रुक जाना नहीं योजना बनी कमाई का जरिया, मंगल भारत की विशेष रिपोर्ट

मंगल भारत की विशेष रिपोर्ट

प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा शुरु की गई रुक जाना नहीं योजना स्कूल शिक्षा विभाग के लिए कमाई का बड़ा जरिया बन गई है। वैसे तो इस योजना को छात्र व छात्राओं को परीक्षा का दूसरा मौका देकर उनके साल बर्बाद होने से बचाने के लिए शुरु किया गया था ,लेकिन यह योजना शुरुआती दौर में ही फेल होती दिख रही है। इस योजना से विद्यार्थीयों को कम सरकार को अधिक फायदा हुआ है। दरअसल इस योजना के तहत पहले चरण में प्रदेश में करीब डेढ लाख विद्यार्थी शामिल हुए थे , लेििकन उसमे से लगभग 91 हजार फेल हो गए। इन युवाओं को इस

योजना के मे शामिल होने के लिए भरी भरकम राशि बतौर फीस के रूप में चुकानी पड़ी। पहले चरण में ही सरकार को फीस के रूप में करीब 10 करोड़ की आय हुई। अब पहले चरण में असफल होने वालों को एक बार फिर इतनी ही फीस भरकर दूसरे चरण की परीक्षा देनी पड़ रही है।
इस तरह वूसली गई फीस
सामान्य वर्ग के विद्यार्थी के दो विषयों में परीक्षा देने पर 1210 रुपए और छह विषयों में परीक्षा देने पर 2060 रुपए फीस देनी पड़ती है तो हायर सेकंडरी में यही फीस दो विषयों के लिए 1460 और पांच विषयों के लिए 2210 रुपए हो जाती है। एसटी-एसटी, बीपीएल एवं विकलांगों को इसमें कुछ छूट मिलती है, लेकिन फिर भी फीस हजारों में ही बैठती है। प्रदेेश के डेढ़ लाख विद्यार्थियों ने औसतन एक हजार रुपए फीस भी दी तो आंकड़ा 15 करोड़ तक पहुंच जाता है।
बार-बार मौके को पास होने की गारंटी मान रहे
शिक्षाविद् एसएन राय बताते हैं इससे शिक्षा का स्तर गिर रहा है। योजना अपने आप में अच्छी है, लेकिन किसी चीज को जरूरत से ज्यादा आसान बना देना भी एक तरह एक पीढ़ी को शार्टकट देने जैसा है जिससे इनका मेहनत में विश्वास घटता है। असफल युवाओं में बढ़ते अवसाद और आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या को देखकर यह योजना लाई गई थी, लेकिन योजना के दो चरण और फिर ओपर स्कूल की परीक्षा का विकल्प मिल जाने के बाद युवा इसे सुविधा मान बैठे हैं।