निर्वाचन आयोग को लौटाने होंगे अब 20 करोड़ रुपए

  • सरपंची के चक्कर में कई को गंवानी पड़ी जमीन व सम्पत्ति.


  • भोपाल/मंंगल भारत /मनीष द्विवेदी।
    प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भले ही अब निरस्त हो गए हैं, लेकिन अब भी सरकार, राजनैतिक दल और प्रत्याशी इसमें बुरी तरह से उलझे हुए हैं।
    इसमें सरकार के बाद अगर कोई सर्वाधिक उलझा है तो वह है इन चुनाव में नामाकंन करने वाले ग्रामीण। दरअसल यह चुनाव ऐसे समय निरस्त किए गए हैं जबकि, प्रदेश में चुनाव प्रचार पूरी तरह से जोर पकड़ चुका था। यही वजह है कि अब आयोग को प्रत्याशियों द्वारा जमा कराई गई जमानत की राशि तो लौटानी ही पड़ रही है साथ ही इन चुनावों की विभिन्न तैयारियों पर खर्च की गई राशि का भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके उलट उन प्रत्याशियों को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है जिन्होंने चुनावी प्रचार के लिए अपनी संपत्ति बेंचकर या फिर उसे गिरवी रखकर राशि का इंतजाम किया था। दरअसल प्रदेश में यह चुनाव तीन चरणों में 6 जनवरी से होने जा रहे थे, जो सरकार की नाकामी की वजह से पिछड़ा वर्ग के आरक्षण विवाद की भेंट चढ़ गए हैं।
    यह चुनाव ऐसे समय निरस्त किया गया है जब पहले चरण के मतदान के लिए महज नौ दिन का समय ही रह गया था। इसकी वजह से अब पहले चरण के लिए नामांकन दाखिल कर चुके करीब 2.15 लाख उम्मीदवारों की फीस वापसी की कवायद करनी होगी। दरअसल तीन दिन पहले प्रदेश की शिव सरकार ने उस अध्यादेश को रद्द कर दिया था, जिसके आधार पर यह चुनाव कराए जा रहे थे। इसलिए आयोग को भी चुनाव निरस्त करने का कदम उठाना पड़ा। अब आयोग इसका हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में देगा। इससे पहले राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह द्वारा  पंचायत एवं ग्रामीण विकास के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव, वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ सहित दो अन्य वकीलों से चर्चा करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के दो अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर विचार विमर्श किया और उसके बाद चुनाव निरस्त करने का फैसला किया।
    प्रत्याशियों को लगा 250 करोड़ का फटका
    पंचायत चुनावों की घोषणा के साथ ही गांव -गांव में चुनावी बिसात बिछना शुरू हो गई थी। इसके चलते संरपची से लेकर जिला पंचायत पद के दावेदारों ने तमाम तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर तो बड़ी राशि खर्च की ही साथ ही प्रचार के दौरान भी बड़ी राशि सामूहिक भोज से लेकर अन्य तरह के प्रचार के साधनों पर भी खर्च कर दी गई। यही नहीं अधिकांश प्रत्याशियों ने अपनी प्रचार समाग्री तक छपवा ली थी और उसका जोर शोर से वितरण भी शुरू करा दिया था। एक अनुमान के मुताबिक जिला और जनपद सदस्य तथा सरपंच-पंच के लिए मैदान में उतरे उम्मीदवारों ने नामांकन के बाद से ही सवा महीने में चुनाव प्रचार में लगभग 250 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए थे। खास बात यह है कि यह चुनाव गैर दलीय आधार पर होने से इन उम्मीदवारों में से कई ने तो अपनी जमीनों को तो कई ने घर और जेवरात तक बेंच कर या फिर गिरवी रखकर चुनाव खर्च के लिए पैसे जुटाए, उनकी यह राशि अब बेकार चली गई है। गौरतलब है कि 21 नवंबर से शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया के बाद पहले दो चरण के मतदान की तैयारी पूरी की जा चुकी थी। चुनाव निरस्त होने तक जिला और जनपद सदस्य, सरपंच और पंच के लिए 2 लाख 15 हजार 35 आवेदन मिले थे, जिनमें एसटी, एससी, ओबीसी और महिलाओं के लिए नामांकन के साथ अमानत राशि के रूप में आधी फीस जमा करना थी, जिनकी संख्या 78 हजार के करीब थी। इसके अलावा करीब 1 लाख 37 हजार उम्मीदवारों ने पूरी फीस जमा की थी। इन उम्मीदवारों से अमानत राशि करीब 20 करोड़ रुपए जमा हुई थी, जो अब वापस की जानी है।
    सरकारी खजाने को भी हुआ 15 करोड़ का नुकसान
    चुनावों की घोषणा के बाद इसकी तैयारियों पर अब तक आयोग करीब 15 करोड़ रुपए खर्च कर चुका था। यह राशि चुनाव ऐलान के बाद से प्रशासनिक मीटिंग बुलाने, ईवीएम की चैकिंग, मतपत्र छपवाने आदि पर खर्च की गई है। इसी तरह से कई अन्य तैयारियों पर भी राशि खर्च की गई। इसके अलावा चुनावी आचार संहिता होने की वजह से विकास कार्य भी ठप रहे। यही नहीं इस दौरान हजारों की संख्या में कई विभागों के ताबदले भी करना पड़े, जिन पर भी बड़ी राशि का खर्च आया। अगर इन सभी पर 10 करोड़ का अनुमानित खर्च भी मान लिया जाए तो खर्च की गई राशि का आंकड़ा 25 करोड़ तक पहुंच जाता है।
    बन रहे इस तरह के हालात
    मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव रद्द करने के फैसले के बाद अब जिन प्रत्याशियों ने चुनाव की तैयारियां कर ली थी वो काफी परेशान नजर आ रहे हैं। इसको लेकर एक आॅडियो जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें सीएम हेल्पलाइन पर बात करने वाला शख्स चुनाव निरस्त किये जाने के कारण खुद का नुकसान होने की शिकायत कर रहा है। इतना ही नहीं वो कहता है कि अगर उसकी शिकायत नहीं लिखी गई तो वो आत्महत्या कर लेगा। शिकायतकर्ता भारत सिंह परिहार खुद को रतलाम के आलोट का पंचायत चुनाव का प्रत्याशी बता रहा है और जनपद प्रतिनिधि के लिए प्रत्याशी का नामांकन भरे जाने की बात कहता है। वह शिकायत में कह रहा है कि पंचायत चुनाव निरस्त होने से उसे 50 हजार का नुकसान हुआ है। अगर उसकी शिकायत नहीं सुनी गई तो वो आत्महत्या कर लेगा। सीएम हेल्पलाइन पर की गई इस शिकायत का आॅडियो काफी वायरल है और चर्चा का विषय भी बना हुआ है।