शिवराज की गुगली भारी पड़ी कैलाश विजयवर्गीय पर

मध्यप्रदेश की राजनीति में जिन नेताओं को कद के हिसाब से बड़ा नेता माना जाता है उनमें भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनकी अपने ही दल के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पुरानी अदावत मानी जाती है। श्री विजयवर्गीय की पहचान जोड़-तोड़ और दबाव की राजनीति के में माहिर खिलाड़ी के रुप में है, लेकिन इस बार उनके पार्टी में विरोधी शिवराज सिंह चौहान ने ऐसी गुगली फेंकी की वे पूरी तरह से बोल्ड हो

गए। दरअसल श्री विजयवर्गीय ने अपने बेटे आकाश व स्वयं के टिकट के लिए पूरा दबाव बनाया था , लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐसा दांव चला कि वे खुद ही अपने दांव में उलझकर रह गए।
एक परिवार से एक टिकट….
बेटे आकाश विजयवर्गीय को टिकट दिया और कैलाश को जमीन भी दिखा दी। राजनीतिक गुणा-भाग करने की पूरी हेकड़ी शिवराज ने एक झटके में निकाल दी। इस रणनीति को गौर से समझिए… नेता पुत्रों की दावेदारी शुरू हुई तो शिवराज ने ऐलान किया कि नेता पुत्र चुनाव लड़ेंगे तो उनके परिजन नहीं लड़ेंगे। एक घर के भीतर एक ही टिकट दिया जाएगा। इस पर सबसे पहले कैलाश ने ऐलान किया कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे… बेटे को टिकट दिया जाए।
बेटे के साथ खुद के लिए लगाए थे आस…
महू में भाजपा के पास कोई दमदार उम्मीदवार न होने से विजयवर्गीय को पूरा विश्वास था कि इस सीट पर विजय पाने के लिए भाजपा आखिर में उन्हें टिकट देने को मजबूर हो जाएगी। ऐसे में वह बेटे के साथ खुद भी टिकट पा जाएंगे। उन्होंने आकाश के लिए इंदौर-2 से टिकट मांगा था। ये उनकी सुरक्षित सीट है। ऐसे में वह अपना पूरा ध्यान महू की सीट पर लगा सकते थे। संगठन ने इस मामले में शिवराज पर भरोसा जताते हुए उनकी जगह ऊषा को टिकट देकर मैदान में उतार दिया।
शिवराज ने विचार तक नहीं किया …
जब पहली सूची में जगह नहीं मिली तो कैलाश को लगा कि बेटे के लिए खुद का टिकट शहीद हो जाएगा। फिर कई बार ऐलान किया कि पार्टी कहेगी तो चुनाव लड़ेंगे।
लेकिन पार्टी ने उनसे एक दफा भी नहीं कहा। फिर समर्थकों से कहलाया गया… हर जगह से बात आगे बढ़ाई गई कि कैलाश के सिवाय महू से कोई नहीं जीत सकता है, लेकिन पार्टी या कहें कि शिवराज ने इस नाम पर विचार करने से ही इनकार कर दिया। यही नहीं श्री चौहान ने यह तक कह दिया कि बेटे को टिकट दे रहे हैं। ऐसे में बाप को टिकट नहीं दे सकते। मु यमंत्री ने कैलाश को यह भी साफ कर दिया कि दो नंबर से रमेश का टिकट काटने की कोई वजह नहीं है। दूसरे विधायकों को उनकी सीटों से टिकट मिल रहा है तो रमेश का ही क्यों काटा जाए। मु यमंत्री ने यहीं से कैलाश और रमेश की दोस्ती में दरार डालने का बीज बोया।
रमेश की सहमति का भी असर नहीं
कैलाश ने दिवाली से एक दिन पहले रमेश से बयान जारी कराया कि वह आकाश के लिए दो नंबर सीट छोडऩे को तैयार हैं, लेकिन शिवराज इस पर सहमत नहीं हुए। यही वजह है कि तीसरी सूची में नाम जारी करने से 30 मिनट पहले शिवराज ने रमेश से पूछ लिया कि कहां से लडऩा चाहते हो। इस तरह शिवराज कहने को आकाश को टिकट दे दिया, लेकिन कैलाश के मन की बात पूरी नहीं होने दी। यही नहीं रमेश को दो नंबर की जगह तीन नंबर से टिकट थमा दिया। इसके साथ ही श्री चौहान ने रमेश पर एहसान जताने की कोशिश की। कहते हैं कि राजनीति में बड़े किलों को ढहाने के लिए पहले उनके बुर्ज को जीतना होता है। रमेश उन्हीं बुर्ज में से एक हैं।
ताई की भी नहीं चलने दी
शिवराज ने इस चुनाव में सुमित्रा महाजन को भी किनारे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जिस तरह से ताई ने टिकटों को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी और पार्टी के बड़े नेताओं को उनके घर के चक्कर लगाने पड़े थे, उससे लगा था कि ताई अपनी बात मनवाने में कामयाब रहेंगी, लेकिन शिवराज ने मंदार को टिकट देने से इनकार कर दिया।
मंदार के लिए ताई इंदौर-1 या इंदौर-3 से टिकट चाह रही थीं। शिवराज ने बड़ी चतुराई से साफ कर दिया था कि राऊ या महू से ही टिकट मिल सकता है। ताई दोनों ही सीटों पर मंदार को हारता हुआ नहीं देखना चाहती थीं।
सिर्फ बेटे का टिकट हुआ पक्का…
शिवराज ने ताई को किनारे किया तो कैलाश को भी जमीन दिखा दी। कैलाश के समर्थक जीतू जिराती को कालापीपल से टिकट देने से इनकार कर दिया। कैलाश आखिरी वक्त में तीन टिकटों के लिए जूझ रहे थे, जिसमें बेटा आकाश, रमेश मेंदोला और जीतू जिराती का नाम शामिल है। कैलाश पूरी ताकत लगाने के बाद सिर्फ बेटे का टिकट पक्का करवा पाए। वह भी अपनी दावेदारी को खत्म करके। रमेश का टिकट सिटिंग विधायक होने के कारण पहले से ही तय था।