प्रदेश में अपने बहनोई शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए उनके साले संजय सिंह अब कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं। इसके बाद से ही तय माना जा रहा है कि वे बालाघाट जिले की वारा सिवनी से चुनावी मैदान में उतरेंगे।
दरअसल वे बीते कई चुनावों से भाजपा से टिकट की मांग कर रहे थे, लेकिन हर बार ही उन्हें निराशा हाथ लग रही थी। जिसकी वजह से उनके पास कांग्रेस में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। संजय सिंह मूल रुप से महराष्ट्र के गोंदिया निवासी हैं। विधानसभा सीट वारासिवनी गोंदिया से लगी हुई है। जहां पर संजय ने बीती कई सालों से आवास बनाकर अपनी कर्मभूूमि बना रखा है। पिछले 15 वर्षों से संजय वारासिवनी में सक्रिय है। 2008, 13 और अब 18 के चुनाव में संजय ने भाजपा से टिकट मांगा, लेकिन हर बार ही उन्हें निराशा हाथ लगी। 2008 से अब तक विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय है। पिछले 5 वर्षों की स्थिति तो ये है कि विधानसभा का शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां तक संजय का पहुंचना बाकी रहा गया हो। 2013 के चुनाव में भले ही उन्हें पार्टी ने टिकट न दी हो लेकिन प्रत्याशी योगेन्द्र निर्मल को जिताने की जवाबदारी जरूर सौंप दी। संजय ने वारासिवनी सीट जिताकर तो पार्टी को दी है साथ ही सिवनी जिले की दो और सीट जिताने में मदद की। संजय के साथ आज कार्यकर्ताओं की फौज है। श्रीमद्भगवत, बुजुर्गों का सम्मान से लेकर छात्र-छात्राओं से जुड़ाव और जनता से जुड़े रहने की संजय ने हर संभव कोशिश की। ऐसा नहीं है कि पार्टी को इसकी जानकारी नहीं है, परंतु संजय को भाजपा से टिकट न मिल पाने के दो सबसे महत्वपूर्ण कारण है। पहला कारण संजय सिंह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सगे साले हैं और शिवराज सिंह ने अभी तक अपने आपको परिवारवाद के आरोप से मुक्त रखने की कोशिश की है। हालांकि शिवराज और संजय का रिश्ता परिवार की श्रेणी से बाहर का है। उनका नाता रिश्तेदारी का है। दूसरा कारण मंत्री गौरीशंकर बिसेन है। बालाघाट जिले में पवार वोटों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है और बिसेन ने हर स्तर पर संजय का विरोध किया है। शिवराज किसी भी कीमत पर पवार मतदाताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते थे, शायद इसलिए ऐसी स्थिति में बलि तो आखिर किसी की तो देनी ही थी सो अपने की ही दी गई है। कांग्रेस वे वरिष्ठ नेता डॉ. गोविंद सिंह, रामनिवास रावत, पुरुषोत्तम दांगी और पांचीलाल मेड़ा ऐसे विधायक रहे हैं जिन्होंने हमेशा संजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल रखा। नेता प्रतिपक्ष ने तो अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संजय सिंह के नाम का सहारा लेकर ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने की कोशिश की। इसके बावजूद संजय यदि आज कांग्रेस में है तो इसकी वजह कमलनाथ से उनके रिश्ते हैं। संजय और कमलनाथ के रिश्ते बहुत पहले से काफी अच्छे रहे हैं। शायद कमलनाथ की वजह से ही उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा है, वरना जमुना देवी के वक्त भी संजय कांग्रेस में जाने का मन बना चुके थे। अपने घर को नहीं बचा पाने के आरोप में आज शिवराज सिंह चौहान को घेरा जा सकता है। मगर इससे पहले ये सोच लेना होगा कि ये सियासत है। कई बार यहां परिवार के सदस्यों को अलग रास्ता चुनना ही पड़ता है। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह सांसद बने तो भाजपा की टिकट पर। राजमाता सिंधिया और माधवराव सिंधिया ने भाजपा और कांग्रेस में दबदबा बनाया तो अलग राह चुनकर ही। ज्योतिरादित्य सिंधिया और यशोधराजे सिंधिया का उदाहरण भी सामने है। खैर, जो भी हो भाजपा के योगेंद्र निर्मल और कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रदीप जायसवाल के आगे संजय सिंह 19 नहीं 21 ही साबित होंगे।