महाकाल की नगरी में राम मंदिर नहीं महाकाल और रोजगार है मुद्दा

उज्जैन मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकाल का मंदिर आस्था और श्रद्धा के साथ राजनीतिक महत्व भी रखता है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हों या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपने चुनावी दौरे के दौरान वह यहां आना नहीं भूले। वहीं मध्य प्रदेश के स्थानीय नेता भी महाकाल के आशीर्वाद के साथ ही अपनी राजनीतिक यात्रा या चुनाव प्रचार शुरू करते हैं। मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में नवभारत टाइम्स ने यहां के लोगों से चुनावी हवा टटोलने की कोशिश की।

महाकाल मंदिर के बाहर फूल माला की दुकान में काम करने वाले राहुल राव जाधव जय श्री महाकाल कर अभिवांदन करते हैं। चुनाव के बारे में पूछने पर झट से बोलते हैं कि इस बार तो पंजे को दूंगा। वजह पूछने पर अपने पार्षद से नाराजगी बताते हैं और कहते हैं कि हमारा बिजली का बिल ज्यादा आया, पार्षद ने कुछ भी नहीं किया।

दिल्ली से चल रहे मुद्दे नहीं एकदम स्थानीय मुद्दे हैं वोटर के दिमाग में
लेकिन चुनाव तो विधानसभा का है और विधायक बनाने के लिए किसे वोट देंगे पूछने पर थोड़ा सोचते हैं फिर कहते हैं कि विधायक को थोड़ी आना है हमारे पास, आएगा तो पार्षद ही। आगे कहते हैं कि हमें जो रोजगार देगा उसे वोट देंगे। अगर आपको वोट दें तो हमें भी तो फायदा होना चाहिए। दरअसल विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे नहीं बल्कि राज्य के मुद्दों से भी इतर बेहद स्थानीय मुद्दे लोगों को प्रभावित कर रहे हैं।

राम मंदिर के बारे में पूछने पर महाकाल मंदिर के बाहर बिजनस चलाने वाले लोग कहते हैं कि हमारी रोटी तो हमें महाकाल देते हैं। दरअसल उज्जैन की बड़ी अर्थव्यवस्था महाकाल और यहां के दूसरे मंदिर ही हैं। होटल से लेकर ट्रांसपोर्ट तक और रेस्तरां से लेकर बाकी सभी कारोबार मंदिर की वजह से ही चलते हैं। एक दुकानदार ने कहा कि महाकाल में दर्शनव्यवस्था वीआईपी हो गई है जिससे आम लोगों को दिक्कत होती है। पैसे लेकर दर्शन कराना और सुबह की आरती बेचना आम है।

महाकाल की दर्शनव्यवस्था ठीक होनी चाहिए
उन्होंने कहा कि राम मंदिर जब बनेगा तब बनेगा लेकिन महाकाल में दर्शनव्यवस्था ठीक होनी चाहिए। बात फिर शिप्रा नदी की भी होने लगती है। कहते हैं कि शिप्रा पहले प्रवाहमान थी, धीरे धीरे सिकुड़ भी गई और स्वच्छ भी नहीं है। महानिर्वाणी अखाड़े के महंत अवधेश पुरी कहते हैं कि शिप्रा का उद्धार बीजेपी ने किया है और आगे भी उन्हीं से उम्मीद हैं।

वह कहते हैं कि नर्मदा को शिप्रा से मिलाना कांग्रेस ने असंभव काम मान लिया था उसे भी संभव बीजेपी ने ही किया है। हालांकि बातचीत में यह भी स्वीकार करते हैं कि बीजेपी की सीटें कम हो सकती हैं लेकिन इसका दोष वह उम्मीदवारों के मत्थे डालते हैं और कहते हैं कि पार्टी की कोई गलती नहीं।

एससी एसटी ऐक्ट से नाराज सवर्ण
पंडित महेश पुजारी कहते हैं कि एससी-एसटी ऐक्ट में संशोधन करने से सवर्ण नाराज हैं। जब सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन किया था तो सरकार को कानून लाने की क्या जरूरत थी। वह कहते हैं कि स्वर्ण समाज ने अपने मान सम्मान की रक्षा के लिए मन तो बनाया है और अगर कड़े मन से वोट करेंगे तो इस बार परिवर्तन हो सकता है।

कुछ सीटों पर हो सकता है बदलाव
वह स्पाक्स का भी जिक्र करते हैं और कहते हैं वे लोग भले ना जीतें पर अपनी ताकत तो दिखा ही सकते हैं। कुछ युवा बातचीत को बीच में रोकते हैं और कहते हैं कि हमें तो रोजगार चाहिए। जो सरकार रोजगार देगी हम तो उसे चुनेंगे। यह पूछने पर कि किस पर भरोसा है- बीजेपी या कांग्रेस। मुस्कुराकर एक युवक कहता है कि वैसे तो सभी पार्टियां दुख देने वाली ही हैं, जनता को सभी दुखी ही करते हैं। उज्जैन जिले में विधानसभा की सात सीटें हैं जिनमें सभी सीटों पर पिछली बार बीजेपी ही जीती थी। यहां लोग मान रहे हैं कि कुछ सीटों पर बदलाव हो सकता है।