प्रदेश में विधानसभा चुनावों से कुछ माह पहले एट्रोसिटी एक्ट को लेकर हुए हिंसक आंदोलन से डरे राजनैतिक दल भारी परेशान थे। इसका तोड़ निकालने के लिए दलों द्वारा टिकट वितरण के दौरान भी तमाम कवायद की गई। इन दोनो ही वर्गों के बीच शुरु हुई इस लड़ाई का असर चुनाव परिणामों पर भी पड़ा। यही वजह है कि इस बार सदन पहुंचले वाले सइदस्यों में सवर्ण विधायकों की संख्या कम हो गई है। बीती विधानसभा में जहां सवर्ण विधायकों की संख्या 37 फीसदी थी, वहीं इस बार यह आंकड़ा कम होकर 31 फीसदी ही रह गई है। खास बात यह है कि इनमें भी ब्राह्मण विधायकों की संख्या में कमी आयी है।
सवर्णों में सर्वाधिक 40 विधायक ठाकुर
एट्रोसिट एक्ट का असर यह रहा कि राजनीतिक दलों ने वोट बैंक का ध्यान रखते हुए कई सीटों पर उम्मीदवार बदले, लेकिन यह बदलाव ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाया। ग्वालियर-चंबल संभाग की सीटों पर सबसे ज्यादा
नुकसान हुआ। उच्च जातियों में देखा जाए सफलता पाने में ठाकुर वर्ग सबसे आगे है। इनकी संख्या 40 है।
मुस्लिम विधायकों की संख्या हुई दो
इसके बाद ब्राह्मण 26 सीटों के साथ दूसरे नम्बर पर हैं। पिछली बार 29 ब्राह्मण चुनाव जीते थे। मुस्लिम विधायकों की संख्या इस बार बढ़ी है। पिछले चुनाव में एक मात्र मुस्लिम विधायक आरिफ अकील थे। इस बार अकील के साथ आरिफ मसूद भी सदन में नजर आएंगे। ये दोनों विधायक भोपाल से हैं।
सवर्ण ने सवर्ण को दी मात…
प्रदेश के 19 विधानसभा क्षेत्र ऐसे रहे, जहां सवर्ण में ही सवर्ण को टक्कर दी। इनमें अटेर, भिण्ड, मेहगांव, भितरवार, चंदेरी, खुरई, राजनगर, मैहर, सेमरिया, रीवा, विजयराघवगढ़, चौरई, हाटपिपल्या प्रमुख हैं। कुछ विधानसभा तो ऐसी हैं, जहां पुराने प्रतिद्वंदी आमने-सामने थे। कुछ ने पुरानी हार का बदला इस चुनाव में लिया। अटेर इसी श्रेणी में है।
यहां पुराना हिसाब चुकता किया
उप चुनाव में यहां कांग्रेस के हेमंत कटारे के सामने भाजपा के अरविंद भदौरिया थे। भदौरिया चुनाव हार गए। इस चुनाव में भदौरिया ने हेमंत को हराकर पुराना हिसाब चुकता कर लिया। पाटन में भाजपा के अजय विश्नोई ने नीलेश अवस्थी को हराकर पुराना हिसाब चुकता कर दिया। भितरवार में भाजपा के अनूप मिश्रा कांग्रेस के लाखन सिंह हारे थे, इस बार भी अनूप उन्हीं से हारे। ऐसी ही स्थिति खुरई की भी रही। यहां भाजपा के भूपेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के अरुणोदय चौबे को पिछला चुनाव हराया था, इस बार भी उन्हें हराया।