- भ्रष्ट अफसरों के रसूख के चलते नियमों का नहीं किया जा रहा पालन
भोपाल.मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र का स्कूल
शिक्षा विभाग अफसरों की कार्यप्रणाली की वजह से हमेशा ही चर्चा में बना रहता है। इस विभाग में पदस्थ अफसरों का रसूख ऐसा है कि वे अब तो अपने ही विभागीय मंत्री इंदर सिंह परमार तक के आदेशों व निर्देशों तक को मानने से साफ इंकार कर देते हैं और विभाग के मंत्री उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई तक नहीं कर पाते हैं। इसकी वजह है विभाग के वे आला अफसर जो अपने चहेते अफसरों को बचाने के लिए मंत्री की नोटशीट से लेकर आदेश निर्देशों के पत्रों को भी फाइलों में दफन कर देते हैं। यही नहीं अगर कदाचरण या फिर भ्रष्टाचार का मामला है तो फिर विभाग से कार्रवाई करने की उम्मीद करना बेमानी ही है। इसकी वजह से विभाग में इस तरह के कई मामलों को दफन कर दिया गया है। यह मामले तब भी दफन कर दिए गए , जब इनमें से कुछ मामलों में तो विभाग के मंत्री तक ने कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे। इनमें लोकायुक्त द्वारा की गई कार्रवाई तक के मामले शामिल हैं। जबकि शासन के नियमानुसार लोकायुक्त द्वारा कार्रवाई किए जाने पर 48 घंटे के अंदर आरोपी को निलंबित करना या ट्रांसफर करना होता है।
लेकिन विभाग के अफसर एक ऐसे ही मामले को दबाने के लिए उस पर पांच माह से कुंडली मारकर बैठक हुए हैं। लोकायुक्त की जद में आए विभाग के एक अफसर सहित तीन कर्मचारी अब तक जस की तस जिम्मेदारी को संम्हाल रहे हैं। यही नहीं हालात यह है कि इस विभाग के अफसर अब तो विभागीय अफसर मंत्री द्वारा मांगी गई जानकारी तक उनके स्टाफ को देने तक से इंकार करने लगे हैं। इसका उदाहरण है हाल ही में लोक शिक्षण में पदस्थ अपर संचालक स्तर के अधिकारी से मंत्री द्वारा मांगी गई प्रिंटिंग से संबंधित जानकारी लेने जब उनका स्टाफ पहुंचा , तो उन्होंने देने से ही साफ इंकार कर दिया। इससे खफा मंत्री ने आनन फानन में अपर संचालक के स्थानांतरण की फाइल चलवा दी। लेकिन इस मामले में भी विभाग के अफसरों ने उस फाइल को ही दबा दिया। जिसकी वजह से जानकारी देने से इंकार करने वाले अफसर को बाल भी बांका नहीं हो पा रहा है। इसी तरह से भोपाल के जिला परियोजना समन्वयक राजेश बाथम पर कार्यालय में ही पदस्थ महिला द्वारा लगाए गए ऊपर यौन उत्पीड़न के आरोप पर भी मंत्री द्वारा कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन इस मामले में भी कुछ नहीं किया गया। बाथम के मामले में पहले तो विभाग के अफसरों ने कमेटी बताकर मामले को ही झूठा साबित कर दिया था। कार्रवाई न होने पर उक्त महिला कर्मचारी को न्यायालय की शरण लेनी पड़ी तब कहीं जाकर बाथम के खिलाफ एफआइआर हुई। हद तो यह है कि इस मामले में भी विभाग ने उस पर कार्रवाई करना तो दूर उसे हटाया तक नहीं।
लोकायुक्त मामले में भी नहीं हटाया
जबलपुर में लोकायुक्त ने संयुक्त संचालक लोक शिक्षण कार्यालय में पदस्थ जेडी राममोहन तिवारी, लेखापाल संतोष भटेले, कर्मचारी अशोक को 21 हजार की रिश्वत लेते करीब पांच महीने पहले 12 अक्टूबर को पकड़ा था। रिश्वत की यह रकम कार्यालय में ही पदस्थ महिला भृत्य से ली जा रही थी। यह रिश्वत कार्यालय से बीते साल 26 अगस्त को तीन कम्प्यूटर चोरी के मामले में लापरवाही बताते हुए विभागीय कार्रवाई न करने के एवज में ली जा रही थी। लोकायुक्त पुलिस ने तीनों के खिलाफ रिश्वत लेने, भ्रष्टाचार निवारण की धाराओं में प्रकरण दर्ज किया गया है। इसी तरह से स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री इंदर सिंह परमार द्वारा अनुमोदित ट्रांसफर सूची को आदेश जारी होने के पहले सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया गया था। इस मामले में चार छोटे कर्मचारियों को निलंबित करने के बाद उन्हें दो माह बाद ही बिना कार्रवाई किए बहाल कर दिया गया था। नियमानुसार यह मामला कार्रवाई के बाद साइबर क्राइम को सौंपा जाना था , लेकिन अफसरों ने मंत्री को गुमराह कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसी तरह से विभाग में पिछले साल करीब करीब दो हजार शिक्षकों व अधिकारियों के स्थानांतरण किए गए। इसमें अधिकारियों के ट्रांसफर करने के बाद कई के निरस्त कर दिए या कई में बदलाव किया गया। इतना ही नहीं जिन लोगों के कई माह पहले ट्रांसफर हुए थे , उनमें से अपने चहेते कई लोगों को तो अब तक रिलीव ही नहीं किया गया है। जबकि उन्हें रिलीव करने के लिए मंत्री कई बार विभाग के अधिकारियों को कह चुके हैं।