देश के सियासी समीकरणों में तेजी से उलट फेर करेंगे 5 राज्यों के नतीजे, राजग-विपक्ष में बढ़ेगी हलचल

आगामी 11 दिसंबर को आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे देश के सियासी समीकरण पर सीधा प्रभाव डालेंगे। अनुकूल परिणाम केंद्र की राजनीति में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का सियासी कद एकाएक बढ़ा देगा तो इसके उलट प्रतिकूल परिणाम आने पर कांग्रेस के पास आगामी लोकसभा चुनाव में क्षत्रपों के सामने हथियार डालने के अलावा विकल्प नहीं बचेगा। ठीक इसी तरह अनुकूल परिणाम से राजग में भाजपा पर हमलावर दल अचानक रक्षात्मक होंगे, वहीं मनमाफिक परिणाम नहीं आने पर दूसरे सहयोगी भी भाजपा पर दबाव का सियासी दांव आजमाएंगे।

लोकसभा चुनाव से पहले करो या मरो
लोकसभा चुनाव से पहले करो या मरो के कारण बच चुके 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव पर सभी दलों की निगाहें लगी हुई हैं। इन चुनावों ने भाजपा और कांग्रेस के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं की सियासी परिस्थिति पैदा कर दी है। दोनों दलों को पता है कि ठीक लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इस चुनाव के नतीजे से ही भविष्य में गठबंधन की राजनीति की दिशा तय होगी। भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि इन पांच राज्यों में से तीन राज्यों में पार्टी सत्तारूढ़ है, जबकि कांग्रेस के पास सकारात्मक परिणाम लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

राजग का समीकरण
वर्तमान परिस्थति की बात करें तो टीडीपी की विदाई के बाद शिवसेना, रालोसपा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी विभिन्न कारणों से भाजपा पर हमलावर है। इनमें शिवसेना पहले ही लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं करने की घोषणा कर चुकी है। दूसरे दलों में लोजपा ने बिहार में सीटों केबंटवारे को हरी झंडी नहीं दी है तो सीटों की संख्या से संतुष्ट जदयू जल्द से जल्द सीट चिन्हित करना चाहती है। अपना दल के शीर्ष नेतृत्व का भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से बेहतर संबंध हैं, मगर पार्टी यूपी में राज्य भाजपा से बेहद खफा है। ऐसे में सकारात्मक परिणाम जहां सहयोगियों को रक्षात्मक बनने पर मजबूर करेंगे, वहीं नकारात्मक परिणाम आने पर ये सभी दल एक साथ भाजपा पर सियासी दबाव बनाएंगे।

कांग्रेस की आखिरी उम्मीद
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जदएस को सरकार की कमान दे कर भाजपा को सत्ता से दूर रखने के बाद इन राज्यों के चुनाव कांग्रेस की आखिरी उम्मीद है। बेहतर सफलता न सिर्फ राहुल का सियासी कद बढ़ाएगा, बल्कि यूपीए को नए सिरे से जिंदा भी करेगा। इसके उलट स्थिति में भाजपा को सत्ता से दूर करने केलिए कांग्रेस के सामने क्षेत्रीय दलों और क्षत्रपों के आगे हथियार डालने का ही एकमात्र विकल्प बचेगा। नकारात्मक नतीजे सबसे अधिक कांग्रेस के मुखिया राहुल गांधी की छवि को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाएंगे। इसके अलावा पार्टी में उनकी नरम हिंदुत्व की रणनीति पर भी सवाल खड़े होंगे।