घर बैठे नेताओं को संगठन में जगह देकर सक्रिय करेगी कांग्रेस…
भोपाल/मंगल भारत। विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, इनके पहले असंतुष्ट नेताओं का महत्व बढ़ जाता है। इसी कड़ी में मप्र में कांग्रेस का फोकस अपने असंतुष्ट नेताओं पर है। सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस अपने हर नेता को साधने में जुटी हुई है। विधानसभा चुनाव में नेताओं की नाराजगी भारी न पड़े, इसलिए कांग्रेस असंतुष्ट नेताओं को प्रदेश संगठन में स्थान देकर उन्हें मनाएगी। इसके लिए ऐसे नेताओं को चिह्नित किया जा रहा है, जो संगठन में महत्व न मिलने के कारण नाराज हैं और घर बैठ गए हैं। साथ ही प्रदेश और जिला स्तर पर हुई नियुक्तियों से जो असंतोष पनपा है, उसे थामने के लिए भी प्रदेश सचिव, सह सचिव पद पर नियुक्ति की जा सकती है।
वैसे भी अभी प्रदेश इकाई में केवल उपाध्यक्ष और महामंत्री ही नियुक्त किए गए हैं। चुनावी साल में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का गुट में बंट जाना पार्टी की जीत में कमजोर कड़ी साबित हो सकती है। इसलिए पार्टी सभी नेताओं का साधने में जुट गई हैं। खासकर असंतुष्ट नेताओं को साधने की कोशिश की जा रही है। गौरतलब है कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सभी जिलों में पंगत में संगत कार्यक्रम किए थे। इसमें उन्होंने विभिन्न कारणों से नाराज चल रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं की न केवल सुनवाई की थी बल्कि उन्हें पार्टी हित में काम करने के लिए तैयार भी किया था। साथ ही पार्टी ने नाराज कार्यकर्ताओं को सम्मान देने के लिए प्रदेश इकाई में पदाधिकारी भी बना दिया था। हालांकि, इसके कारण संगठन पदाधिकारियों की संख्या सैकड़ों में पहुंच गई थी, जिसको लेकर भाजपा नेता आज तक कांग्रेस पर तंज कसते हैं। रायपुर में होने वाले अभा कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन से पूर्व एआईसीसी के सदस्यों की सूची प्रकाशित हुई है। इस बार मध्य प्रदेश से 99 सदस्य का चयन किया गया है, जबकि पिछली बार प्रदेश से 135 सदस्य बनाए गए थे। दरअसल, वर्ष 2017 में एआईसीसी से तय संख्या से अधिक ब्लाक स्वीकृत होने की प्रत्याशा में अतिरिक्त सदस्य बना लिए गए थे। इससे संख्या 135 हो गई। इस बार उम्मीद थी कि सदस्यों की संख्या 135 से भी अधिक हो जाएगी और उसी हिसाब से करीब दो सौ नाम भोपाल से दिल्ली भेजे गए, पर एआइसीसी ने मप्र के लिए तय कोटे से अधिक सदस्य नहीं बनाए।
कांग्रेस में मची है कुर्सी की दौड़
विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के अंदर कुर्सी की लड़ाई तेज होती नजर आ रही है। पार्टी सत्ता में आएगी या नहीं ये तय नहीं। लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा इस पर हर क्षत्रप की नजर और दावा है। भावी मुख्यमंत्री को लेकर नेताओं के अलग-अलग सुर सुनाई दे रहे हैं। मप्र कांग्रेस का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बता रहा है। लेकिन दिग्विजय सिंह समर्थक और कमलनाथ विरोधियों को ये बात रास नहीं आ रही है। इसके विरोध में धीरे धीरे नेता इक_े होते जा रहे हैं। अगर कांग्रेस मप्र में विधानसभा चुनाव जीती तो मुख्यमंत्री कौन होगा। इस पर कांग्रेस में मारामारी की स्थिति होने लगी है। नेता अरुण याद के बाद अजय सिंह के बयानों ने पार्टी के अंदर के सियासी पारे को उछाल दे दी है। कांग्रेस नेता अरुण यादव ने सबसे पहले कहा पार्टी में मुख्यमंत्री का चेहरा अभी तय नहीं है।
