ग्वालियर-चंबल भाजपा में असंतोष से दिग्गज चिंतित

निगम-मंडलों में नियुक्तियों के बाद क्षेत्र में गुटबाजी बढऩे लगी.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। सत्ता, संगठन के बाद अब निगम-मंडलों की नियुक्तियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को महत्व दिए जाने के बाद ग्वालियर-चंबल संभाग भाजपा में असंतोष बढ़ रहा है। इससे भाजपा के क्षत्रपों की चिंता बढ़ गई है। उधर, रणनीतिकार इन दिनों अपने क्षत्रपों के बीच शक्ति सन्तुलन एवं सामंजस्य स्थापित करने में जुटे हुए हैं।
उधर सिंधिया के गृहनगर के ही वरिष्ठ नेता और केंद्र में मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने यह कहकर असन्तोष के सुरों को थामने की कोशिश की है कि निगम मंडलों में जो भी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बने हैं वे भाजपा के ही हैं और काम करने वालों को ही जिम्मेदारी दी गई है। गौरतलब है की अंचल में सिंधिया खेमा लगातार भारी पड़ता जा रहा है। निगम-मंडलों में हुई नियुक्तियों में अन्य वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों को वेटिंग लिस्ट में डालने से असन्तोष बढ़ गया है। सांसद विवेक शेजवलकर अपने समर्थक भाजपा जिलाध्यक्ष कमल माखीजानी को किसी निगम-बोर्ड में देखना चाहते थे लेकिन निगम- मंडलों की ताजा फेहरिस्त में उनकी यह मुराद पूरी नहीं हुई। कभी ग्वालियर में महल विरोधी राजनीति के प्रतीक माने जाने वाले पूर्व सांसद जयभान सिंह पवैया ने भी अपने कुछेक समर्थकों के नाम दे रखे थे, वे भी इस सूची में जगह नहीं पा सके हैं।

खाली कुर्सियों पर जमावट की तैयारी
सूत्रों के अनुसार भाजपा के इतर खेमों के नेताओं को यह दिलासा देकर मनाया जा रहा है कि अभी जीडीए, मेला, साडा जैसे प्राधिकरणों के अलावा कई निगम-मंडलों में अध्यक्ष-  उपाध्यक्ष की कुर्सियां खाली हैं, जहां उन्हें मौका दिया ही जाएगा। ग्वालियर भाजपा के अध्यक्ष रहने के अलावा मेला प्राधिकरण के भी चेयरमैन रह चुके राज चड्डा जैसे असन्तुष्ट नेता सोशल मीडिया पर जनसंघ के समय से पार्टी की मजबूती के लिए अपने दिए योगदान की याद दिलाते हुए भड़ास निकाल रहे हैं। कई और नेता भी ऐसी ही टिप्पणियां कर रहे हैं। बहरहाल, पार्टी संगठन यह संदेश देने की कवायद में जुटा है कि भाजपा में छत्रप जैसी कोई संस्कृति नहीं है और दायित्वों का मिलना किसी के प्रति व्यक्तिगत वफादारी के बजाए पार्टी के प्रति समर्पण व काम पर निर्भर करता है लेकिन कार्यकर्ताओं की ओर से यही जवाब मिल रहा है कि वे असलियत से वाकिफ हैं।

गुटीय संतुलन बिठाने की चुनौती
ग्वालियर-चंबल में सत्तापक्ष में मची इसी खींचतान के कारण ग्वालियर, भिण्ड एवं मुरैना में पार्टी की जिला कार्यसमिति घोषित नहीं हो पा रही हैं। तीनों जिलों में गुटीय सन्तुलन बिठाने की चुनौती है। ग्वालियर-चंबल में नौ संगठनात्मक जिले हैं, जिनमें इन तीन को छोड़कर बाकी की कार्यकारिणी आ चुकी है, जिसमें सिंधिया के साथ भाजपा में आए नेताओं को एडजस्ट किया गया है। इसी  महीने सिंधिया चार बार ग्वालियर का कई दिनी दौरा कर चुके हैं। पहली बार उन्होंने पार्टी की मण्डल स्तरीय बैठक में भी शिरकत की, जिससे जाहिर होता है कि वे भविष्य की राजनीति के चलते पार्टी संगठन पर पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इसके उलट सिंधिया के भाजपा के जिला प्रशिक्षण वर्ग में शामिल न होने पर सियासी जानकारों को अचंभा हुआ।

भारी न पड़ जाए गुटबाजी
भाजपा नेतृत्व को यह डर सता रहा है कि प्रदेश की सत्ता में भाजपा की वापसी और हारी हुई बाजी को जिताने में अहम किरदार रहे सिंधिया के समर्थकों को थोक में कुर्सियां बांटने से कहीं अंचल के गुटीय समीकरण न गड़बड़ा जाएं। ग्वालियर में उपचुनाव हारे दोनों सिंधिया समर्थकों मुन्नालाल गोयल एवं इमरतीदेवी को निगम अध्यक्ष बनाया गया है, इसी प्रकार मुरैना में दोनों पराजित सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक रघुराज सिंह कंसाना एवं गिर्राज डंडोतिया भी निगम की अध्यक्षी से नवाजे गए हैं। मुरैना जिले में ही सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व मंत्री एंदलसिंह कंसाना भी खुशकिस्मत रहे, हालांकि वे कांग्रेस में रहते सिंधिया के बजाए दिग्विजय के ज्यादा नजदीक माने जाते थे। भिंड में उपचुनाव में पराजित हुए रणवीर सिंह जाटव सिंधिया की गुडबुक में रहने के चलते निगम अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे हैं। इसी जिले में सिंधिया समर्थक ओपीएस भदौरिया पहले से ही शिवराज सिंह की कैबिनेट में हैं।