विंध्य की राजनीति में…. भाजपा के कुलीनों में कलह

भोपाल।मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। विंध्य की

राजनीति में इन दिनों भाजपा के कुलीनों के बीच जमकर कलह चल रही है। हालात यह है कि कहीं यह ढकी छिपी है तो कहीं यह खुलकर सामने आ रही है। इस कलह की वजह से विंध्य अंचल में गचफच की स्थिति बनी हुई है। एक तरफ जहां पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ला की विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम से पटरी नहीं बैठती है तो वहीं केदारनाथ शुक्ला भी इन दिनों अपने इलाके के नेताओं से नाराज चल रहे हैं। इनकी अपनी वजहें भी हैं, लेकिन इन दिनों सतना जिले की राजनीति में भाजपा के दो नेताओं के बीच पहले से ही वर्चस्व को लेकर आपसी राजनैतिक अदावत है, लेकिन अब यही अदावत पृथ्क विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर एक बार फिर सामने आ गई है। यह नेता हैं सतना सांसद गणेश सिंह और मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी। यह दोनों ही नेता लगातार अपने-अपने इलाकों से चुनाव जीतते आ रहे हैं।
दरअसल त्रिपाठी जहां पृथ्क विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर लगातार अलख जगाए हुए हैं तो वहीं गणेश सिंह इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं। एक ही दल में होने के बाद भी जब भी इन दोनों नेताओं को मौका मिलता है वे एक दूसरे पर हमला करने को कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। दोनों नेताओं के बीच की खाई बीते कुछ समय पहले हुए रैंगाव विधानसभा सीट के उपचुनाव के परिणामों से और बढ़ गई है। इसकी वजह है गणेश सिंह समर्थित भाजपा प्रत्याशी का बुरी तरह से हार जाना। इसकी वजह सिंह त्रिपाठी को ही मानते हैं। दरअसल उपचुनाव के प्रचार के दौरान त्रिपाठी ने रैगांव पहुंचकर पृथक विंध्य प्रदेश की मांग का मुद्दा उठा दिया था।
इस सीट पर भाजपा ने गणेश सिंह की पसंद की महिला उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा था और उन्हें ही जिताने की जिम्मेदारी दी थी। भाजपा प्रत्याशी की हार की वजह से सांसद गणेश सिंह की पार्टी में जमकर किरकिरी हो चुकी है। इसे गणेश सिंह भुला नही पा रहे हैं। यही वजह है कि अब उन्होंने अलग विंध्य प्रदेश की मांग को काल्पनिक विषय तक बता दिया है। इसके बाद त्रिपाठी ने पलटवार करते हुए विंध्य की उपेक्षा के लिए उन जैसे लोगों को दोषी तक बता दिया। इस मामले में मीडिया से बात करते हुए सांसद सिंह का कहना है कि तीन चार जिलों को मिला कर अलग राज्य कैसे बन सकता है। वास्तव में यह संभव विषय है ही नहीं। इसलिए इस पर बात ही नहीं की जानी चाहिए। उनके इस बयान के बाद विंध्य इलाके में नई बहस छिड़ गई है। उधर, इस बयान के बाद भाजपा के मैहर विधायक और पृथ्क विंध्य प्रदेश के लिए अलख जगाने वाले नारायण त्रिपाठी न उन पर बढ़ा हमला करते हुए कहा है कि आप जैसे लोगों की वजह से ही विंध्य उपेक्षित है। उन्होंने उनके बयान को विंध्य के लिए अपमान वाला बताया। उनका कहना है कि आजादी के बाद 1948 में विंध्य प्रदेश बना था और 56 में इसका विलय हो गया। राष्ट्रगीत में भी इसका उल्लेख है। उनका कहना है कि अलग राज्य बनने से व्यापार से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य सहित हर क्षेत्र में फायदा होगा। उनका कहना है कि संघ की परिकल्पना में भी महाकौशल राज्य है। उनका कहना है कि यह तो परिसीमन के बाद ही पता चल सकेगा की राज्य की सीमा क्या होगी और उसमें कितने जिले होंगे। दरअसल त्रिपाठी लंबे समय से लगातार अलग राज्य की मांग कर रहे हैं। इसके लिए वे विंध्य इलाके में वह लगातार अभियान चला रहे हैं।
