समय -समय पर किए जाते रहे हैं बदलाव…
मंगल भारत।मनीष द्विवेदी। सूबे में नई शराब नीति को लेकर मचमच की स्थिति बनी हुई है। दरअसल प्रदेश की कमान जिस नेता के हाथ में रही है, उसकी मंशा के अनरुप शराब नीति में बदलाव कर उसके लागू किया जाता रहा है। फिर चाहे मुख्यमंत्री पद पर दिग्विजय सिंह रहे हों या फिर मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। यह बात अलग है कि इसमें समय-समय पर किए गए बदलावों से सरकार की आय में जरुर अच्छी खासी वृद्धि हुई है। अब एक बार फिर शराब नीति को लेकर कवायद की जा रही है। इसकी वजह है प्रदेश में एक अप्रैल से सरकार नई शराब नीति लागू करने जा रही है। इसके लिए कवायद की जा रही है। इसको लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने मोर्चा खोल रखा है। नई नीति में किए जा रहे प्रावधानों के मुताबिक प्रदेश सरकार के खजाने में सर्वाधिक योगदान देने वाली शराब के दाम एक बार फिर से बढ़ाने की तैयारी कर ली है। यह दाम वृद्धि नई शराब नीति के लागू होने के साथ ही की जा सकती है। दरअसल प्रदेश में नई शराब नीति 1 अप्रैल से लागू हो जाएगी, जिसमें देसी शराब की कीमत दस रुपए तक की और विदेशी शराब की कीमत सौ रुपए तक बढ़ाई जा सकती है।
चुनावी साल में यह अब तक की सबसे कम वृद्धि के रुप में देखी जा रही है। शराब के दामों में होने वाली लगातार वृद्धि की वजह से अब इसके शौकीनों ने शराब की जगह कई जिलों में बीयर की तरफ रुख कर लिया है। इसके बाद भी आबकारी विभाग द्वारा नए वित्त वर्ष के शराब ठेकों को 10 फीसदी अधिक राशि में नीलाम करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। हालांकि इसमें वाणिज्यिक कर विभाग नफा-नुकसान देखते हुए 15 फीसदी तक की वृद्धि करने के पक्ष में है, ताकि इस वित्तीय वर्ष में होने वाली आय में अधिक वृद्धि हो सके। अभी सरकार को इससे 13 हजार करोड़ की कमाई हो रही है। यह बात अलग है कि इस मामले में अंतिम फैसला कैबिनेट में ही किया जाएगा। दरअसल, राज्य सरकार के रेवेन्यू सोर्स में दो बड़े स्त्रोत पेट्रोल-डीजल पर वैट, सेस और शराब की बिक्री पर एक्साइज ड्यूटी व वैट है। दोनों से सरकार को अगले साल में 32 हजार करोड़ का राजस्व मिलना अनुमानित है। अगर इस मामले में अकेले भोपाल जिले की ही बात कर ली जाए तो चालू वित्त वर्ष में सरकार को शराब ठेकों की नीलामी से 884 करोड़ रु. की आय का लक्ष्य है, अगर इसमें दस फीसदी की वृद्धि की जाती है तो भोपाल जिले से ही सरकार को 88 करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व मिल सकता है। गौरतलब है कि फिलहाल प्रदेश में 1061 अंग्रेजी और 2544 देसी शराब की दुकानें चलाई जा रही हैं।
तीन महानगरों में बढ़ा बीयर का चलन
प्रदेश में भले ही हर साल शराब महंगी होती जा रही है, लेकिन इसका असर दिखाई नहीं दे रहा है। इसकी वजह है देशी- विदेशी शराब के साथ ही बीयर की बिक्री में वृद्धि दर्ज होना। इससे सरकार की आय में 860 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। अब तक इस साल सरकारी खजाने में 10,380 करोड़ आ चुके हैं। मप्र में बीयर की बीते साल की तुलना में इस साल 50 फीसदी तक अधिक खपत हुई है। इस मामले में पहले स्थान पर इंदौर हैं, जहां पर 85 फीसदी शौकीनों ने बीयर का मजा लिया है। इसी तरह से अन्य अंचलों के जिलों में भी देसी और अंग्रेजी शराब के साथ ही बीयर की बिक्री में वृद्धि हुई है। उधर, भोपाल में बीयर की बिक्री कम हुई है। भोपाल की तुलना में इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में 70 प्रतिशत ज्यादा बीयर के शौकीन सामने आए हैं, लेकिन भोपाल में बीयर की तुलना में अंग्रेजी शराब के अधिक शौकीन हैं। इस वजह से अंग्रेजी शराब में बीते साल की तुलना में करीब 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
यह हो सकते है नए दाम
अभी 200 एमएल देसी का पौवा 57 रुपए का है जो 60 रुपए तक बिकता है, जो 5 से 10 रुपए तक महंगा हो सकता है। अंग्रेजी में ब्लेंडर प्राइड की बोतल 1250 रु. की है जो 1300 रु., एमडी नंबर-1 550 से 600 रु. और सिवास रीगल 2300 रु. की है, जो 200 रुपए तक महंगी हो जाएगी।
पहले ठेकेदार ज्यादा कमाते थे, अब सरकार
दरअसल, सरकार लाइसेंस फीस के अलावा शराब पर 10 फीसदी वैट भी लिया जाता है। वैट नीलामी के बाद लगता है। इससे सरकार की आय में वृद्धि हुई है। इसके पूर्व शराब की बिक्री में एमआरपी और एमएसपी में 30 से फीसदी तक का अंतर था, जिसमें अंतर की वजह से ठेकेदार को फायदा होता था, लेकिन अब यह अंतर 10 फीसदी किए जाने से ठेकेदारों का मुनाफा कम हुआ है जबकि सरकार का मुनाफा बढ़ गया है।
तमिलनाडु पैटर्न संभावित
नए वित्त वर्ष में प्रदेश में सरकार द्वारा तमिलनाडु पैटर्न लागू किया जा सकता है। इसके तहत वहां देसी शराब की गुणवत्ता अच्छी करने एक्सट्रा न्यूट्रल अल्कोहल मिलाया जाता है। अभी मप्र में न्यूट्रल क्वालिटी का ही अल्कोहल देसी शराब में मिलाते है, जिसकी गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है। इसके अलावा इस बार भी ठेकों से सिंडीकेट को दूर रखा जाएगा। दरअसल प्रदेश में 2004-05 में तत्कालीन सीएम उमा भारती के कार्यकाल में नीलामी टेंडर से हुई, जिससे बड़े ठेकेदारों का सिंडिकेट टूट गया था। इसकी वजह से छोटे ठेकेदारों को मैदान में आने का मौका मिला था। यह व्यवस्था एक साल चली और फिर लॉटरी से दुकानें नीलाम हैं। इसके बाद हर साल परसेंटेज बढ़ाकर नीलामी की जा रही है।