मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव: बंपर वोटिंग वाले इन 11 जिलों की 47 सीटें तय करेंगीं हार-जीत

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव: बंपर वोटिंग वाले इन 11 जिलों की 47 सीटें तय करेंगीं हार-जीत.

मध्यप्रदेश वह प्रदेश है मतदाताओं को बहुत समझदार माना जाता है। यहां मतदाता कांग्रेस और बीजेपी दोनों को मौका देती रही है। जब मन हुआ तो दोबारा मौका दिया और नहीं हुआ, तो सत्ता छीनते भी देर नहीं लगती। बीजेपी को लगातार तीन बार से जिताती रही है जनता, जबकि इससे पहले लगातार दो बार कांग्रेस का शासन रहा। मगर, मतदाताओं के मूड को कैसे समझा जाए? जब वोटर समझदार होते हैं तो यह सवाल चुनौती बन जाती है।

1990 में बढ़े 4.36 फीसदी वोट, उखड़ गयी थी कांग्रेस

राम मंदिर आंदोलन के समय बीजेपी 1990 में सत्ता में आयी थी। तब कांग्रेस की सरकार उखड़ गयी। अगर वोटिंग ट्रेंड में इसे समझें तो ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि विगत विधानसभा चुनाव के मुकाबले तब 4.36 फीसदी वोट बढ़ गये थे। सुंदरलाल पटवा की ताजपोशी हुई। अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद जब चार सरकारें बर्खास्त हुई थीं तो मध्यप्रदेश उनमें से एक था। 1993 में मध्यप्रदेश के लोगों ने बम्पर मतदान किया। 6.03 प्रतिशत अधिक मतदान। मूड बदलाव का था। बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी सरकार की बर्खास्तगी पर भी मतदाताओं ने एक तरह से मुहर लगायी। कांग्रेस ने वापसी की। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने।

बम्पर वोटिंग यानी एन्टी इनकम्बेन्सी

5 साल बाद 1998 में जब चुनाव हुए तो मतदान का प्रतिशत 1993 के मुकाबले जस का तस था। 60.22 फीसदी। इसका मतलब ये निकला कि जनता को बदलाव में कोई रुचि नहीं है। दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी। 2003 में वोटिंग प्रतिशत में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा देखने को मिला। यह वास्तव में दिग्विजय सरकार के ख़िलाफ़ इनकम्बेन्सी थी। विगत चुनाव के मुकाबले 7.03 प्रतिशत वोट अधिक पड़े। नतीजा रहा बदलाव। दिग्विजय सिंह की सरकार उखड़ गयी। उमा भारती के रूप में प्रदेश को पहली साध्वी मुख्यमंत्री मिलीं।

मामूली रूप से वोट बढ़ने पर नहीं होता है बदलाव

2008 में मतदान का प्रतिशत 69.28 फीसदी रहा था। करीब दो फीसदी वोट बढ़े थे। मगर, इसमें सत्ता परिवर्तन का मूड नहीं था। बीजेपी दोबारा सत्ता में आयी। शिवराज सिंह का ताज बचा रह गया। 2013 में 2.79 फीसदी मतदान बढ़ा और कुल 72.07 फीसदी वोटरों ने वोट डाले। वोटों में यह बढ़ोतरी भी सत्ता परिवर्तन के ख्याल से मामूली रही। शिवराज सिंह सत्ता में बने रहे।

2018 में 2.78 फीसद वोट बढ़ने के क्या हैं मायने?

2018 में मतदाताओं ने 74.85 फीसदी वोट डाले हैं। पिछले चुनाव के मुकाबले यह 2.78 फीसदी अधिक है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि इसका क्या मतलब निकाला जाए? चूकि मतदान प्रतिशत में यही इज़ाफ़ा 2013 में भी हुआ था और तब बीजेपी की ताकत बढ़ी थी। ऐसे में यह मतलब निकालना कि इस बार बीजेपी को नुकसान होगा, एकतरफा होगा। मध्यप्रदेश में 52 ज़िले हैं। वोटिंग के रुझान को समझने के ख्याल से यहां वे 30 ज़िले महत्वपूर्ण हैं जहां 75 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ हैं। इनमें शामिल हैं

30 ज़िले जहां हुए हैं 75% से ज्यादा मतदान

श्योपुर, शिवपुरी, गुना, शहडोल, उमरिया, डिंडोरी, मंडला, बालाघाट, सिवनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल, हरदा, होशंगाबाद, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, आगर-मालवा, शाजापुर, देवास, खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी, झाबुआ, धार, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर और नीमच।

इन 30 ज़िलों में भी वे 11 ज़िले अहम हैं जहां 4 फीसदी से ज्यादा मतदान का प्रतिशत बढ़ा है। ये इसलिए अहम हैं क्योंकि मध्यप्रदेश में जब कभी भी सत्ता परिवर्तन होता आया है तब वोटों का प्रतिशत 4 फीसदी से ज्यादा रहा है।

