अधिक मतदान होने से 66 मौजूदा विधायकों पर हार का खतरा, बीते चुनाव में 19 विधायक हुए थे पराजित

प्रदेश में इस बार कुल मिलाकर ढाई फीसदी अधिक मतदान होना पाया गया है। इसमें सबसे अहम उन 66 सीटों का रहा है जहां पर 80 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है। अब इन सीटों पर यही मतदान 66 मौजूदा विधायकों के लिए खतरा बना हुआ है। दरअसल अधिक मतदान वाली सीटों पर मौजूदा विधायकों के हारने का खतरा अधिक होता है। जिन सीटों पर 80 फसदी या फिर उससे अधिक मतदान हुआ है, वहां पर वर्तमान में 53 भाजपा और 11 पर कांगे्रस के विधायक हैं, जबकि दो सीटों पर निर्दलीय विधायक हैं। हालांकि यह दोनों

निर्दलीय इस बार भाजपा के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं। 2013 में प्रदेश की 28 सीटों पर ही 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। उस दौरान 28 में से 19 मौजूदा विधायकों को हार का सामना करना पड़ा था। यही वजह है कि अधिक मतदान वाली सीटों के मौजूदा विधायकों की दिल की धडक़ने बढ़ा दी है। क्योकि आमतौर पर माना जाता है कि जिस सीट पर भारी मतदान होता है वहां तो बदलाव की बयार होती ही है लेकिन जिन सीटों पर औसत से 15 प्रतिशत कम मतदान होता है वहां भी वोटर विधायक को हरा देता है।
मालवा में अधिक मतदान
मालवा में इस बार अधिक मतदान हुा है। अंचल की 66 में से 31 सीटों पर 80 फीसदी मतदान हुआ है। अंचल की धार, झाबुआ, अलिराजपुर, बड़वानी जिले की जिन सीटों पर 80 प्रतिशत से कम वेाट पड़े हैं उसमें कारण वहां से मजदूरी के लिए मतदाताओं का पलायन एक अहम कारण माना गया है। अगर ऐसा नहीं होता तो यहां पर भी अधिक मतदान होना तय था। अंचल में अधिक मतदान की वजह किसानों की नाराजगी, जयस, सपाक्स के आंदोलन को माना जा रहा है। इसी तरह से महाकौशल की 38 में से 15 सीटों पर तो मध्य में 36 में से 17 सीटों पर 80 फसदी से ज्यादा वोट पड़े। बुंदेलखंड की सिर्फ एक सीट खुरई पर 80 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ। वहीं ग्वालियर-चंबल अंचल की दो सीटों पिछोर और चाचौड़ा में 80 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़े।
9 सीटों पर 60 प्रतिशत से कम मतदान
इस बार प्रदेश की 9 सीटे ऐसी है जहां 60 प्रतिशत से कम वोट पड़े हैं। इसमें से 6 सीटें ग्वालियर-चंबल अंचल की है। 2013 के चुनाव में भी 60 फीसदी से कम मतदान वाली सीटों की सं या 9 थी।
सबसे ज्यादा इछावर, सबसे कम जोबट
सीहोर जिले की इछावर सीट पर प्रदेश में सबसे ज्यादा 91.03 प्रतिशत वोट पड़े। यहां पुरुषों के मतदान का प्रतिशत 96.31 है। जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। वहीं प्रदेश में सबसे कम मतदान अलिराजपुर जिले की जोबट सीट पर हुआ है। यहां 52.31 प्रतिशत वोट पड़े।
80 प्रतिशत मतदान मतलब बदलाव की गुंजाइश
मध्यप्रदेश में वोटिंग का इतिहास बताता है कि जिस सीट पर बंपर वोटिंग होती है वहां वर्तमान विधायक के खिलाफ वोट गिरता है। 2013 के चुनाव में 28 सीटों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़ा, इनमें से 19 सीटों पर मतदाताओं ने विधायक की एंटीइंकबैंसी को स्वीकार करते हुए उसे हटा कर दूसरे दल को मौका दे दिया। इस तरह 80 फीसदी वोट वाली 67 प्रतिशत सीटों पर बदलाव हुआ। दिलचस्प यह है कि 2013 मेंं थांदला में एक निर्दलीय ने भी इस दम पर जीत हासिल की कि वहां 80 प्रतिशत से ज्यादा वोट पड़े।
कम वोटिंग पर भी होता है बदलाव
एक रोचक तथ्य यह भी है कि प्रदेश में हुए औसत मतदान से 15 फीसदी कम वोट जिस सीट पर होता है तो वहां भी बदलाव की संभावना अधिक होती है। यानी कि वर्तमान विधायक का समर्थक मतदाता मतदान से दूरी बना लेता है और वहां मतदान प्रतिशत नीचे आने के साथ ही उलटफेर हो जाता है। 2013 में जिन 9 सीटों पर 60 प्रतिशत से कम वोट पड़े उसमें से 7 सीटों पर वोटर ने वर्तमान विधायक को हरा दिया। एक सीट ऐसी थी जहां वर्तमान विधायक ने क्षेत्र बदल लिया लिहाजा उसकी पार्टी को नया चेहरा देने से जीत मिल गई। सिर्फ एक ही विधायक 60 प्रतिशत से कम वोट के बाद भी अपनी सीट बचा सका।