बोले शिवराज, कांग्रेस में न तो नीति है और न ही सही नेतृत्व
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस की नीतियों को लेकर बड़ा हमला किया है। उन्होंने कहा- कांग्रेस में न दिशा है, न गति है। न नेता है, न नीति है और न ही सही नेतृत्व है। अब कांग्रेस अंतर्विरोध से जूझने वाली पार्टी बन कर रह गई है। यह हमला उनके द्वारा पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर किया गया। खास बात यह है कि इस दौरान मुख्यमंत्री राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश नेता और कार्यकर्ताओं के साथ पार्टी का झंडा लेकर सड़क पर निकले। इस दौरान उनके द्वारा जनसंघ से शुरू हुई पार्टी की अब तक की यात्रा का ब्योरा भी दिया गया। उन्होंने कहा कि भाजपा ने अपनी स्थापना के समय लिए गए संकल्प पूरे किए हैं। अब जन आकांक्षाओं के अनुरूप हम आगे बढ़ रहे हैं।
सुकलीकर पर मेहरबानी में बाधा बना ईओडब्ल्यू
अगर आप रसूखदार हैं तो नियम कायदों के अलावा भ्रष्टाचार के मामले में आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। इसका उदाहरण है सिंचाई विभाग के अफसर राजीव सुकलीकर । सैकड़ों करोड़ रुपए की सरकार को चपत लगाने व निजी कंपनियों को उपकृत करने के बाद भी उन्हें रिटायर्डमेंट के बाद शासन व सरकार ने मिलकर न केवल दो बार एक्सटेंशन दिया , बल्कि हाल ही में उन्हें तीसरी बार भी एक्सटेंशन देने की पूरी तैयारी कर ली थी। वह तो भला हो ईओडब्ल्यू का जो उसने सालों बाद एक मामले में उन पर एफआईआर दर्ज कर ली , जिससे उनकी तेजी से तीसरी बारएक्सटेंशन देने के लिए दौड़ रही फाईल पर ब्रेक लग गया, अन्यथा फिर से वे सरकारी पैसे पर मौज कर रहे होते। उन्हें रिटायर्ड होने के बाद सरकार ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में मेंबर इंजीनियर बना रखा था। सुकलीकर को पूर्व की कांग्रेस सरकार में प्रतिनियुक्ति पर नर्मदा घाटी विभाग में भेजा गया था। वे नौ महीने प्रतिनियुक्ति पर रहने के बाद रिटायर हुए तो उनकी दो साल तक एक्सटेंशन देकर सेवाएं ली जाती रहीं। खास बात यह है कि यह सब तब होता रहा जब उनके खिलाफ जांच चल रही थी।
आखिर भ्रष्टाचारी अफसर की मिल ही गई फाइल
सूबे के मुखिया भले ही भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार की जीरो टालरेंस की नीति रखते हों, लेकिन उनके अफसर इसमें पलीता लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, जैसे ही कोई अफसर भ्रष्टाचार के मामले में फसंता है, विभाग के आला अफसर से लेकर पूरा प्रशासन उसे बचाने में जुट जाता है। इसका उदाहरण हैं उद्यानिकी विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर आरबी राजोदिया। वे तीन साल पहले नमामि देवी नर्मदे योजना में एक लाख रुपए की रिश्वत लेते धरे गए थे। इसके बाद विभाग के अफसर उनके पक्ष में खड़े हो गए। लोकायुक्त एसपी ने उनके निलंबन के लिए तीन महीने पहले पत्र लिखा था, लेकिन मंत्रालय और संचालनालय के बीच फाइल ही गायब कर दी गई। इस मामले में जब मंत्री भारत सिंह कुशवाह ने अफसरों को फटकारा तो अचानक फाइल मिल गई। राजोदिया के खिलाफ लोकायुक्त पुलिस द्वारा जनवरी में स्पेशल कोर्ट में चालान पेश होने के बाद 28 जनवरी को उन्हें निलंबित करने के लिए प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया को पत्र लिखा गया था, तभी से फाइल मंत्रालय और सचिवालय के बीच दबी हुई थी।
विभागाध्यक्ष के अधिकार होंगे पुलिस कमिश्नर को
मप्र में पुलिस कमिश्नर को अब विभागाध्यक्ष घोषित कर उन्हें अधिकार प्रदान करने की तैयारी है। इसका प्रस्ताव गृह विभाग द्वारा अनापत्ति प्रणाम पत्र के लिए वित्त विभाग को भेज दिया गया है। फिलहाल पुलिस विभाग में डीजीपी विभागाध्यक्ष हैं। विभागाध्यक्ष का अधिकार मिलने से कमिश्नर को किसी भी फैसले के लिए पुलिस मुख्यालय के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। वे इसके बाद अपने स्तर पर निर्णय लेकर पुलिस मुख्यालय को सूचना भेज देंगे। भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हुए पांच माह हो चुके हैं, लेकिन अब भी इस प्रणाली को लेकर सारे फैसले पुलिस मुख्यालय से लिए जा रहे हैं। दरअसल मप्र को छोड़कर देश के जिन शहरों में कमिश्नर प्रणाली लागू है, वहां पर विभागाध्यक्ष के सारे अधिकार कमिश्नर के पास हैं। इस पर अब मप्र में भी सैद्धांतिक सहमति बन गई है। इसके लिए पुलिस मुख्यालय द्वारा प्रस्ताव गृह विभाग को भेजा गया था , जहां से अब मंजूरी देकर प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा गया है।