महिला सशक्तिकरण के नाम पर तमाम शोर मचाने वाले कांग्रेस व भाजपा के कर्ताधर्ता प्रत्याशी चयन के दौरान महिलाओं को उम्मीदवारी देने में कंजूस बने हुए हैं। यही वजह है कि इस बार भी विधानसभा चुनाव में इन दोनो ही प्रमुख राजनैतिक दलों की ओर से महज दा फीसदी की ही भागीदारी महिलाओं को दी गई है। इसमें कुछ महिलाओं को तो मजबूरी के चलते ही टिकट देने की बात सामने आ रही है। इन दोनों दलों से टिकट पाने वाली महिलाओं की कुल संख्या 51 है। आंकड़ो के हिसाब से यह भागीदारी महज दस फीसदी है। खास बात यह है कि चुनावी मुद्दों में दोनो ही दलों द्वारा महिला सशक्तिकरण को प्रमुख मुद्दा
बनाया जा रहा है। दरअसल, महिलाओं की सशक्तिकरण की याद सियासतदानों को चुनावों के वक्त ही याद आती है। यही नहीं इस मामले में राजनीतिक दल खुद को दूसरों से बेहतर बताने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, वास्तविकता में यह दोवे अब जुमला नजर आने लगे हैं। अगर जारी चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा की बात करें तो उसने सूबे की 230 सीटों में से केवल 28 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया है, जबकि महिला मोर्चा ने पार्टी से 52 टिकट की मांग की थी। महिला मोर्चा की यह मांग पिछले विस चुनाव में महिला प्रत्याशियों की जीत के आंकड़ों पर आधारित थी। 2013 में भाजपा ने 28 सीटों से महिलाओं को टिकट दिए थे, जिसमें से 22 यानी 79 फीसदी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। भाजपा ने महिला मोर्चा के आंकड़ों को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ 28 महिला उम्मीदवारों को ही टिकट दिया।
कांग्रेस ने 23 महिलाओं को दिया टिकट
आंकड़ों के मुताबिक भाजपा और कांग्रेस ने मिलाकर सिर्फ 10 प्रतिशत सीटों पर ही महिलाओं को टिकट दिया है। इस विधानसभा चुनाव में 23 महिला प्रत्याशी कांग्रेस की हैं तो वहीं 28 महिला प्रत्याशियों को भाजपा ने मौका दिया है। 2013 के चुनाव में भी आंकड़े बिल्कुल ऐसे ही थे। इसमें से सिर्फ 32 महिलाओं को सफलता हाथ लगी थी और वह विधानसभा पहुंची थीं।
मतदाताओं की बात करें तो चुनाव में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले बहुत ज्यादा पीछे नहीं है। 2013 के चुनाव में लगभग 70 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का उपयोग कर सरकार बनाई थी, लेकिन जब बात प्रत्याशी पर आती है तो पार्टियां कभी भी इस अनुपात में टिकट नहीं बांटती, जिसके कारण महिलाएं हर बार मुकाबले में पीछे रह जाती हैं।
भाजपा ने दो महिला मंत्रियों के काटे टिकट
खास बात ये है कि भाजपा ने कुसुम मेहदेले और माया सिंह जैसी दिग्गज मंत्रियों का भी टिकट काट दिया और जिन महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया भी गया हैं तो उसे पाने के लिए उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। कई महिला उम्मीदवार ऐसी हैं, जिन्हें टिकट के लिए पार्टी के दिग्गजों से लडऩा पड़ा। पूर्व सीएम बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर का नाम उनमें से एक है।
2008 में कांग्रेस ने 22 महिलाओं को दिया था मौका
वहीं देश की एक और बड़ी पार्टी कांग्रेस में मप्र में उतारे गए, 229 कैंडिडेंट्स में से 23 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस में भी कई उम्मीदवारों का टिकट काट कर पुरुष उम्मीदवारों को दिया गया, जिसमें से एक नाम है इंदौर-1 की उम्मीदवार प्रीति अग्रिहोत्री का। कांगे्रेस ने पहले प्रीति को ही इंदौर -1 से प्रत्याशी घोषित किया था। पार्टी के इस फैसले से संजय शुक्ला बगावत पर उतर आए और निर्दलीय चुनाव लडऩे की धमकी देने लगे। एक दौर में इंदिरा गांधी जैसी सशक्त महिला के इशारों पर सियासत करने वाली कांंग्रेस संजय शुक्ला की धमकियों से डर गई। कांग्रेस ने प्रत्याशियों की छठी सूची में संशोधन करते हुए प्रीति अग्निहोत्री का टिकट काट कर संजय शुक्ला के नाम कर दिया। जबकि कांग्रेस से टिकट पाने वाली महिलाओं ने कभी उसे निराश नहीं किया है। 2008 में विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस की ओर से लडऩे वाली 22 महिला प्रत्याशियों में से 15 ने जीत हासिल की थी। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टियों ने जब भी नारी शक्ति को मौका दिया, उसने जीत हासिल कर अपनी ताकत को साबित किया। इसके बावजूद नेताओं की जुबान पर रहने वाले महिला सशक्तिकरण के दावे जुमलों तक ही सीमित है, जो जमीनी हकीकत से दूर है।