चौथा कार्यकाल बहुत मुश्किल.

चौथा कार्यकाल बहुत मुश्किल.

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी लगातार चौथी बार विधानसभा चुनाव जीतने का प्रयास कर रही है। भारत में आमतौर पर चौथी बार लगातार चुनाव जीतना मुश्किल होता है। ऐतिहासिक रूप से भी इसकी मिसाल कम है कि कोई पार्टी लगातार चौथा चुनाव जीते। आजादी के बाद हुए चौथे चुनाव में 1967 से ही बदलाव शुरू हुआ था। करीब नौ राज्यों में कांग्रेस को हरा कर संविद सरकारें बनीं थीं।

इसके कुछ अपवाद हैं। जैसे पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी लगातार सात चुनाव जीती या त्रिपुरा में चार चुनाव लगातार जीती। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी लगातार जीत रही है और ओड़िशा में भी बीजू जनता दल चार चुनाव जीत चुकी है। पूर्वोत्तर में सिक्किम भी एक अपवाद राज्य है। पर इन पांच राज्यों के अपवाद के अलावा पिछले चार दशक की राजनीति में किसी पार्टी के चौथी बार चुनाव जीतने की मिसाल नहीं है।

दिल्ली में शीला दीक्षित ने बहुत काम किए थे, जिसे लोग आज भी याद करते हैं पर वे अपना चौथा चुनाव हार गईं। इसी तरह असम में भी कांग्रेस पार्टी लगातार तीन चुनाव जीती थी पर 2016 के चुनाव में वह चौथी बार जीत नहीं हासिल कर सकी। लालू प्रसाद यादव भी इसकी मिसाल हैं। बिहार में तमाम राजनीतिक समीकरण होने और राजनीतिक नब्ज पर पकड़ के बावजूद वे 2005 में अपना चौथा चुनाव हार गए। उससे पहले वे भी लगातार तीन चुनाव जीत चुके थे। इसी तरह महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन लगातार तीन चुनाव जीता पर चौथे चुनाव में उसकी हार हो गई।

आमतौर पर जो स्विच स्टेट नहीं हैं यानी जहां हर पांच साल सत्ता नहीं बदलती है वहां भी दो चुनाव के बाद तीसरी बार में बदलाव हो जाता है। जैसे हरियाणा, आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के साथ हुआ या पंजाब में अकाली दल के साथ हुआ। कुछ ही राज्यों में तीसरी बार जीतने का रिकार्ड है और चौथी बार की जीत अपवाद है। तभी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अगर भाजपा जीतती है तो यह रिकार्ड बनेगा और अपवाद वाले राज्यों में ये दोनों राज्य भी शामिल हो जाएंगे।