ओबीसी आरक्षण को कांग्रेस बना रही चुनावी हथियार

-कमलनाथ ने जयस और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और भीम सेना का समर्थन लिया.


भोपाल/ मनीष द्विवेदी।ओबीसी आरक्षण मामले के पहले तक प्रदेश प्रदेश में पूरी तरह से शिव सरकार के सामने बैकफुट पर नजर आ रही थी, लेकिन अब वही कांग्रेस अब भाजपा के मुकाबले फ्रंट फुट पर नजर आने लगी है। इसकी वजह है प्रदेश सरकार के रणनीतिकारों की नाकामी। बगैर पूर्व तैयारी के सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में न केवल ओबीसी आरक्षण को लागू करा दिया, बल्कि छह साल पुराने आरक्षण पर ही यह चुनाव कराने की तैयारी कर ली थी। कोर्ट द्वारा यह आरक्षण समाप्त कर इस मामले में जमकर फटकार भी लगाई गई। इसके बाद पंचायत चुनावों को निरस्त कर दिया गया। अब भाजपा को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने जयस, गोगापा और भीम आर्मी जैसे छोटे दलों का साथ हासिल करने के प्रयास तेज कर दिए हैं। जिसमें उसे शुरुआती सफलता मिलती हुई दिख रही है। ओबीसी आरक्षण मामले में जहां सरकार और उसके दल के नेता कांग्रेस को घेरने में लग गए, लेकिन कांग्रेस ने उनके इसी हथियार का उपयोग पलटवार के रूप में करना शुरू कर दिया। कांग्रेस का यह पलटवार अब भाजपा के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने ओबीसी आरक्षण के मामले को उप्र में चुनावी हाथियार के रुप में बड़ा मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। इसके लिए उप्र के उन विधानसभा सीटों का चयन किया गया है, जो मप्र की सीमा से लगी हुई है और उन पर मप्र की राजनीति का असर भी पड़ता है। इसको लेकर कांग्रेस द्वारा रणनीति तैयार  करने के बीच ओबीसी वर्ग के कुछ नेताओं ने उप्र के पड़ौसी जिलों में डेरा तक जमा लिया है। इन नेताओं द्वारा वहां पर लोगों को यह बताने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं कि भाजपा ओबीसी विरोधी है। वास्तव में भाजपा जो कहती है वह करती नहीं है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के समय हुए काम और फिर भाजपा सरकार द्वारा इसमें किए गए परिवर्तन की जानकारी भी लोगों को दी जा रही है। इस तरह का प्रयोग उप्र की सीमाई इलाकों वाली 49 सीटों पर कांग्रेस द्वारा शुरू भी किया जा चुका है। दरअसल उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 49 विधानसभा सीटें मध्यप्रदेश की सीमा से जुड़ी हुई हैं। इन सभी सीटों पर मध्यप्रदेश के नेताओं का अच्छा प्रभाव माना जाता है। आगरा, इटावा, जालौन, झांसी, महोबा, बांदा, ललितपुर, चित्रकूट, प्रयागराज, मिजार्पुर और सोनभद्र जिलों की सीमा मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य अंचल से जुड़ी हुई हैं। यह वे सीटें हैं जिन पर ओबीसी वर्ग का प्रभाव बेहद अहम है। यह वे सीटें हैं, जो कभी कांग्रेस के प्रभाव वाली मानी जाती रही हैं। इनमें से अधिकांश पर अब भाजपा का प्रभाव है। भाजपा का प्रभाव तोड़ने के लिए ही अब कांग्रेस ने इन सीटों पर ओबीसी का मुद्दा बनाकर अपनी जमीन तैयार करने की रणनीति तैयार की है। राजनीति के साथ क्षेत्रीय नजरिए से भी इस क्षेत्र के कार्यकर्ताओं का भी प्रभाव रहता है। मध्यप्रदेश कांग्रेस ने