मध्य प्रदेश के ‘माननीय’ पेंशन से ही हो रहे निहाल

  • मप्र में पुरानी पेंशन स्कीम लागू करवाने अधिकारी-कर्मचारी परेशान

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में लाखों

अधिकारी-कर्मचारी नई पेंशन स्कीम को हटाकर नई पेंशन स्कीम लागू करवाने के लिए महीनों से आंदोलन कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मप्र सहित देशभर के  ‘माननीय’ पेंशन से ही निहाल हो रहे हैं। मप्र में विधायक बने नेता वेतन-भत्ते और दूसरी सुविधाओं के नाम पर दो लाख 10 हजार रुपए तो पाते ही हैं, हार जाने या दोबारा नहीं चुने जाने पर भी कई सुविधाओं के अलावा बतौर पेंशन वे या उनके आश्रित आजीवन अच्छी-खासी रकम के हकदार हो जाते हैं। हालांकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए वर्तमान व पूर्व विधायकों की पेंशन पर कटौती का एलान किया है। विधायकों के परिवारों को दिए जाने वाले भत्तों में भी कटौती की जाएगी। इससे मप्र सहित देशभर ‘माननीय’ की पेंशन पर सवाल उठने लगे हैं। भारत में सांसद या विधायक रहते वेतन और सुविधाएं मिलने का प्रावधान तो है ही, चुनावी हार या दूसरे कारणों से भूतपूर्व हो जाने पर भी उन्हें  पेंशन और कई सुविधाएं आजीवन मिलती हैं। निधन हो जाने के बाद उनके आश्रित को भी आजीवन पारिवारिक पेंशन मिलती है। विश्व के अनेक देशों में जनप्रतिनिधियों को वेतन और सुविधाएं मिलती है जिसे निर्धारित करने का अधिकार अलग संस्थाओं को रहता है। इसके लिए उम्र और सेवा की सीमा निर्धारित है। ब्रिटेन जैसे देश में इसके लिए आयोग का गठन किया गया है, किंतु भारत में सांसद व विधायकों की सुविधाओं के संबंध में क्रमश: संसद व विधानसभाएं ही निर्णय लेतीं हैं।
मप्र में माननीयों को भारी वेतन के साथ कई सुविधाएं: अगर मप्र की बात करें तो यहां 1.70 लाख रुपए प्रतिमाह के वेतन के बावजूद मप्र सरकार ने मंत्रियों के इनकम टैक्स भरने का फैसला लिया है। लगभग 43 करोड़ रुपए मंत्रियों के इनकम टैक्स पर राज्य सरकार खर्च करेगी। 1990 में मध्यप्रदेश के विधायकों का मासिक वेतन 1000 था, जो अब 35000 हो गया है। एक आंकड़े के मुताबिक, पिछले वर्षों में विधायकों के वेतन के मुकाबले उनके भत्तों पर साढ़े चार गुना से ज्यादा भुगतान किया गया है। पिछले 5 सालों में 230 विधानसभा सदस्यों के वेतन पर 35.03 करोड़ रुपए खर्च हुए। जबकि उन्हें मिलने वाले अलग-अलग भत्तों पर सरकारी खजाने से लगभग 121 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। इसमें यात्रा भत्ता के रूप में 38.03 करोड़ रुपए की बड़ी अदायगी शामिल है। मप्र के विधायकों को हर महीने 1.10 लाख रुपए सैलरी, 35 हजार निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, 10 हजार टेलीफोन भत्ता, 10 हजार चिकित्सा भत्ता, 15 हजार अर्दली-ऑपरेटर के, 10 हजार लेखन-डाक भत्ता और उसके बाद पेंशन 35 हजार महीना मिलता है। मध्य प्रदेश शासन की सर्विस कंडिका 6-ख के मुताबिक किसी ऐसे मृतक सदस्य या भूतपूर्व सदस्य के पति या पत्नी को, यदि कोई आश्रित हो, को, धारा 6-क की उपधारा (1) के अधीन पेंशन का हकदार था, उसकी मृत्यु की तारीख से ऐसी कालावधि के लिए 18,000/- रुपए प्रतिमास कुटुंब पेंशन दी जाती है।
एक से अधिक पेंशन के हकदार
देशभर में कर्मचारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक को केवल एक पेंशन मिलती है। किंतु, सांसद व विधायक इसके अपवाद हैं। वे एक या उससे अधिक पेंशन पाने के हकदार हैं। ऐसे में अगर कोई राजनेता एक बार विधायक बनता है और उसके बाद फिर सांसद बन जाता है तो उसे विधायक की पेंशन के साथ-साथ लोकसभा सांसद का वेतन और भत्ता मिलता है। इसके बाद अगर वह किसी सदन का सदस्य नहीं रह जाता है तो उसे विधायक के पेंशन के साथ-साथ सांसद की पेंशन भी मिलती है। यही नहीं हमारे देश में सरकारी चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज को 30 साल नौकरी करने के बाद ही पेंशन का अधिकार है। वहीं ‘माननीय000 यदि एक दिन के लिए भी चुन लिए गए तो उनकी पेंशन ताउम्र पक्की हो जाती है। उत्तर प्रदेश में विधायकों को पेंशन के साथ भत्ता भी मिलता है। वहीं बिहार में एमएलए या एमएलसी को भी कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं।
8 वर्षों में पूर्व सांसदों को 500 करोड़ की पेंशन
बीते 8 सालों  में पूर्व सांसदों को पेंशन में करीब पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए  हैं। गौरतलब है कि पूर्व में यह नियम था कि वही पूर्व सांसद पेंशन के योग्य माना जाएगा जिसने बतौर सांसद 4 साल का कार्यकाल पूरा किया हो, पर साल 2004 में कांग्रेस नीत संप्रग की सरकार ने  संशोधन कर  यह प्रावधान कर दिया था कि यदि कोई एक दिन के लिए भी सांसद बन जाएगा तो वह पेंशन का हकदार होगा और तब से यही हो रहा है। यहीं नहीं 1954 में लागू किए गए सांसदों के वेतन, भत्ता एवं पेंशन अधिनियम में अब तक 29 बार मनमाने संशोधन किए जा चुके हैं।