भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। ताल तलैयों के साथ वन-
वन्यजीवों और जल जीवों की प्रजातियों के लिए मशहूर शहर भोपाल अब अपनी पहचान खोता जा रहा है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि अब यह सभी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते नजर आने लगे हैं। इसके बाद भी प्रदेश की राजधानी में अफसर व नेता इस मामले में कुछ करने के लिए सोच तक नहीं पा रहे हैं।
दरअसल राजधानी में सक्रिय भू-माफिया का नेताओं व अफसरों से ऐसा गठजोड़ है कि वो टूटने का नाम ही नही ले पाता हैं। हालात यह है कि तालाब हो या जंगल सभी जगह सीमेंट कंक्रीट का जंगल तेजी से खड़ा किया जा रहा है। यही वजह है कि जंगल की सफाई व पेड़ों की कटाई की वजह से राजधानी में अब प्रदूषण लगातार बढ़ता ही जा रहा है। विकास व सुंदरता के नाम पर हरे भरे पेड़ों का जमकर कत्ल किया जा रहा है और उनकी जगह दिखाने के लिए गैर ऑक्सीजन देने वाले नाम के लिए पेड़ लगा दिए जाते हैं। अगर बीते पांच सालों की बात की जाए तो अकेले शहर में ही हर साल पचास हजार पेड़ों का कत्ल कर दिया जाता है। इस तरह से अकेले पांच साल में राजधानी में ही ढाई लाख पेड़ों का कत्ल कर दिया गया है। इतना नहीं, दस साल पहले शहर में जो ग्रीन कवर 35 फीसदी था अब वह महज नौ फीसदी ही बचा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु (आईआईएससी) के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस की वर्ष 2016 में आई रिपोर्ट में हमें चेताया गया था कि भोपाल शहर का ग्रीन कवर एरिया बेहद तेजी से कम हो रहा है। शहर किनारे 6000 हेक्टेयर से अधिक जंगल का बड़ा हिस्सा स्कूल-कॉलेजों के निर्माण और फार्म हाउस निर्माण के नाम पर खत्म कर दिया गया। बाघ जैसे वन्यप्राणियों के मौजूदगी के बीच चार लेन चौड़ी सडक़ें और रात को जंगल को रोशन करने वाली हाईफ्लड्स लाइट्स लगा दी गई। जिससे उनके लिए प्राकृति रहवास इलाका मुश्किल बनता जा रहा है। इसी तरह से शहर के 11 तालाबों में का 90 फीसदी एरिया पूरी तरह से समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। बेहद चौकाने वाली बात यह है कि सरकार और उसके तमाम महकमे हर साल करोड़ों रुपयों की लागत से लाखों पेड़ लगाने के दावे करते हैं, लेकिन उनकी संख्या बढ़ने की जगह कम होती जा रही है। इसको लेकर भी सरकार कुछ करती नजर नहीं आती है।
सरकार योजनाओं के नाम पर काट डाले हजारों
अगर सरकारी योजनाओं की बात की जाए तो शहर में हजारों की संख्या में हर साल विकास के नाम पर सरकारी महकमे ही पेड़ों का कटवा डालते हैं। शहर में बीआरटीएस कॉरिडोर के नमा पर 2400, सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट के नाम पर 1200, टीटी नगर में स्मार्ट सिटी के नाम पर 4000, शौर्य स्मारक अरेरा हिल में 6000, सिंगारचोली ब्रिज और सडक़ चौड़ीकरण के नाम पर 1000, हबीबगंज स्टेशन के विकास के नाम पर 2500, विधायक विश्रामगृह के निर्माण के नाम पर 1149 पेड़ काट डाले गए।
इन दावों पर सवाल
सरकारी महकमों का दावा है कि उनके द्वारा हर साल हरियाली बढ़ाने व स्वच्छ वायु के लिए लाखों पेड़ लगाए जाते हैं, लेकिन इसके बाद भी पेड़ों की संख्या में तेजी से कमी आती जा रही है जिसकी वजह से सरकारी दावों की पोल खुल जाती है। सरकारी दावों के मुताबिक इस बीच शहर में भोज वैटलैंड प्रोजेक्ट के तहत 18,28,287 सडक़ों व खुली जगहों पर 1,61,571 और शहर के कई अलग-अलग इलाकों में पेड़ लगाए गए हैं। इसी तरह से गैस राहत स्कीम के तहत 1,02,000 , गौतम नगर से सुभाष नगर तक और इनकम टैक्स भवन के सामने 2,500 और अन्य जगहों पर 10,500 पेड़ लगाए गए हैं।