इन्हीं सीटों पर फोकस किया है। मध्यप्रदेश से लगे होने के कारण कुछ विधानसभा सीट तो ऐसी हैं जहां मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेताओं का आए दिन आना जाना होता है। वहां के राजनैतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में भी वे शिरकत करते हैं। ऐसे में उन्हेंं वहां लोगों की बीच पहुंचने में ज्यादा दिक्कत नहीं है। मध्यप्रदेश से अन्य नेताओं की भी ड्यूटी वहां लगाई जा रही है, वे वहां चरणबद्ध तरीके से काम करेंगे।
पटेल दस दिनों से हैं सक्रिय
मप्र कांग्रेस ओबीसी विभाग के अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल अपनी टीम के साथ वहां सक्रिय हैं। पटेल बीते दस दिनों से उत्तर प्रदेश में हैं। उन्हें प्रयागराज, बनारस, मिर्जापुर, कर्वी और मऊ जिलों की जिम्मेदारी दी गई है। उप्र का यह हिस्सा मप्र के विंध्य और बुंदेलखंड से ज्यादा दूर नहीं माना जाता है। इसलिए मप्र में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा यहां पर प्रचारित किया जा रहा है। पटेल ने दस दिनों में इसी मुद्दे पर यहां के लोगों से बातचीत की और पार्टी के लोगों को इसे प्रचारित करने का प्लान तैयार किया। उत्तर प्रदेश में मध्य प्रदेश भाजपा को ओबीसी के हितैषी न होने का आरोप लगाते हुए मुद्दा बनाया जा रहा है।
 जयस व गोगोपा को भी साध रही कांग्रेस
इधर कांग्रेस द्वारा मप्र में भी अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अभी से गोगोपा और जयस जैसे आदिवासी और भीम आर्मी जैसे राजनैतिक संगठनों को साधने का काम किया जा रहा है। सूत्रों की माने तो प्रदेश में भाजपा के खिलाफ सभी संगठनों और राजनीतिक दलों को कांग्रेस एक साथ लाना चाह रही है। इसके लिए छोटे-छोटे आंदोलनों के जरिए यह काम किया जा रहा जिसमें इन संगठनों और राजनीतिक दलों को सक्रिय किया जा सके। यही वजह है कि आदिवासी सहित अनुसूचित जाति और ओबीसी तक के आंदोलन और प्रदर्शन किए जा रहे हैं। कांग्रेस द्वारा इसके अलावा जसय और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को आंदोलनों के लिए मदद भी की जा रही है। यही वजह है कि नेमावर हत्याकांड में न्याय यात्रा में कांग्रेस भले ही सीधे तौर पर नजर नहीं आ रही है, लेकिन कांग्रेस उसका पूरा समर्थन कर रही है। यह यात्रा नेमावर हत्याकांड की सीबीआई जांच करवाने की मांग को लेकर निकाला जा रहा था, लेकिन सीबीआई जांच की प्रदेश सरकार द्वारा सिफारिश के बाद भी अन्य मांगों को लेकर न्याय यात्रा जारी है। इधर ओबीसी महापंचायत द्वारा मुख्यमंत्री निवास घेराव को लेकर भी एससी और एसटी वर्ग के कई संगठनों के साथ ही जयस और गोगोपा भी अपना समर्थन दे चुकी है। हालांकि कांग्रेस ने सीधे तौर पर अपना समर्थन नहीं दिया, लेकिन कांग्रेस नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए।
पूर्व में कांग्रेस को हो चुका है फायदा
मप्र में इसी तरह के हालात बीते विधानसभा चुनाव के समय भी बने थे। उस समय सीएम शिवराज सिंह चौहान द्वारा आरक्षण को लेकर माई का लाल वाला बयान दिया गया था, जिसके परिणाम स्वरुप कांग्रेस को फायदा हुआ था और भाजपा को नुकसान। यही वजह रही थी कांग्रेस प्रदेश में डेढ़ दशक बाद सरकार बनाने में सफल  रही थी।