दो विधायकों को गंवानी पड़ी है हाल ही में सदस्यता
भोपाल/मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। मप्र में इस बार बीते तीन सालों से उपचुनावों का जो दौर शुरू हुआ, वह रुकने का नाम नहीं ले रहा है। अब एक बार फिर से प्रदेश में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के हालात बन गए हैं। इन दोनों चुनावों को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है , लेकिन इन्हें अभी से सेमी फायनल के रुप में माना जाने लगा है। दरअसल जब तक दोनों सीटों पर चुनाव होंगे तब तक प्रदेश में आम विधानसभा चुनाव होने में महज चंद माह ही रह जाएंगे। प्रदेश में विधानसभा के आम चुनाव अगले साल नवंबर में होने हैं। खास बात यह है कि जो दो सीटें रिक्त घोषित होने वाली हैं, उसमें भाजपा व कांग्रेस विधायकों वाली एक -एक सीट शामिल हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे राहुल सिंह लोधी की विधायकी बीते माह उच्च न्यायालय ने खत्म कर दी है। उनके निर्वाचन को शून्य घोषित कर दिया गया है। नामांकन पत्र में जानकारी छिपाने और गलत तथ्य प्रस्तुत करने के आरोप सिद्ध होने पर उच्च न्यायालय ने यह कार्रवाई की है। साथ ही तत्कालीन रिटर्निंग अधिकारी वंदना राजपूत पर नियम प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। इसमें कहा गया है कि उन्होंने आउट आॅफ वे जाकर राहुल लोधी का नामांकन पत्र स्वीकार किया। भविष्य में उन्हें इस तरह की जिम्मेदारी दोबारा न देने के निर्देश दिए हैं। वर्ष 2018 में के खरगापुर राहुल सीट पर हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा लोधी की निकटतम प्रतिद्वंद्वी रही कांग्रेस की चंदा सिंह गौर ने नामांकन पत्र में गड़बड़ी और अधिकारियों पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें उनकी ओर से न्यायालय को बताया गया कि उनकी ओर से पूर्व में दायर एक अन्य मामले में कोर्ट ने राहुल सिंह लोधी पर दस हजार रुपए की कॉस्ट लगाई थी। इसकी जानकारी राहुल ने नामांकन पत्र में नहीं दी और न ही इस राशि का भुगतान उन्हें किया। गौर की ओर से कोर्ट में यह भी बताया गया कि राहुल सिंह लोधी की पार्टनरशिप वाली फर्म सरकारी एजेंसी एमपीआरआरडीसी के निर्माण कार्य कर रही थी। इस जानकारी के साथ उन्होंने नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। तत्कालीन अधिकारियों ने राहुल को बताया कि नियमानुसार यह गलत है। इसके बाद लोधी ने दूसरा नामांकन दाखिल किया। इसमें पार्टनरशिप फर्म से बाहर होने की जानकारी दी गई। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और तथ्यों की जांच के बाद पाया कि पार्टनरशिप खत्म करने के बाद इसका गजट नोटिफिकेशन जारी करना होता है। रजिस्ट्रार फर्म्स एंड सोसायटी में रजिस्टर्ड भी कराना होता है।
वहीं सुमावली से कांग्रेस विधायक अजब सिंह कुशवाह की विधायकी समाप्त हो गई है। ग्वालियर की जिला अदालत से दो साल की सजा होने के बाद विधानसभा ने उनकी सदस्यता खत्म करते हुए इसकी जानकारी चुनाव आयोग को भेज दी है।
अजब सिंह को अगर अब हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से सजा पर स्ट्रे नहीं मिला तो उनकी विधायकी भी जाना तय है। ऐसे में इसी साल उनकी सीट पर भी उपचुनाव हो सकता है। गौरतलब है कि अजब सिंह, उनकी पत्नी और एक अन्य सहयोगी को ग्वालियर की जिला अदालत ने धोखाधड़ी के एक मामले में दो साल की सजा और दस-दस हजार का जुर्माना लगाया है। लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा आठ के तहत यदि किसी व्यक्ति को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो वह अयोग्य हो जाएगा। यह अयोग्यता कोर्ट के सजा सुनाए जाने के दिन से लागू होती है। कोर्ट से सजा होने के बाद विधानसभा सचिवालय ने विधायक को जवाब देने के लिए तीन दिन का समय दिया था वह भी मंगलवार को पूरा हो गया था। विधानसभा ने अब उनकी सदस्यता समाप्त करते हुए चुनाव आयोग को इस संबंध में पत्र भेज दिया है। पत्र में सुमावली विधानसभा को रिक्त घोषित किया गया है। हालांकि अजब सिंह के पास अभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का रास्ता बचा है। शीर्ष अदालतों से अगर उनकी सजा पर स्ट्रे मिल जाता है तो उनकी विधायकी बरकरार रहने का निर्णय हो सकता है।
क्या कहता है नियम
लोक प्रतिनिधित्व कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि यदि किसी विधायक या सांसद को दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जाती तो वह अयोग्य घोषित हो जाता है। कोर्ट के आदेश जारी होने की तिथि से ही यह लागू होता है। नियम में यह भी प्रावधान है कि दो साल या उससे अधिक सजा के बाद वह अगले छह साल तक चुनाव भी नहीं लड़ सकता है। निर्वाचन नियम के मुताबिक रिक्त होने वाली सीट की जानकारी विधानसभा सचिवालय द्वारा मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को दी जाती है जिसके बाद यह जानकारी केन्द्रीय निर्वाचन आयोग को दी जाती है। नियमानुसार रिक्त होने वाली सीट पर छह माह के अंदर उपचुनाव कराया जाता है।