बम्पर वोटिंग वाले 11 ज़िले जहां हैं 47 सीटें

जिले —– सीटें —– 2013 —– 2018 —– BJP —– CONG

इंदौर —– 9 —– 70.61% —– 75% —– 8 —– 1

रतलाम —– 5 —– 77.98% —– 82% —– 5 —– 0

धार —– 7 —– 71. 95% —– 75% —– 5 —– 2

झाबुआ —– 3 —– 69.04% —– 72% —– 2 —– 0

अलीराजपुर —– 2 —– 55.77% —– 63% —– 2 —– 0

नीमच —– 3 —– 78.04% —– 82% —– 3 —– 0

श्योपुर —– 2 —– 74.43% —– 78% —– 1 —– 1

ग्वालियर —– 6 —– 60.93% —– 64% —– 4 —– 2

पन्ना —– 3 —– 68.35% —– 72% —– 2 —– 1

अनूपपुर —– 3 —– 71.02% —– 74% —– 1 —– 2

रायसेन —– 4 —– 71.50% —– 75% —– 4 —– 0

कुल —– 47 —– 37 —– 9

11 ज़िलों की 47 सीटों पर नज़र डालें

अगर इन 11 ज़िलों की 47 सीटों पर नज़र डालें, तो बीजेपी के पास 37 सीटें हैं जबकि कांग्रेस के पास 9. वोटों के प्रतिशत के आधार पर अगर यहां बदलाव को मानें, तो बीजेपी को इन 11 ज़िलों में 28 सीटों का नुकसान निर्णायक हो सकता है।

मालवा-निमाड़ तय करेगी किसका होगा मध्यप्रदेश

जिले—– सीटें—– 2013—– 2018—– BJP—– CONG

इंदौर—– 9—– 70.61%—– 75%—– 8—– 1

रतलाम—– 5—– 77.98%—– 82%—– 5—– 0

धार—– 7—– 71.95%—– 75%—– 5—– 2

झाबुआ—– 3—– 69.04%—– 72%—– 2—– 0

अलीराजपुर—– 2—– 55.77%—– 63%—– 2—– 0

नीमच—– 3—– 78.04%—– 82%—– 3—– 0

अधिक वोटिंग वाले इन 11 ज़िलों में भी 6 ज़िले मालवा-निमाड़ के हैं। ये वो इलाका है जहां किसान सबसे ज्यादा शिवराज सरकार से नाराज़ रहे हैं। इनमें इंदौर, रतलाम, धार, झाबुआ, अलीराजपुर और नीमच शामिल हैं। यहां 29 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 25 सीटें बीजेपी के पास है। कांग्रेस के पास महज 3 सीटें हैं। अगर यहां बम्पर वोटिंग का बुरा असर बीजेपी को झेलना पड़ा, तो सत्ता में वापसी की राह वाकई मुश्किल हो जाएगी। वैसे भी, इतिहास रहा है कि जो मालवा-निमाड़ में बढ़त लेता है, सत्ता उसी की होती है।

श्योपुर-ग्वालियर के संकेत समझना भी जरूरी

जिले—–सीटें—–2013—–2018—–BJP—–CONG

श्योपुर—–2—–74.43%—–78%—–1—–1

ग्वालियर—–6—–60.93%—–64%—–4—–2

संकेत श्योपुर और ग्वालियर से भी लेते हैं जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया फैक्टर के साथ-साथ सपाक्स, और दलित फैक्टर भी अहम हैं। यहां की 6 सीटों में से 4 को बचा पाना बीजेपी के लिए मुश्किल दिख रहा है कि क्योंकि बम्पर वोटिंग ऐसा ही संकेत दे रही है।

मध्य प्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस के बीच मुकाबला

जिले—–सीटें—–2013—–2018—–BJP—–CONG

पन्ना—–3—–68.35%—–72%—–2—–1

अनूपपुर—–3—–71.02%—–74%—–1—–2

रायसेन—–4—–71.50%—–75%—–4—–0

पन्ना में 3 सीटें हैं जिनमें बीजेपी के पास 2 और कांग्रेस के पास एक सीट है। अनूपपुर में भी तीन सीटें हैं जिनमें बीजेपी के पास एक और कांग्रेस के पास 2 सीटें हैं। रायसेन में चार की सभी चार सीटें बीजेपी के पास हैं। यहां 10 में से 7 सीटों को बचाना बीजेपी के लिए जरूरी होगा, जो वोटों के ट्रेंड के हिसाब से मुश्किल दिख रहा है।

एक और फैक्टर है जिसका ज़िक्र करना ज़रूरी है। वह है महिलाओं की वोटिंग का ट्रेंड। इस बार महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले 1.98 फीसदी अधिक वोट डाले हैं। यह नया फैक्टर है। अगर मामा के रूप में मशहूर रहे शिवराज सिंह को महिलाओं ने ये वोट डाले हैं, तो निश्चित रूप से वे सुरक्षित हो जाएंगे। मगर, अभी दावे से ये कहना मुश्किल है क्योंकि मध्यप्रदेश वो प्रदेश है जहां महिलाओं के प्रति अपराध के मामले में यह दुनिया में यह कुख्यात हो चुका है।

अगर सभी फैक्टर को जोड़कर देखें तो मध्यप्रदेश में बदलाव और यथास्थिति रखने वाले वोटरों में गजब की स्पर्धा है। क्षेत्रवार समीकरण ही कांटे की टक्कर में बीजेपी और कांग्रेस में से किसी एक को लीड दिलाएगी। फिलहाल शिवराज के लिए राह थोड़ी मुश्किल और कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण दिख रही है।