मंत्रियों के बाद स्पीकर का नाम होगा सामने

प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अब कमलनाथ के सामने अपने मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही नए विधानसभा अध्यक्ष के चयन की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। सदन में इस बार कांग्रेस के सामने विपक्ष काफी मजबूत है। ऐसे में सरकार हमेशा ही उसके निशाने पर रहेगी। यही वजह है कि कांग्रेस सरकार को एसे विधानसभा अध्यक्ष की आवश्यकता है जो विपक्ष के हमलों से का सामना करते हुए सदन की कार्रवाही सुचारू रूप से चला सके। इसके लिए सरकार गहन संसदीय

अनुभवी के साथ प्रभावी विधायक को यह पद सौंपना चाहती है। यही वजह है कि कांग्रेस की नजर इस पद के लिए वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह पर जाकर अटक रही है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल के गठन के बाद नए अध्यक्ष का नाम तय किया जाएगा।
श्रीनिवास को किया जाता है याद
कांग्रेस सरकार में लगातार 10 साल विस अध्यक्ष रहे श्रीनिवास तिवारी को आज भी उनके कार्यकाल के लिए याद किया जाता है। उनकी कार्यशैली की वजह से ही उन्हें विंध्य के सफेद शेर के रूप में पहचान मिली थी। वे सख्त मिजाज के साथ ही प्रभावशाली कार्यशैली के धनी थे। उनके समय आसंदी के आदेश के अवहेलना करने की कोई भी सदस्य सोच भी नहीं सकता था। भाजपा सरकार में ईश्वरदास रोहाणी सख्त मिजाज होने के साथ तीखी नोंकझोंक को चिरपरिचित चुटीले अंदाज से सदन के माहौल को हल्का कर देते थे , लेकिन सीतासरन शर्मा का कार्यकाल कोई असर नहीं छोड़ पाया। कई बार वे सत्तापक्ष के भी दबाव में नजर आते हुए दिखते थे।
डॉ गोविंद सिंह
ताकत:- 7वीं बार विधायक बने हैं और कांगे्रस शासनकाल में मंत्री भी रहे। सरकार और विपक्ष में रहते हुए सदन में बेहतर परफारमेंस रहा। वरिष्ठता के साथ संसदीय अनुभव भी है। अनुभव रखने वालों की टीम भी साथ है। सदन के सभापति भी रहे।
कमजोरी:- सख्त मिजाजी के चलते टू द प्वाइंट बात करते हैं। कई बार आवेश में आ जाते हैं।
ब्रजेंद्र सिंह राठौर-
ताकत:- चौथी बार विधायक चुने गए। प्रश्र एवं संदर्भ समिति के सदस्स, विशिष्ट समिति एवं उपक्रम समिति, प्राक्लन समिति में सदस्य रहे हैं। संसदीय विधायी और विषयों की प्रस्तुति बेहतर ढंग से करते हैं। संसदीय परंपराओं का पालन करते हैं।
कमजोरी:- बोलचाल में संयम बरतते हैं लेकिर परिवार की दबंगाई आड़े आती है।
एनपी प्रजापति-
ताकत:- कांगे्रस सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। वरिष्ठ विधायक होने के साथ संसदीय अनुभव भी है। सभी को साधने की कला में माहिर हैं। सदन की समितियों के सदस्य रहे हैं।
कमजोरी:- कामकाज में सख्त मिजाजी बाधा है। इस कारण इनके सहयोग कम हैं। कई बार इनके करीबी नाराज हो जाते हैं।
्रकेपी सिंह-
ताकत:- छठी बार विधायक चुने गए हैं। वर्ष 1993 एवं 1998 में कांगे्रस शासनकाल में मंत्री रहे। संसदीय ज्ञान के धनी होने के साथ ही टीम लीडर की भी क्षमता। सदन में भी सक्रियता रही है।
कमजोरी:- बिना लाग लपेट के अपनी बात कहने के कारण कई बार अपने ही बुरा मान जाते हैं। इस कारण समर्थक भी कम हैं।
बाला बच्चन-
्रताकत:- पांचवी बार विधायक चुने गए। कांगे्रस सरकार में लगातार मंत्री रहे। सदन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। पिछले कार्यकाल में सदन में उप नेता प्रतिपक्ष होने थे। वर्तमान में कांगे्रस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
कमजोरी:- व्यावहारिक हैं, लेकिन काम को लेकर लोगों के बीच अपना प्रभाव कम ही छोड़ पाते हैं।
सज्जन सिंह वर्मा-
ताकत:- वरिष्ठ विधायक के साथ लोकसभा सदस्य भी रहे हैं। प्रदेश में कांगे्रस सरकार के दौरान कैबिनेट मंत्री भी रहे इसलिए सरकारी कामकाज का बेहतर अनुभव के साथ संसदीय अनुभव है।
कमजोरी:- बेबाकी ऐसी है कि कई बार समर्थक नाराज हो जाते हैं। तुनकमिजाजी भी आड़े आती है।