे उठने का मौका देंगे पिताजी की जगह पुत्र. हम किसी से कम नहीं हैं.

चुनौती है मतदाताओं की कि वह इस वंशवाद को समाप्त करती है या उसे वह रूप देती है. जो भारतीय राजनीति का नया इतिहास कहलायेगा.

पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा को लेकर युवा वर्ग एवं बुद्धिमान वर्ग के मतदाताओं पर तीखी नजर रहेगी इस बात की यह राजनैतिक वंशवाद को खत्म करते हैं. या उस को बढ़ावा देते हैं.

लेकिन दूर दृष्टि रखी जाए तो वह दिन दूर नहीं जब इस वंश बाद का अंत स्वयं यह राजनैतिक वंश बाद होगा.

भारतीय जनता पार्टी की राजनीति ने तो टिकट बंटवारे मैं वंशवाद तो दिखाया ही साथ में उन ध्रुवित नेताओं को टिकट दिया जो कभी किसी दल का है ही नहीं.

इन सब चीजों को देखते हुए उस शायर की शायरी याद आती है कि राजनीति एक वैश्या है जो आज इधर कल उधर.