प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कठघरे में

  • सालाना 5 हजार करोड़ से अधिक स्वाहा…फिर भी नहीं सुधर रहे हालात

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। नीति आयोग की

हाल ही में आई रिपोर्ट ने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को कठघरे में खड़ा कर दिया है। राज्यों की संपूर्ण स्वाथ्य सूचकांकों की रैंकिंग के मामले में मध्य प्रदेश देश में 17वें स्थान पर है। यह हाल तब है जब प्रदेश में हर साल पांच हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट स्वास्थ्य पर खर्च किया जा रहा है। यह राशि सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की है। मेडिकल कालेजों का बजट अलग है। उसके बाद भी प्रदेश में स्वास्थ्य की स्थिति चिंताजनक है। पिछले पांच साल से नीति आयोग की तरफ से यह रैकिंग जारी की जा रही है। चिंता की बात यह है कि मप्र की स्थिति इस रिपोर्ट में 16वें से 19वें पायदान के बीच ही रही है, जबकि कई राज्यों ने अच्छा सुधार किया है। नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट में मप्र को 17वीं रैंकिंग दी गई है। बीते 5 साल में हमारी रैंकिंग सिर्फ एक बार 16वीं हुई, लेकिन इस बार हम वापस एक पायदान फिसल गए हैं।
शिशु और नवजातों की मृत्यु दर सबसे बड़ा कलंक
मप्र की रैंकिंग में पिछड़ने के पीछे की बड़ी वजह यह है कि नीति आयोग ने दो बड़े मापदंडों के आधार पर 43 पैमानों का इंडेक्स बनाया है। पहला मापदंड है मप्र में शिशु मृत्यु दर व 5 साल से कम उम्र वालों की मौत ज्यादा हैं। यहां जन्म से 29 दिन के अंदर जान गंवाने वाले नवजातों की संख्या प्रति हजार पर 35 है। जबकि 5 साल से कम उम्र में मरने वाले बच्चे प्रति हजार पर 56 हैं। मप्र के लिए शिशु और नवजातों की मृत्यु दर सबसे बड़ा कलंक बना हुआ है। इस कारण मप्र की स्वास्थ्य रैंकिंग सुधर नहीं रही है। वहीं केरल लगातार चौथे साल नंबर एक पर काबिज है। यहां तक कि छत्तीसगढ़ भी मप्र से आगे है। केवल बिहार और उप्र ही मप्र से पीछे हैं।
डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टॉफ की कमी: नीति आयोग ने पांच साल में डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टॉफ की कमी को भी बड़ा मुद्दा बनाया है। मप्र के सरकारी अस्पतालों में करीब 5 हजार डॉक्टरों की कमी है। प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेज में कुल स्वीकृत पद 2814 हैं, जिनमें 1958 भरे हैं और 856 खाली हैं। यहां लोक सेवा आयोग से 400 डॉक्टर भर्ती किए गए हैं। जबकि मेडिकल आॅफिसर के 1400 पद खाली हैं। 2650 विशेषज्ञ डॉक्टर चाहिए। 15 हजार से ज्यादा नर्सिंग स्टाफ की कमी है। इसी प्रकार मातृ मृत्युदर मामले में मप्र की रैंक 15वीं है। 2018-19 में रैंक इससे ऊपर थी। प्रदेश में संस्थागत या अस्पतालों में डिलीवरी कराने के मामले में भी हम पीछे रहे हैं।
मप्र हर बीमारी की रैंकिंग में हम पीछे
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार मप्र हर बीमारी की रैंकिंग में पिछड़ा हुआ है। प्रदेश केवल टीकाकरण में नंबर वन है। अंडर 5 मोर्टेलिटी रेट में प्रदेश की 19वी रैंकिंग है। वहीं  टीबी ट्रीटमेंट सक्सेस रेट में भी 19, आधुनिक गर्भनिरोधक गोलियों के इस्तेमाल की दर में 18, नेशनल मोर्टेलिटी रेट में 17, मेटरनल मोर्टेलिटी रेशियो में 15, टोटल टीबी केस में 11, इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी में 9, एएनसी रजिस्ट्रेशन में 8, सेक्स रेशियो इन बर्थ में 6, गर्भवती महिलाओं के अनुपात में 4 या अधिक एएनसी मिली में 5, एचआईवी पेशेंट के साथ रहने वालों के मामले में 3 और फुल इम्यूनाइजेशन कवरेज (टीकाकरण)में 1 नंबर पर है।
हर पैमाने पर मप्र में गिरावट दर्ज
स्वास्थ्य के हर पैमाने पर मप्र में गिरावट दर्ज की जा रही है। संस्थागत या अस्पतालों में डिलीवरी के मामले में प्रदेश पीछे है। अस्पताल में डिलीवरी के मामले में मप्र देश में 16वें नंबर (66.33 फीसदी) पर है। सबसे बेहतर तेलंगाना (96.31 प्रतिशत), केरल (92.29 प्रतिशत), महाराष्ट्र (91.19 प्रतिशत) व गुजरात (86.13 प्रतिशत) है। मातृ मृत्यु दर में मध्यप्रदेश 15वें नंबर पर है। 2018-19 की रिपोर्ट से हम नीचे चले गए हैं। पिछले बार इसमें 188 पाइंट्स थे, जो घटकर अब 173 हो गए हैं। मप्र से बेहतर स्थिति में छत्तीसगढ़ है। नीति आयोग की हेल्थ रिपोर्ट रैंकिंग के अनुसार वर्ष 2015-16 में भी मध्यप्रदेश 17वें, 2017-18 में 18वें, 2018-19 में 18वें और 2019-20 में 17वें स्थान पर ही रहा है।