- उमा का पत्थर शराब की दुकान में लक्ष्य राजनीतिक कुर्सी पर
भोपाल/मंगल भारत ।मनीष द्विवेदी। दो दिन पहले ही
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उमा भारती से मुलाकात कर उनकी मंशानुसार प्रदेश में नशाबंदी अभियान चलाने को कहा था, लेकिन मुलाकात के दो दिन बाद ही पूर्व मुख्यमंत्री अचानक भेल बरखेड़ा पठानी की आजाद नगर बस्ती में पहुंचीं और शराब दुकान में गईं और पत्थर मार कर शराब की बोतलें फोड़ दीं। सवाल उठता है कि आखिर उमा भारती ने इतना उतावलापन क्यों दिखाया। दुकान के खिलाफ वे शासन-प्रशासन से शिकायत कर सकती थीं। उनकी बात कोई नहीं टालता। दरअसल 2005 में शिवराज का मुख्यमंत्री बनना उमा भारती को पसंद नहीं आया। तभी से वे शिवराज के खिलाफ मोर्चाबंदी करती रही हैं। लेकिन शिवराज की विनम्रता के आगे उनके सारे प्रयास असफल हो जाते हैं। इसलिए उन्होंने सरकार को बदनाम करने के लिए शराबबंदी को मुद्दा बनाया है। शायद यही वजह है की अपने राजनीतिक लक्ष्य को साधने के लिए उन्होंने भी हाथ में पत्थर उठा लिया है। रविवार को उन्होंने शराबबंदी के नाम पर एक शराब दुकान पर पत्थर बरसाए। दरअसल, ये पत्थर शराब की दुकान में चले हैं, लेकिन उनका लक्ष्य राजनीतिक कुर्सी पर है। दरअसल, 2004 में मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद से उमा भारती की राजनीतिक महत्वाकांक्षा उछाल मार रही है। उनकी महत्वाकांक्षा को देखते हुए भाजपा ने केंद्र में मंत्री तक बनाया, लेकिन वे मप्र में राजनीति की उच्च कुर्सी की मंशा पाले हुए हैं। इसके लिए पार्टी पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने पिछले कुछ माह से शराबबंदी को मुद्दा बनाया है। साध्वी के इस मुद्दे को सत्ता और संगठन में स्वीकार भी किया गया है। और उन्हें आश्वासन दिया है कि सरकार और संगठन मिलकर नशाबंदी के खिलाफ अभियान चलाएंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगभग हर मंच से नशाबंदी अभियान चलाने की बात करते हैं। लेकिन उमा भारती की मंशा तो कुछ और ही हैं।
राजनीति में उच्च मुकाम की फड़फड़ाहट
दरअसल हर तरफ से अकेली पड़ी उमा सक्रिय राजनीति में वापसी के लिए फड़फड़ा रहीं हैं। प्रदेश में अब उनका कोई साथी नहीं बचा है। जो थे वे सब साथ छोड़कर जा चुके हैं। वे लगातार बोल रही हैं। लेकिन उनके बोलने पर कोई भी सकारात्मक साथ नहीं दे रहा है। इसका परिणाम सामने है। उमा पत्थर मारने लगी हैं। लेकिन उनका यह कदम उनको भारी पड़ सकता है। उमा भारती ने नवंबर 2005 में अपनी ही पार्टी से नाराज होकर बगावत कर दी थी। भोपाल के भाजपा कार्यालय में अगले मुख्यमंत्री के नाम पर शिवराज सिंह चौहान की मुहर लगते ही तल्ख मिजाज उमा भारती ने अपने साथ पार्टी के कई विधायकों को लेकर पैदल राम रोटी यात्रा शुरू कर दी थी। बाद में अलग पार्टी भी बनाई। उमा भारती ने इस दौरान कई बार पार्टी और उनके नेताओं को जमकर कोसा था। उमा भारती ने भले ही भाजपा में घर वापसी कर ली हो लेकिन उनके भीतर की आग कहीं न कहीं अभी भी धधक रही है। उमा भारती को सदस्यता देने के बाद से ही पार्टी ने उन्हें मप्र से अलग-थलग रखा लेकिन उनका मप्र से ऐसा लगाव रहा है कि वे ज्यादा दिन दूर नहीं रह पाती।
अपनी सरकार में शराबबंदी क्यों नहीं की?
उमा भारती की पत्थरबाजी पर अब विपक्ष चुटकियां ले रहा है। पार्टी और नेताओं से सवाल किए जा रहे हैं। इन सबके बीच सवाल यह भी हैं कि उमा भारती को शराब की बिक्री पर इतना ही एतराज था तो उन्होंने अपनी सरकार रहते हुए खुद शराबबंदी क्यों नहीं की। क्या साध्वी लोकतांत्रिक तरीके से विरोध नहीं जता सकती थीं। क्या वे अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री से सीधे बात कर शराबबंदी को लागू नहीं करवा सकती। शायद या तो ये सारे रास्ते वे अपनाना नहीं चाहती या फिर एक बार फिर वे मप्रमें शराबबंदी के मुद्दे पर जनता को अपनी तरफ केंद्रीत करना चाहती हैं। वे यह भी जानती हैं कि प्रदेश की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए शराब से मिलने वाला राजस्व ही सबसे बड़ा मददगार है। ऐसे में उनका यह कदम किसी दूसरी तरफ ही इशारा करता है।
इस तरह की है फितरत
उमा भारती के बारे में कहा जाता है कि वे कभी भी अपने किसी एक फैसले पर अडिग नहीं रहती हैं। उनकी शैली ऐसी है कि जो भी उनके करीबी रहा वह रसातल में चला जाता है। इसकी बानगी उनके समर्थक वे युवा नेता हैं, जो एक समय प्रदेश की राजनीति में तेजी से उभरे थे, लेकिन उमा का साथ पाने के बाद वे राजनीति के जंगल में गुम हो चुके हैं। यही हाल उनके करीबी रह चुके अफसरों के भी हैं। यह बात अलग है कि उनकी वाकपटुता और धार्मिक छवि की वजह से जनता उन्हें बतौर अपना नेता चुन लेती है, लेकिन इसका फायदा कभी जनता को नहीं मिल सका है। इसकी वजह से बाद में पार्टी और भाजपा प्रत्याशियों को भी नुकसान उठाना पड़ता है।