दरअसल, 1 नवंबर 1956 को विंध्य प्रदेश का विभाजन करते हुए एमपी की स्थापना की गई थी, जिसके बाद से अलग विंध्य की आवाज उठती रही है। 2000 में छत्तीसगढ़ का विभाजन होने के साथ ही विंध्य क्षेत्र की आशाएं डगमगा गई थी। मगर विंध्य वासियों ने अपना संघर्ष जारी रखा और अब आज एक बार फिर विंध्य क्षेत्र को प्रदेश बनाने की आवाज उठ रही है। त्रिपाठी इस आवाज को तेजी के साथ बुलंद कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह चाहते हैं कि पुराना विंध्य हमें लौटा दिया जाए, जिसके लिए लगातार अब जनसंपर्क भी करेंगे और लोगों को विंध्य प्रदेश के इतिहास के बारे में बताते रहेंगे। उधर भाजपा के कुलीनों की हालत यह है कि लंबे समय तक मंत्री रहने की वजह से राजेन्द्र शुक्ला विंध्य अंचल में अपने हिसाब से प्रशासनिक व राजनैतिक गोटिंया फिट करते रहे, लेकिन समय का फेर है कि अब उनके विरोधी माने जाने वाले पार्टी के ही वरिष्ठ विधायक गौतम विधानसभा अध्यक्ष है और शुक्ला मंत्री भी नहीं बन पाए है। ऐसे में अब अंचल में गौतम का जलवा है। अफसरों की इलाके में पदस्थापना से लेकर कामकाज में अब गौतम का प्रभाव दिखने लगा है।
यह दिए जा रहे हैं तर्क
बीजेपी विधायक का तर्क है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सपना था कि छोटे राज्य बनाए जाएं। इसलिए उन्होंने पृथक विंध्य प्रदेश की मांग की है। इसके अलावा विधायक ने कहा कि अगर हम विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर शांत हुए तो बुंदेलखंड को प्रदेश बना दिया जाएगा। यही वजह है कि अपनी मांग को लेकर लगातार वे इलाके में सक्रिय बने रहते हैं। खास बात यह है कि त्रिपाठी के आंदोलन को कांग्रेस भी पहले ही अपना समर्थन दे चुकी है। पूर्व में कांग्रेस शासन में मंत्री रहे मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कह चुके हैं कि कांग्रेस पार्टी हमेशा से छोटे राज्यों के गठन का समर्थन करती आयी है। छोटे राज्य बनाने से विकास तेजी से होता है। लेकिन विंध्य को अलग प्रदेश बनाने के मुद्दे पर पार्टी विधानसभा में अपना रुख उसी समय तय करेगी।
सुर्खियों में रहते हैं नारायण त्रिपाठी
बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी अपने बयानों से लगातार चर्चा में बने रहते हैं।  2019 में नारायण त्रिपाठी ने विधानसभा सत्र के दौरान एक बिल पर हुई वोटिंग में कमलनाथ सरकार का समर्थन किया था। नारायण त्रिपाठी ने उस वक्त कहा था कि वे मैहर को अलग जिला बनाए जाने की मांग को लेकर सीएम कमलनाथ से मुलाकात कर रहे थे। खास बात यह है कमलनाथ सरकार ने भी उनकी मांग को मानते हुए मैहर को जिला बनाने की घोषणा की थी, लेकिन प्रदेश में बीजेपी सरकार आते ही यह प्रस्ताव खारिज हो गया। जैसे ही प्रदेश में कांग्रेस सरकार अस्थिर हुई तो नारायण त्रिपाठी ने भी यूटर्न ले लिया और उन्होंने कहा था कि वे बीजेपी के साथ है। शिवराज सरकार की सत्ता में वापसी के बाद से ही नारायण त्रिपाठी अब लगातार अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव बीजेपी ने विंध्य अंचल की 30 विधानसभा सीटों में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन 2020 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद शिवराज मंत्रिमंडल में विंध्य अंचल के कई वरिष्ठ विधायकों को जगह नहीं मिली है। ऐसे में त्रिपाठी की विंध्य प्रदेश को अलग राज्य बनाए जाने की मांग सरकार पर दबाव की राजनीति का एक हिस्सा भी माना जा रहा है।