मध्यप्रदेश में हजारों गांवो को बना हुआ है मुक्तिधामों का इंतजार

निकाय क्षेत्रों में भी हाल बेहाल.

भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। 21 वीं सदी के बाद भी प्रदेश में करीब 15 हजार ऐसे कस्बे व और पंचायतें हैं , जिनमें आज भी मुक्तिधाम नहीं हैं। खास बात यह है कि जहां पर मुक्तीधाम हैं भी तो वे भी बेहाली के आंसू बहाते नजर आते हैं। इसी तरह से जहां पर मुक्ति धाम है तो वहां पर अंतिम समय में पार्थिव देह रखने तक के लिए चबूतरा तक का इंतजाम नहीं है, जिसकी वजह से उसे रखने के लिए जमीन पर झाड़ू लगानी पड़ती है। ऐसी स्थिति किसी एक अंचल के इलाकों में नही हैं , बल्कि प्रदेश के लगभग सभी अंचलों में बनी हुई हैं। इनमें बुंदेलखंड, मालवा, निमाड़, विन्ध्य, महाकौशल और ग्वालियर-चंबल क्षेत्र भी शामिल हैं। इसकी बानगी है छतरपुर जिला मुख्यालय का भैंसासुर मुक्तिधाम। यहां पर जगह-जगह गंदगी का साम्राज्य है। चारों ओर कफन के कपड़े उड़ते रहते हैं। दाह स्थल पर पॉलीथीन और अन्य सामग्री अव्यवस्था की कहानी बयां करती है। खरपतवार इतनी कि जहरीले कीड़ों का डर भी हमेशा बना रहता है। शोकसभा स्थल की सुविधाएं भी बदहाली की कहानी बयां करती हैं। अतिक्रमण की वजह से भी मुक्तिधाम की जगह कम होती जा रही है। लगभग यही हाल आस -पास के जिलों में मुक्तिधामों के बने हुए हैं। हद तो यह है कि नगरीय प्रशासन एवं आवास राज्य मंत्री ओपीएस भदौरिया के क्षेत्र के अजनोल में तो सड़क के किनारे अंतिम संस्कार करने की लोगों में मजबूरी बनी हुई है।
इस तरह के बने हुए हैं हालात
विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मांडू में भी सरकार मुक्तिधाम का इंतजाम नहीं कर सकी। इस वजह से यहां पर बाज बहादुर महल के समीप रेवा कुंड के पास खुले में ही दाह संस्कार करना मजबूरी बनी हुई है। इसी तरह से भिंड जिले के गोहद के तहत आने वाली ग्राम पंचायत बाराहेड के ग्राम मानपुरा में बारिश के समय तिरपाल लगाकर अंतिम संस्कार करने की मजबूरी हो गई है। चौकी गांव में भी पाइप और टीन की चादरें लगाकर दाह संस्कार किया जाता है। जबलपुर जिले के जनपद पंचायत शाहपुरा अंतर्गत धरती कछार का मुक्तिधाम जर्जर हो चुका है। चबूतरा टूट चुका है और टीनशेड उड़ चुका है। रीवा जिले के गंगेव जनपद पंचायत के सेदहा गांव में मुक्तिधाम कागजों में बन गया। ग्रामीण बताते हैं कि 14.95 लाख की राशि मंजूर हुई। लेकिन, चयनित स्थल पर मुक्तिधाम बना ही नहीं। छत्तरपुर शहर से सटे बगौता गांव के दोनो मुक्तिधाम जर्जर हो चुके हैं। यहां रघुराज सिंह बताते हैं कि दस साल से रखरखाव नहीं हुआ। नीमच जिले के बड़ोदिया बुजुर्ग में ग्रामीणों को नाले के बीच से पानी में होकर अन्य स्थान पर शवदाह करने जाना पड़ रहा है।
मनरेगा में है निर्माण का प्रावधान
मनरेगा के अन्तर्गत शांतिधाम उप योजना के तहत जनगणना 2011 के अनुसार 2 हजार से कम या अधिक जनसंख्या होने पर एक एवं दो प्लेटफार्म वाला शांतिधाम बनाया जाए। इसके लिए क्रमश: 1.92 लाख एवं 2.80 लाख की राशि निर्धारित है। पानी व्यवस्था हेतु हैंडपंप एवं सतही टंकी के लिए एक लाख रुपए अलग से दिए जाएंगे।
शहरी इलाकों में निकायों का जिम्मा
विभाग का कहना है कि शहरी क्षेत्र के मुक्तिधामों के रख रखाव का काम नगरीय निकायों का है। कई निकायों ने अच्छे बनाए हैं। जहां ठीक नहीं हैं, वहां की समीक्षा करेंगे। जल्द ही सभी सीएमओ से जानकारी मांगी जाएगी। उधर शासन का दावा है कि सभी गांवों में मुक्तिधाम बनाए जा रहे हैं । अब तक 40 हजार से अधिक गांवों में बन चुके हैं। विधायक और सांसद निधि से भी कार्य कराए गए हैं। रखरखाव के लिए ग्राम पंचायतों को आवश्यक निर्देश दिए हैं।