पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के मायने …

हिंदी पट्टी के आम वोटर का मोदी पर भरोसा आठ साल

बाद भी जस का तस कायम है। जन धन योजना से लेकर मुफ्त राशन जैसी योजनाओं के जरिये गरीब, संसाधनहीन आबादी को लाभार्थी वर्ग में तब्दील करके एक बड़ी संख्या वाला वफादार वोटर समुदाय खड़ा करने का काम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी की दोबारा जीत का आधार बना है। महिला वोटर के इसमें अतिरिक्त जुड़ाव ने जीत को मजबूती दी है। योगी आदित्यनाथ बीजेपी में मोदी के बाद दूसरे ऐसे तगड़े नेता बन कर उभरे हैं जो कट्टर, सख्त तेवरों के साथ हिंदुत्ववादी ध्रुवीकरण का एजेंडा मजबूती से लागू कर सकते हैं, यानी कट्टर हिंदू वोटर की भाषा में कहें तो मुसलमानों को टाइट रख सकते हैं। शहरी मध्यवर्ग में योगी की लोकप्रियता बढ़ने का यह एक प्रमुख कारण है। बुलडोजर उनकी दबंगई का एक प्रतीक बना है। इसका असर यह होगा कि योगी अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में मजबूत होने के साथ साथ बीजेपी की केंद्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण चेहरा बन कर उभरेंगे। मुमकिन है अमित शाह से भी ज्यादा । हालांकि, इसका यह मतलब कतई नहीं कि योगी केंद्र में मंत्री बनने जा रहे हैं। संगठन में उनका कद बढ़ना तय है। हिंदुत्व के पोस्टर ब्वाय तो योगी हैं ही।
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में बीजेपी का सबसे मजबूत प्रतिपक्ष बन कर उभरे हैं। उन्होंने अकेले दम पर समाजवादी पार्टी की सीटों की संख्या दहाई से सैकड़ा पार पहुंचाई है । बीजेपी से यह चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी भी कर सकते थे अगर विपक्ष के नेता के तौर पर 2017 से लगातार मेहनत कर रहे होते। उन्होंने अपने आलस्य, मनमौजीपन और अकड़ की कीमत चुकाई है जो, उन्हें लंबे समय तक परेशान करेगी।
अखिलेश के गठबंधनों का फायदा उन्हें नहीं मिला है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में बीजेपी का बहुत बढ़िया प्रदर्शन बताता है कि जयंत चौधरी से हाथ मिलाने का फायदा नहीं हुआ।
मायावती दलित राजनीति के एक नेता के तौर पर अब पूरी तरह निष्प्रभावी और अप्रासंगिक हो चुकी हैं। चुनाव लड़ने में निष्क्रियता की वजह से बहुजन समाज पार्टी का काफी वोट बीजेपी के खाते में गया है।
कांग्रेस यूपी में कुछ कर नहीं पाई, पंजाब गंवा दिया, उत्तराखंड में लौट नहीं पाई। सिद्धू जैसे भस्मासुर को सिर चढ़ा कर नेतृत्व ने कुल्हाड़ी पर पैर दे मारा । नतीजा सामने है। अब विपक्ष की गोलबंदी में कांग्रेस की साख और आवाज पहले से भी ज्यादा कमजोर होगी।
पंजाब जीतकर अरविंद केजरीवाल का स्टारडम विपक्ष में बहुत मजबूत हुआ है। आम आदमी पार्टी इकलौता क्षेत्रीय दल बन गया है जो दो जगह सरकार बना सका है। केजरीवाल मोदी की ही शैली में राजनीति करते हैं, लोकप्रियता का मॉडल भी वही है, नेतृत्व का तरीका भी वही है। मोदी के खिलाफ चुनाव भी लड़ चुके हैं।
बीजेपी की अजेयता जिस ध्रुवीकरण वाले नैरेटिव, अकूत संसाधन, विस्तृत संगठन, प्रचार तंत्र और हर कीमत पर चुनाव जीतने के जुनून , जमीनी मेहनत की वजह से कायम हुई है, उसको विपक्ष अपने कमजोर संगठन, सुस्ती, बिखराव, कम मेहनत और किसी मजबूत वैकल्पिक नैरेटिव की जगह तात्कालिक चुनावी प्रोग्रामिंग से न काट सकता है, न जीत सकता है।