चुनाव में नंबर आने के बाद पार्टी तय करेगी कि मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा। अरुण यादव के सुर में सुर कांग्रेस नेता अजय सिंह ने भी मिलाए हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कांग्रेस की परंपरा रही है कि सीएम का चेहरा घोषित नहीं होता है। केंद्रीय नेतृत्व और विधायक सीएम चुनते हैं। कोई अपने आप को मुख्यमंत्री नहीं बताता है। पूर्व मंत्री मुकेश नायक कमलनाथ के समर्थन में खड़े नजर आए हैं। नायक ने कहा कमलनाथ निर्विवाद नेता हैं। कमलनाथ अनुभवी नेता हैं पूरी कांग्रेस एकजुट है। कांग्रेस के अंदर मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सवाल उठाने पर पार्टी के अंदर ही हंगामा मचा हुआ है। हालांकि कमलनाथ का कहना है कि मैं किसी पद का आकांक्षी नहीं हूं। मेरा लक्ष्य सिर्फ मप्र के भविष्य को सुरक्षित रखना है। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की अंतर कलह क्या असर दिखाती है अब यह भी देखना दिलचस्प होगा।
पार्टी जोखिम नहीं उठाना चाहती
कुछ दिनों पूर्व अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश उपाध्यक्ष, महामंत्री और जिला इकाइयों के अध्यक्षों की नियुक्ति की थी। इंदौर शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए गए विनय बाकलीवाल के समर्थकों ने इसको लेकर विरोध किया। इसी तरह सागर में भी प्रदर्शन हुआ। खंडवा शहर और ग्रामीण के अध्यक्ष को लेकर शिकायत दिल्ली तक पहुंची और नियुक्ति को रोकना पड़ा। विरोध-प्रदर्शन की स्थिति को देखते हुए संगठन के प्रदेश प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल ने बयान दिया कि यह कोई अंतिम सूची नहीं। इसमें संशोधन भी होगा और इसे विस्तार भी दिया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश इकाई में अभी सचिव, सह-सचिव सहित अन्य पदों पर नियुक्तियां होना बाकी हैं। इसमें उन सभी नेताओं को समायोजित किया जाएगा जो संगठन में उचित महत्व न मिलने के कारण नाराज हैं और घर बैठ गए हैं। चुनाव के समय में पार्टी किसी को भी नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती है, इसलिए प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ भी सभी बैठकों में कहते हैं कि जो नाराज हैं, उन्हें मनाएं। समन्वय बनाकर काम करें। हालांकि पार्टी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि कोई भी असंतुष्ट नहीं है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ के नेतृत्व में सभी आस्था जता चुके हैं। सबकी योग्यता का सम्मान करते हुए उन्हें उचित स्थान भी दिया जाएगा। कांग्रेस के अंदर खींचतान तलाशने वालों को पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने आईना दिखा दिया है। पूरी पार्टी एकजुट होकर चुनाव की तैयारी में जुटी है। हमें पूरा विश्वास है कि कांग्रेस को जन आशीर्वाद मिलेगा।
पिछले चुनावों में कैसे बदला माहौल
गौरतलब है कि पिछले चुनावों के पहले असंतुष्टों के इधर-उधर होने से भाजपा और कांग्रेस ने माहौल को बदला था। पिछले कुछ लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा ने कांग्रेस को बड़े झटके दिए थे जिससे भागीरथ प्रसाद व उदयप्रताप सिंह जैसे नेताओं ने बाजी पलटी थी। इसी तरह खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस के विधायक सचिन बिरला ने मंच पर कांग्रेस से दामन तोड़ लिया था। वहीं, विधानसभा चुनावों में भी भाजपा सांसद व पूर्व मंत्री सरताज सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाते ही सरताज सिंह फिर भाजपा में चले गए थे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह ने भी विधानसभा चुनाव 2018 के ठीक पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया था। पूर्व मंत्री संजय पाठक भी इसी तरह कांग्रेस का साथ छोड़ गए थे तो चौधरी राकेश सिंह की नाराजगी का भी भाजपा ने फायदा उठाते हुए उन्हें अपने साथ ले लिया था। मगर चौधरी राकेश सिंह बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रयासों से विधानसभा चुनाव के पास कांग्रेस में लौट आए थे लेकिन उनके भाजपा में जाते ही चौधरी के मुखर विरोधी अजय सिंह की वजह से काफी समय तक उनकी सदस्यता पर सवाल खड़े होते रहे। प्रदेश में इसी तरह की स्थिति जिलों में भी है। इसलिए कांग्रेस ने असंतुष्ट नेताओं को साधने की कवायद तेज कर दी है।