नई दिल्ली। पांच महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जल्द ही उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन का पुनर्गठन करने वाले हैं। न सिर्फ वे नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा करेंगे बल्कि कम से कम चार कार्यकारी अध्यक्षों की भी नियुक्ति किए जाने की संभावना है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से हर कार्यकारी अध्यक्ष को 20 सीटों का प्रभारी बनाया जाएगा। हर कार्यकारी अध्यक्ष के साथ कांग्रेस-शासित सरकारों के कम से कम दो-दो मंत्रियों को इन सीटों का प्रभार दिया जाएगा।
उत्तर प्रदेश में अपने खोए वोटबैंक को वापस पाने की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस का अगला अध्यक्ष किसी ब्राह्मण को बनाया जा सकता है। फिलहाल इस दौड़ में वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी, जितिन प्रसाद, ललितेश त्रिपाठी और राजेश मिश्र का नाम चर्चा में है। जबकि कार्यकारी अध्यक्ष अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ी समुदाय से बनाए जाएंगे। उनमें सवर्ण जातियों का भी प्रतिनिधित्व रहेगा।
कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि सपा-बसपा गठबंधन से उसे दो या तीन सीटों से ज्यादा मिलने की उम्मीद नहीं है। इसीलिए पार्टी सभी 80 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण होने से कांग्रेस का सवर्ण वोट जो राम मंदिर आंदोलन के चलते भाजपा में चला गया था, वह कांग्रेस में वापस लौट सकता है। जाहिर है इससे भाजपा को नुकसान होगा और सपा-बसपा को फायदा।
तीन राज्यों में मिली विजय के विश्लेषण से भी कांग्रेस उत्साहित है। इससे मालूम चला है कि दलित, आदिवासी और अति-पिछड़ी जातियों में भी कांग्रेस की लोकप्रियता बढ़ी है। खासतौर पर बसपा और अजीत जोगी के बावजूद छत्तीसगढ़ में जीत उसे कमज़ोर वर्गों के कांग्रेस की ओर झुकाव से ही मिली है।
छत्तीसगढ़ में धमाकेदार जीत की रणनीति बनाने वाले राज्य कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया को भी उत्तर प्रदेश में अहम भूमिका मिल सकती है। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष राज बब्बर ने 21 मार्च को ही पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा नामंज़ूर करते हुए नई व्यवस्था होने तक पद पर बने रहने का कहा था।