दुकानों की संख्या बढ़े और मुनाफा कम होने से… अवैध शराब पर लगेगा अंकुश

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। कोरोना संक्रमण ने

सबसे अधिक चोट अर्थव्यवस्था पर  की है। यही वजह है कि मप्र सरकार अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं। ऐसे में आपदा के दंश से निजात पाने के लिए आबकारी नीति बड़ा संबल बन सकती है। अगर सरकार नई आबकारी नीति में शराब की दुकानों की संख्या बढ़ाकर शराब की ड्यूटी घटा देती है तो इससे अर्थव्यवस्था को बूस्टर डोज तो मिलेगा ही साथ ही अवैध शराब के कारोबार और जहरीली शराब से मौत के मामलों पर अंकुश लगेगा।
गौरतलब है कि कोरोना की तीसरी लहर के बीच प्रदेश के नए बजट की तैयारियों के साथ प्रदेश में आबकारी व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। लेकिन सवाल उठाने वालों को इस बात का एहसास नहीं है कि कोरोना संक्रमण के दौर में जब उद्योग धंधे मंदे हो गए थे, तब कोरोना के इलाज के संसाधन जुटाने के लिए सरकार के पास आय के जो स्त्रोत थे, उनमें नया कर्ज लेना और मदिरा से मिलने वाला राजस्व ही प्रमुख थे। सरकार को भी इस बात पर गौर करना होगा कि प्रदेश में शराब से होने वाली आय राजस्व का प्रमुख स्रोत है। इसलिए सरकार को अब ऐसी नीति बनानी होगी, जिसमें प्रदेश में सस्ती दर पर अधिक से अधिक शराब बिके। ताकि लोगों को जहरीली शराब खरीदने के लिए मजबूर न होना पड़े।
जरूरत के समय घटादिए लक्ष्य
आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि जब प्रदेश को सबसे ज्यादा धन की जरुरत थी, तब सरकारी खजाने में दूसरे नंबर पर योगदान देने वाला आबकारी महकमा सहारा तो बना, लेकिन पहले की भांति नहीं। आबकारी विभाग ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में 10773.29 करोड़ रुपए की कमाई की थी। जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में उसकी आय 1252.33 करोड़ रुपए से घट कर 9520.96 करोड़ रुपए रह गई। पड़ोसी राज्यों की तरफ देखें तो पता चलता है कि मप्र से ज्यादा आबकारी राजस्व वे राज्य अर्जित करते हैं। उनकी दुकानें ज्यादा हैं। वहीं खबर आ रही है कि अपनी नई आबकारी नीति में उत्तरप्रदेश शराब महंगी नहीं करेगा। इसके उलट मप्र में हर साल दाम बढ़ाने को सरकार तत्पर दिखाई देती है। इसकी एक वजह तो कम लाइसेंसी होना है और दूसरी वजह है सरकार की मंशा।
पड़ोसी राज्यों में सस्ती शराब
आकंड़े गवाही दे रहे हैं कि मप्र में आस-पास के राज्यों से महंगी शराब बिकती है। मप्र की तुलना में सीमावर्ती राज्यों में देशी मदिरा करीब 55 प्रतिशत सस्ती है। विदेशी मदिरा का भी यही हाल है। सबसे ज्यादा खपत वाले रेगुलर ब्रांड की 750 एमएल की एमआरपी मध्यप्रदेश में लगभग 700 रुपए है जो पड़ोसी राज्यों से 220 से 350 रुपए ज्यादा है। वहीं मदिरा उपलब्धता की बात करें तो प्रति एक लाख आबादी पर मप्र में सबसे कम 4 दुकान हैं। उत्तर प्रदेश में प्रति एक लाख जनसंख्या पर दुकानों की संख्या 29 और राजस्थान में 12 है।
हैरिटेज मदिरा नीति लागू करे सरकार
