13 दिवसीय सत्र… 8 दिन में सिमटा

जनहित के कई अहम मुद्दों पर नहीं हो सकी चर्चा
– आनन-फानन में हंगामे के बीच बजट पारित


भोपाल।
कोरोना संक्रमण के बाद 7 मार्च से शुरू हुआ बजट सत्र 25 मार्च तक चलना था। 13 दिवसीय सत्र में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन सत्र के आठवें दिन यानी 16 मार्च को सदन में लंबे समय के बाद जनहित के मुद्दों पर बातचीत शुरू हुई थी, लेकिन अचानक बिना किसी कारण के सदन को अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया गया। इसी के साथ मध्य प्रदेश विधानसभा बजट 2022-23 सत्र समय से 5 दिन पहले समाप्त हो गया। हैरानी की बात यह है कि सत्ता-पक्ष और विपक्ष ने पूरे समय तक सत्र चलाने पर सहमति जताई थी। लेकिन बजट सत्र मात्र 8 दिन में ही सिमट गया। इस दौरान सदन में केवल 21 घंटे 52 मिनट की काम हुआ। मप्र विधान सभा सचिवालय से जारी हुई सूचना के अनुसार बजट 2022-23 सत्र दिनांक 25 मार्च तक चलना था। लेकिन मप्र विधानसभा का बजट सत्र एक बार फिर समय से पहले खत्म हो गया। कुल 21 घंटे 52 मिनट तक चली सदन की कार्यवाही के बाद 2.79 लाख करोड़ का बजट हंगामे और शोर-शराबे के बीच मंजूर हो गया। कांग्रेस विधायकों ने सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि बजट पर चर्चा की बजाय सरकार भागना चाहती है, जबकि सत्ता पक्ष ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ और चीफ व्हिप गोविंद सिंह की सहमति से खत्म हुआ है। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम ने 1 घंटे 32 मिनट चली कार्यवाही में सारे विधायी कामकाज होने के बाद हंगामे के बीच बजट सत्र समाप्त करने की घोषणा कर दी। कोरोना के पिछले दो साल से सारे विधानसभा सत्र निर्धारित समय से पहले स्थगित हो रहे है। ये कुल 19 दिन का सत्र था, जिसमें 13 बैठकें होना थी। 8 दिन में 5 दिन की बैठक हुई। सदन में कुल 4518 सवाल पूछे गए। 5 शासकीय विधेयक मंजूर हुए। कोई स्थगन प्रस्ताव नहीं लिया गया। ध्यानाकर्षण की 692 सूचना में से 14 प्रस्तुत हुई।
नहीं हो सका विधानसभा उपाध्यक्ष का फैसला
संभावना जताई जा रही थी कि करीब दो साल बाद विधानसभा को नया उपाध्यक्ष मिल सकता है। लेकिन बजट सत्र समाप्त हो गया, इसके साथ ही विधानसभा उपाध्यक्ष का मामला भी दब गया। गौरतलब है कि प्रदेश की सत्ता में वापसी किए शिवराज सरकार को दो साल पूरे होने को हैं, लेकिन अब तक विधानसभा बिना उपाध्यक्ष के चल रही है। यह संभवत: पहला मौका है, जब इतने लंबे समय तक मध्य प्रदेश विधानसभा में उपाध्यक्ष का पद खाली है। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले तक मप्र में विधानसभा अध्यक्ष का पद सत्तापक्ष तो विधानसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को मिलता था। लेकिन 2018 में कमलनाथ सरकार बनने के बाद यह परंपरा टूट गई। कांग्रेस ने विधानसभा उपाध्यक्ष का पद भी अपने पास रखा था। ऐसे में भाजपा भी यह ऐलान कर चुकी है कि विधानसभा उपाध्यक्ष का पद भाजपा के पास ही रहेगा। प्रदेश में विधानसभा उपाध्यक्ष नहीं होने से विधानसभा का काम प्रभावित हो रहा है। विधानसभा उपाध्यक्ष विस की पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति और विधायनी मंडल के संयोजक होते हैं। वे विधायकों की वेतन भत्ता निर्धारण समिति के सभापति होते हैं। उपाध्यक्ष का पद खाली होने से ये समितियां नहीं बन पा रही हैं। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए विधायक केदार शुक्ला को विधायकों की वेतन भत्ता निर्धारण समिति का सभापति बना दिया है। खास बात यह है कि विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल को हाल में एक साल पूरा हो चुका है पर उपाध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो पाई है।
एक-दूसरे पर लगा रहे आरोप
बजट सत्र भी तय समय से पहले ही समाप्त हो रहे हैं। इसको लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं पर जनहित से जुड़े मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। कांग्रेस के सुनील सर्राफ ने सदन में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि हम बड़ी तैयारी के साथ प्रश्न लगाते हैं ताकि समस्या का समाधान हो जाए। संसदीय कार्य मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि विपक्ष जनहित के मुद्दों पर चर्चा नहीं करना चाहता है। कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक डा.गोविंद सिंह ने कहा कि सरकार सदन में चर्चा से बचती है इसलिए अवधि घटती जा रही है। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का कहना है कि सदन चलाने की जिम्मेदारी पक्ष और विपक्ष दोनों की होती है।
4 साल में कोई भी सत्र पूरी अवधि नहीं चला
वैसे देखा जाए तो मप्र विधानसभा का चार साल में कोई भी सत्र पूरी अवधि तक नहीं चला।  वर्ष 2014 में 3 दिन का सत्र बुलाया गया था और यह पूरी अवधि तक चला था। इसके बाद वर्ष 2015 में सात दिन, वर्ष 2016 में एक दिन, वर्ष 2017 में चार दिन, वर्ष 2018 में पांच दिन, वर्ष 2019 में एक दिन, वर्ष 2020 में 15 दिन, वर्ष 2021 में 10 दिन पहले सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हुई। 5 बैठक पूर्व समाप्त हो गया इस बार का बजट सत्र। उधर विधानसभा अध्यक्ष ने बताया कि अध्यक्षों के सम्मेलन में भी सत्र की अवधि लगातार घटने का मुद्दा उठा था। लोकसभा वर्ष में सौ दिन, बड़ी विधानसभा 90 से 75 दिन और छोटी विधानसभा में सदन की कार्यवाही 60 दिन चलनी चाहिए। इसके लिए संविधान में संशोधन होना चाहिए। अभी वर्ष में छह माह के भीतर सत्र बुलाना अनिवार्य है। इस अवधि को तीन माह करने की अनुशंसा की है। लोक लेखा समितियों के सम्मेलन में भी यही कहा गया। कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में 25 मार्च तक सदन की कार्यवाही संचालित करने पर सहमति बनी थी। इसके बाद बैठक नहीं हुई। यह दोनों पक्षों को तय करना होगा कि कार्यवाही कैसे अधिक चले।