ग्वालियर। भिण्ड जिले की लहार विधानसभा क्षेत्र में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला होने की संभावना है। कांग्रेस के डॉ. गोविंदसिह 1990 से निरंतर विधायक हैं तो भाजपा के रसालसिंह भी लहार से लगती रौन सीट से अलग-अलग सालों में चार बार विधायक रहे चुके हैं। पिछला चुनाव भी इन दोनों के बीच ही हुआ था। डा.सिंह ने यह चुनाव ६२७३ मतों से जीता था। डा. गोविंद ने पहला चुनाव लहार से जनतादल के टिकट पर १९९० में लड़ा था और ३३४७९ वोट लेकर भाजपा के मथुरा प्रसाद महंत को १४६१७ मतों के भारी अंतर से चुनाव जीता था।
1993 मेें हुए उपचुनाव में उन्होंने तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह से निकटता के चलते कांग्रेस का दामन थाम लिया। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद कांग्रेस ने डा.सिंह ने लहार से मैदान में उतारा और उन्होंने करीब ८ हजार मतों के अंतर से अपना कब्जा बरकरार रखा। प्रदेश सरकार में उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया। इसके बाद से वे निरंतर लहार से चुनाव जीतते आ रहे हैं। कई बार भाजपा ने प्रत्याशी बदलकर उन्हें घेरने की कोशिश की लेकिन नाकामी ही हाथ लगी।
इसी प्रकार लहार की पड़ोसी रौन सीट से अलग-अलग चुनावों में भाजपा प्रत्याशी रसालसिंह भी चार बार विधायक रह चुके हैं। रसालसिंह ने पहला चुनाव १९७२ में जनसंघ के टिकट पर १५५०४ वोट पाकर चुनाव जीता। कंाग्रेस के सोवरनसिंह को सिर्फ ५३२७ वोट मिले। १९७७ का चुनाव भी कांग्रेस की प्रेमकुमारी को हराकर जीता इस चुनाव में उन्हें २११४९ वोट मिले। रसालसिंह १९९८ को चुनाव सपा के टिकट पर लडे और उन्होंने बसपा के गिरदावल को ६७१ वोटों के अंतर से हराया। २००३ के चुनाव में भाजपा ने उन्हें मैदान में उतारा।
रसालसिंह ने बसपा के रणवीर को ६२२२ मतों के अंतर से हराया। वे एक बार भिण्ड नपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। रसालसिंह को केंद्रीय मंत्री एवं पूर्वमुख्यमंत्री उमाभारती का करीबी माना जाता है। लहार में २००८ का विधानसभा चुनाव भी कांगे्रस के डा. गोङ्क्षवदसिंह तथा भाजपा के रसालसिंह के बीच हुआ। कांग्रेस को ५३०१२ तथा भाजपा को ४६७३९ वोट मिले। दोनों के बीच एक अंतर यह है कि रसालसिंह १९८०, १९८५, २००८ तीन चुनाव हार भी चुके हैं लेकिन डा. गोविंद सिंह को अजेय माना जाता है। समानता यह है कि दोनों की छवि दबंग नेता की है।
बसपा से भाजपा में आए रोमेश महंत बिगाड़ सकते हैं समीकरण
चुनाव से ठीक पहले बसपा से रोमेंश महंत को तोडक़र भाजपा ने इस बार समीकरण बदलने की कोशिश की है। २००८ के विधानसभा चुनाव में यहां से बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे महंत को ३४५८५ वोट मिले थे। उनके पिता मथुरा महंत भी कांग्रेस की लहर के दौरान १९८५ में लहार से विधायक रहे चुके हैं।
इस बार भाजपा की नजर इन्हीं वोटो पर है। ये बात अलग है कि इसमें कितना वोट भाजपा की झोली में आ पाता है। क्योंकि महंत जब बसपा से लड़े थे तो उन्हें अनुसूचित जाति और कुछ अति पिछड़ी जातियों के वोटरो का भी समर्थन मिला था। इस चुनाव में क्या होता है ये ११ दिसंबर के बाद ही पता चल सके गा।