प्रदेश में सरकार ने जो महुआ हैरिटेज मदिरा नीति बनाई है वह अवैध शराब के निर्माण और तस्करी रोकने में कारगर सिद्ध होगी। इससे जहां आदिवासियों को रोजगार मिलेगा, वहीं लोगों को आसानी से अच्छी क्वालिटी की देसी शराब मिलेगी। सरकार को यह नीति लागू करनी चाहिए। इस नीति के लागू होने से रोजगार व्यवस्था का विकास होगा, महुआ बीनने वालों की आय में वृद्धि होगी, मेक इन इंडिया के तहत जनजातियों में उद्यमिता का विकास होगा, महुआ आधारित पर्यटन बढ़ेगा, मानकीकृत मदिरा निर्माण से स्वास्थ्य की रक्षा भी होगी। वहीं जनजातीय की पहचान एवं गौरव में वृद्धि होगी, महुआ हैरिटेज मदिरा में राज्य देश में लीडर बनेगा तथा निर्यात से शासकीय राजस्व में दीर्घकालीन वृद्धि होगी।
शराब ठेकेदारों की मोनोपॉली तोड़ने की जरूरत
मुरैना में जहरीली शराब से लोगों की मौत के बाद गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी की रिपोर्ट सरकार के लिए आइना है। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रदेश में शराब ठेकेदारों की मोनोपॉली से महंगी शराब मिलना, अन्य राज्यों से शराब का अवैध कारोबार, लायसेंसी दुकान की तुलना में अवैध कारोबारी द्वारा बहुत सस्ती शराब बेचना, दुकान का दूर होना जैसे कारणों से अवैध शराब का कारोबार होता है। इसे रोकने के लिए कड़े प्रावधान के साथ सरकार को अपनी आबकारी नीति में संशोधन करना होगा। 2018-19 में भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नीति में बदलाव कर ठेकेदारों की मोनोपॉली का मार्ग खोल दिया। अब समय है कि व्यापक राज्य हित में सरकार फिर ज्यादा राजस्व देने वाले आबकारी विभाग की नीति को राज्य के और अनुकूल बनाए। इसके लिए दुकान बढ़ानी पड़े या उपदुकान खोलनी पड़े खोलें, लेकिन जहरीली, अमानक और महंगी शराब से प्रदेशवासियों को बचाएं। उनके होने वाली आय उनके ही भले के लिए खर्च करें।
मुख्यमंत्री को करना होगा विचार
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में शराब की नई दुकान नहीं खोलने देने के अपने संकल्प पर अडिग हैं। वे नर्मदा नदी से पांच किमी दूर तक की 58 शराब दुकानें बंद करा चुके हैं। मुख्यमंत्री की नशामुक्ति की सोच अपनी जगह सही है, लेकिन वक्त और परिस्थितियां इशारा कर रही हैं कि सरकार को अपनी इस सोच में बदलाव करना होगा। प्रदेश में नई शराब दुकान खोलने का प्रस्ताव या विचार वाणिज्यिक कर विभाग की बैठकों में लगभग हर साल आता है। प्रदेश में अवैध शराब बिक्री के मामले सामने आते हैं। अमानक और जहरीली कच्ची मदिरा से मौत के मामले भी पिछले दिनों आए हैं। ऐसे मौकों पर कैबिनेट की औपचारिक-अनौपचारिक बैठकों में कई मंत्री प्रदेश में शराब की नई दुकानें या उपदुकानें खोलने का सुझाव दे चुके हैं। तर्क यह भी दिया जाता है कि जिसे पीना है वह तो पियेगा ही। इसलिए नशाबंदी के लिए जागरूकता अभियान के साथ ही नई दुकानें खोलने पर विचार किया जाना चाहिए। लोगों के इस शौक का फायदा आबकारी माफिया उठाता है। मिलावटी शराब महंगे दाम पर बेचना, सस्ती सामग्री से जहरीली शराब बना कर बेच देना जैसे कई मामले प्रकाश में आते रहे हैं।