कागजों पर ही मप्र पानीदार

  • पाताल पहुंचा पानी…हवा दे रहे हैंडपंप…सूख गए तालाब

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र को पानीदार

बनाने के लिए सरकार ने अरबों रूपए की नल जल योजनाएं स्थापित की हैं, तालाब, कुआं और नदियों पर पानी की तरह पैसा बहाया है उसके बाद भी गर्मी शुरू होते ही पानी के लिए हाहाकार मचना शुरू हो गया है। प्रदेश के गांवों में लोग गंदा और दूषित पानी पीने को मजबूर हो रहे हैं। जबकि कागजों पर प्रदेश पूरी तरह पानीदार बना हुआ है।
एक तरफ सरकार 2024 तक ग्रामीण क्षेत्र के हर घर में नल से जल पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में जुटी हुई है। उधर, केंद्रीय जल बोर्ड की रिपोर्ट है कि मप्र के करीब 80 ब्लॉक में जल स्तर काफी नीचे पहुंच गया है। आलम है कि ग्रामीण इलाकों में पानी के लिए हाहाकार मचा है। बुंदेलखंड में लोगों को गंदा और दूषित पानी पीना पड़ रहा है। विंध्य, ग्वालियर- चंबल और महाकोशल इलाके में कई गांव ऐसे हैं, जहां पानी की समस्या का असर युवाओं पर पड़ रहा है। इन इलाकों के कई गांवों में पीने के पानी का साधन नहीं होने के कारण कोई अपनी बेटी का विवाह यहां नहीं कर रहा। यह इस बात का संकेत है कि सरकारी योजनाएं एवं परियोजनाएं केवल कागजों पर ही पूरी हैं। हकीकत इसके विपरीत हैं।
पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में सबसे बड़ा संकट
मैदानी इलाकों में लोगों को तो गंदा पानी भी मिल जाता है, लेकिन पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में एक-एक बूंद के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। बैतूल के भैंसदेही जनपद अन्तर्गत  ग्राम पंचायत डेढ पिछले 30 साल से जल संकट से जूझ रहा है। यहां के लोगों का कहना है कि पहाड़ी पर गांव होने से एक-एक बूंद पानी के लिए हाड़तोड़ मेहनत करना पड़ती है। ग्राम काबरामाल के गोकुल राठौर कहते हैं कि पानी के नाम पर आधा दिन खराब हो जाता है। गुदिया बाई कहती हैं कि पानी की समस्या बनी रहने से 20- 25 लड़कों की शादी नहीं हुई। वहीं सिरोंज के विधायक उमाकांत शर्मा कहते हैं कि जल जीवन मिशन के तहत पहले उन गांवों में पानी पहुंचाया जाए जो पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में बसे हैं। यहां के ग्रामीण कई किमी चलकर एक-एक बूंद पानी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। हमने विभाग को पत्र लिखकर ज्यादा समस्या वाले गांवों में पानी पहुंचाने का अनुरोध किया है।
कोई लड़की देने के तैयार नहीं
प्रदेश में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पानी नहीं होने के कारण लोग अपनी लड़कियों का उस क्षेत्र में शादी नहीं करते हैं। इस कारण कई गांव में कुंवारों की संख्या बड़ रही है।
मंडला जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर बैगा बहुल ददरिया गांव है। यहां के हेमलाल बैगा ने बताया कि हमारे गांव में आज तक पीने के पानी की समुचित व्यवस्था नहीं हुई। हालात ये हैं कि अब गांव में कोई लड़की देना पसंद नहीं करता जिसके कारण वहां के ग्रामीण कुंवारे बैठे हैं। गांव में साफ- सफाई नहीं होने के कारण कई लोग त्वचा रोग से पीड़ित हैं। पीएचई के ईएनसी केके सोनगरिया का कहना है कि गर्मियों में जलस्तर नीचे चला जाता है। हैंडपंप सूखने लगते हैं। ज्यादातर आबादी नलकूप और हैंडपंप के पानी पर आधारित है। पहाड़ी और पठारी इलाकों में समस्या ज्यादा आती है। हर जिले में विशेष शिकायत निवारण प्रकोष्ठ गठित किए हैं। हजारों की संख्या में हैंडपंप सुधारे भी हैं। पानी के नाम पर पर्याप्त बजट है। वर्ष 2024 तक हर घर में नल से पानी पहुंचाने का लक्ष्य है।
हैंडपंप बंद, जल संरचनाएं सूखी
प्रदेश में लोगों को सालभर पानी मुहैया कराने के लिए पांच लाख से अधिक हैंडपंप स्थापित हैं। मनरेगा के अन्तर्गत तीन साल में साढ़े चार लाख से ज्यादा जल संरचनाओं का निर्माण कर दिया गया है और दो लाख से ज्यादा प्रगतिरत हैं। वन और सिंचाई विभाग ने भी पानी के लिए करोड़ों रुपए की राशि खर्च की है बावजूद प्रदेश के हर कोने में अप्रैल की शुरूआत से ही जल संकट गहरा गया है। इसकी वजह यह है कि मापदंडों के अनुसार न तो हैंडपंप लगाए गए हैं और न ही जल संरचनाएं बनाई गई हैं। गर्मी में जब जल स्तर गिरता है तो हैंडपंप बंद हो जाते है और जल संरचनाएं सूख जाती हैं।
गंदा पानी पीने की मजबूरी: प्रदेश में बुंदेलखंड का क्षेत्र जलसंकट के लिए कुख्यात है। गर्मी के पहले से ही बुंदेलखंड में जलसंकट शुरू हो जाता है। आलम यह है की आजादी के 75 साल बाद भी छतरपुर जिले के ढोडऩ और पलकुआं गांव की पेयजल समस्या दूर नहीं हुई है। लोग कुएं और नदी का दूषित पानी छानकर पीते हैं,इससे वे बीमार भी पड़ रहे हैं। ये गांव पन्ना टाइगर रिजर्व के घने जंगलों और पहाड़िय़ों में स्थिति है। केन व श्यामरु नदी के तट पर हैं लेकिन यहां स्थाई जल सकंट है। कुओं में छह महीने ही पानी रहता है।