क्या बुदनी में चुनाव प्रचार की रणनीति बदलेंगें शिवराज ?

मध्य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की परंपरागत सीट है बुदनी. वे यहां से रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीतते आए हैं. लेकिन इस बार कांग्रेस ने अपने पूर्व अध्‍यक्ष अरुण यादव को यहां से मैदान में उतार दिया है. शिवराज सिंह उनको घर में ब्‍लॉक करने के लिए.

मध्यप्रदेश में चुनाव का रंग परवान चढ़ चुका है. टिकटें बंट चुकी हैं और उम्मीदवार वोटरों को रिझाने गली गली घूम रहें हैं. प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को बांधने के लिए कांग्रेस पार्टी ने बड़ा दांव खेला है. पार्टी ने पूर्व प्रदेश

अध्यक्ष अरूण यादव को बुदनी से मैदान में उतारा है. अरूण यादव कद्दावर नेता हैं और प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री रहे सुभाष यादव के बेटे हैं. यादव पिछली यूपीए सरकार में राज्य मंत्री भी रह चुके हैं. वहीं शिवराज अपने गृह क्षेत्र से पांचवी बार चुनावी मैदान में हैं.

शिवराज का पैतृक निवास जैत गांव में है और लगभग हर तीज त्योहार मनाने वे गांव आते हैं. शिवराज का बचपन यहां बीता है और हर बार शिवराज मतदान के ठीक एक दिन पहले अपने क्षेत्र में घर घर प्रचार करते हैं और इतने में ही जनता उन्हें भारी बहुमत से जिताती आई है, लेकिन इस बार अरूण यादव ने ये बयान देकर हुंकार भरी है कि पार्टी ने उन्हें बली का बकरा नहीं बनाया है बल्कि वे शिवराज को हरा देंगे.

यादव के लिए भी करो या मरो का सवाल है क्योंकि यदि वे जीते तो कांग्रेस की सूची में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में उनका नाम काफी आगे पहुंच जायेगा. अरूण यादव ने पार्टी अध्यक्ष रहते हुए प्रदेश में पहचान तो बना ली है लेकिन कमलनाथ और सिंधिया के बीच जगह बनाने के लिए इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं था. अब अरूण यादव गली-गली और घर-घर घूम रहे हैं.

बहरहाल आपको याद दिला दें कि ठीक इसी तरह शिवराज सिंह को बीजेपी ने 2003 के चुनाव में तत्कालीन मुखयमंत्री दिग्विजय सिंह के गृह क्षेत्र राघौगढ़ से उतारा था. उस समय शिवराज युवा और तेज तर्रार नेता थे. हालांकि उस चुनाव में दस साल की एंटी इनकमबेंसी के बावजूद दिग्विजय सिंह करीब 21000 वोटों से जीत गए लेकिन प्रदेश हार गए. शिवराज भले ही हार गए लेकिन उनकी किस्मत दो साल में चमक गई और नवम्बर 2005 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए. समय समय पर उन्होनें अपने सभी विरोधियों को धूल चटा कर ये संदेश भी दिया कि उनसे टकराने में सामने वाले का ही नुकसान होता है.

हर बार की तरह इस बार भी शिवराज के लिए उनके क्षेत्र में मोर्चा उनकी पत्नी साधना सिंह और बेटे कार्तिकेय ने संभाल रखा है. क्योंकि शिवराज नामांकन भरकर अपने इलाके की जिम्मेदारी अपने परिवार पर छोड़ देते हैं लेकिन इस बार शिवराज को ये सफाई देना भारी पड़ रहा है कि आखिर उनके साले संजय मसानी ने कांग्रेस का दामन क्यों थाम लिया है?

घर-घर वोट मांगने के दौरान बुदनी में शिवराज की पत्नी साधना सिंह को महिलाओं ने ये कह कर ताना मार दिया कि उनको शिवराज के राज में पीने का पानी नहीं मिला. हालांकि शिवराज ने अपने इलाके में काम किया है लेकिन इस बार जनता आईना दिखाने से भी नहीं चूक रही है. मतलब साफ है कि इस बार जनता झांसे में आने वाली नहीं है. शिवराज को बुदनी से अपनी बड़ी जीत के लिए मेहनत करनी पड़ेगी और समय भी देना पड़ सकता है. वहीं दूसरी ओर तगड़ी एंटी-इनकमबेंसी के बीच शिवराज पर सरकार बनाने की जिम्मेदारी भी है. अब 11 दिसंबर को जनता के फैसले का इंतजार है.