भोपाल.मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। अगले साल होने
वाले विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा अभी से हर स्तर पर काम जोर शोर से करने लगी है। इसके लिए पार्टी ने एक गाइडलाइन लगभग तैयार कर ली है। अगर इस पर पूरी तरह से पालन हुआ तो कोई बड़ी बात नही हैं कि मौजूदा पार्टी के आधा सैकड़ा विधायकों व बड़े नेताओं को टिकट ही नहीं मिले। इनमें पार्टी के वे चेहरे भी शामिल रहेंगे, जो बेहद बड़े माने जाते हैं , लेकिन या तो बीता चुनाव हार चुके हैं या फिर उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं, जो पार्टी द्वारा तय की गई आयु सीमा से अधिक है।
इसके अलावा पार्टी द्वारा अभी से हर विधानसभा सीट का अपने स्तर पर आंकलन कराया जा रहा है। इस आंकलन में जो विधायक खरे नहीं उतरेंगे उनके भी टिकट कटना तय माना जा रहा है। पार्टी ने इसके लिए संगठन स्तर पर नए व प्रभावी चेहरों की तलाश शुरू कर दी है। यह वे चेहरे होंगे जो न केवल साफ सुथरी छवि के होंगे बल्कि मतदाताओं के बीच भी अच्छी पकड़ रखते होंगे। इस बार पार्टी अपने जिलाध्यक्षों को भी चुनाव में उम्मीदवार बनाने से परहेज करने जा रही है। इसके पीछे की वजह है चुनाव के समय जिलाध्यक्ष के प्रत्याशी होने की वजह से वह सिर्फ एक सीट पर ही पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करता है जिससे जिले की अन्य सीटों पर अव्यवस्था की स्थिति बनती है। यही नहीं इस बार भाजपा संगठन कई अन्य तरह के भी कदम उठा रही है, जिसमें निगम मंडल की कमान सम्हालने वाले नेताओं को भी अगर चुनाव लड़ा है तो उन्हें पहले पदों से इस्तीफा देना होगा। भाजपा में इन दिनों वैसे भी पीढ़ी परिवर्तन का दौर चल रहा है , जिसकी वजह से ही संगठन में अधिकांश पदों पर युवा चेहरों को ही जिम्मेदारी दी गई है। दरअसल भाजपा में यह पूरी कवायद दूसरी मजबूत पंक्ति तैयार करने के लिए की जा रही है।
बुजुर्ग विधायकों को दी जाएगी मुक्ति
जानकारों की माने तो मिशन 2023 के लिए जो क्राइटएरिया तय किया जा रहा है,उसमें पार्टी के ऐसे विधायकों को अगली बार टिकट नहीं देगी , जो नकेवल उम्र दराज हो चुके हैं, बल्कि उनकी पकड़ भी अब मतदाताओं पर कमजोर होती जा रही है। खास बात यह है कि इस बार उ न विधायकों के टिकट पर भी खतरा बना हुआ है, जो बेहद कम मतों से जैसे- तैसे जीत हासिल कर सके हैं। यही नहीं पार्टी के उन नेताओं के टिकट पर भी इस बार संकट खड़ा हो गया है जो मंत्री रहते पिछला चुनाव हार चुके हैं। ऐसे नामों में जयंत मलैया , ओम प्रकाश धुर्वे , रुस्तम सिंह , अचार्ना चिटिनिस, उमा शंकर गुप्ता, अंतर सिंह आर्य जयभान सिंह पवैया, नारायण सिंह, कुशवाहा, दीपक जोशी लाल सिंह आर्य, शरद जैन, ललिता यादव और बालकृष्ण पाटीदार जैसे नाम शामिल बताए जा रहे हैं। इनमें से किसीर को टिकट मिलेगा भी तो अपवाद स्वरुप। वैसे भी इनमें से कई चेहरे ऐसे हैं , जिन्हें श्रीमंत समर्थकों की वजह से टिकट मिलना बेहद मुश्किल है। कहा जा रहा है कि पार्टी इन नेताओं के अनुभव का लाभ लेगी। यह लाभ किस तरह से लिया जाएगा यह अभी तय नही है। बताया जा रहा है कि परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए प्रदेश संगठन जनप्रतिनिधियों के परिवार के सदस्यों को टिकट देने का मामला केन्द्रीय संगठन पर छोड़ेगा।
कांग्रेस की सीटों पर विशेष फोकस
पार्टी इस बार अभी से उन सीटों पर खास फोकस करने जा रही है, जिन पर कांग्रेस के विधायक है। यही नहीं बीते चुनाव में जिन तीन जिलों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला था, उन सीटों पर भी अभी से पार्टी चुनावी तैयारियों में लगने की योजना पर काम कर रही है। यह बात अलग है कि अन तीनों ही सीटों पर श्रीमंत के आने के बाद उनके समर्थक विधायक जीतकर भाजपा के लिए राह आसान बना चुके हैं। इनमें खरगौन, मुरैना और भिंड जिला शामिल है।
यूपी की तर्ज पर होगा चयन
भाजपा मध्यप्रदेश में भी हाल ही में संपन्न हुए उत्तरप्रदेश की तर्ज पर चुनावी रणनीति तैयार कर रही है। जिसमें एक-एक विधानसभा क्षेत्र का आकंलन किया जाएगा। वहां यदि पार्टी का विधायक है, तो उसकी क्षेत्र की जनता से जुड़ाव, लोकप्रियता, भ्रमण और सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में व्यक्तिगत भागेदारी का भी पता लगाया जाएगा। सूत्रों की मानें तो पार्टी संगठन इसी साल जिला संगठन से प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों के लिए पांच-पांच नामों का पैनल मांगेगा। इनमें मौजूदा जहां विधायक हैं, वहां उनका नाम सबसे पहले लिखा जाएगा। युवराज महाआर्यमन सिंधिया इस वर्ष से अपने पिता के साथ कई कार्यक्रमों में मंच भी साझा करने लगे हैं, हालांकि उन्हें राजनीति का ककहरा विरासत में मिला है। उनकी परदादी स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया से लेकर दादा स्व. माधवराव सिंधिया भी राजनीति में थे, वहीं उनके पिता भी राजनीति में ऊंचाईयों पर हैं