कांग्रेस-भाजपा परेशान कास्ट पॉलिटिक्स से

जातिवादी राजनीति करने वाली पार्टियों ने बढ़ाई बड़ी पार्टियों की मुश्किल.

द्विदलीय राजनीति वाले मप्र में बिहार और उत्तरप्रदेश की तरह जातिगत राजनीति हावी नहीं रही है। लेकिन पिछले कुछ सालों से प्रदेश का राजनीतिक माहौल बदलने लगा है। जाति और वर्ग के आधार पर राजनीति करने वाली पार्टियों की सक्रियता ने प्रदेश की राजनीति में जातिवाद को इस कदर बढ़ा दिया है की भाजपा और कांग्रेस इसके चक्रव्यूह में फंस गई हैं। अब दोनों पार्टियों का फोकस जातियों और वर्ग को साधन में है। ऐसे में उन्हें डर है की एक को साधने में कहीं दूसरा वर्ग उनसे नाराज न हो जाए। गौरतलब है कि प्रदेश की राजनीति में इन दिनों विधानसभा चुनावों को लेकर गहमा गहमी बनी हुई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां सत्ता में काबिज होने के लिए रणनीति बना रही हैं। दोनों पार्टियां सभी जातियों और क्षेत्रवाद को साधने में जुटी हुई है। इनका सबसे अधिक फोकस एससी-एसटी के साथ ओबीसी की छोटी जातियों पर भी है।
गौरतलब है कि प्रदेश में एससी-एसटी और ओबीसी सबसे बड़े वोट बैंक हैं। एससी और एसटी को साधने के लिए दोनों पार्टियां लगातार प्रयास कर रही है। अब पार्टियां ओबीसी की छोटी जातियों को साधने का अभियान चलाएगी। प्रदेश में हमेशा से ही एससी-एसटी का समीकरण सत्ता की चाबी मानी जाती है। क्योंकि इन दोनों वर्गों के लिए प्रदेश की 36 फीसदी यानी 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। ऐसे में जिस दल को इन वर्गों का साध मिलता है, उसका सत्ता तक पहुंचने का रास्ता आसान हो जाता है। बीते चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों की अधिकतर सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया जिसके चलते कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसलिए इस बार भाजपा एससी-एसटी के साथ ही ओबीसी की छोटी जातियों को साधने की कोशिश में जुट गई है।
भाजपा व कांग्रेस दोनों दबाव में
मप्र की राजनीति में भले ही अभी तक जातिवाद हावी नहीं रहा है, लेकिन इस बार प्रदेश की चुनावी बेला में जातिवाद की हवा तेजी से बह रही है। जातिवादी सियासत करने वाली पार्टियां पैर पसारने लगी हैं और जातियों के आधार पर चुनावी माहौल बनाने लगी हैं। यह पहला मौका है जब एट्रोसिटी एक्ट, पदोन्नति में आरक्षण और आदिवासी हित जैसे विषयों ने जातिवादी संगठन खड़े कर दिए। ये संगठन इसी के दम पर चुनाव लडऩे का दंभ भी भर रहे हैं। अजाक्स (अजा-अजजा कर्मचारियों का संगठन), सपाक्स (सामान्य और ओबीसी वर्ग की संस्था), जयस (आदिवासी युवाओं का राजनीतिक संगठन) और भीम आर्मी की आजाद समाज पार्टी जैसे संगठन विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने के प्रयास में जुटे हैं। ये संगठन भाजपा और कांग्रेस, दोनों पर ही टिकट में भागीदारी करने के लिए भी दबाव बना रहे हैं। वैसे प्रदेश का अब तक का इतिहास देखा जाए तो जातिवादी राजनीति करने वाले दल बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना पार्टी और सवर्ण समाज पार्टी कभी भी सफल नहीं हो पाए पर इस चुनाव में परिदृश्य एकदम बदला हुआ नजर आ रहा है। भोपाल में अब तक करणी सेना, भीम आर्मी और जयस जैसे संगठनों ने भारी तादाद में लोगों को एकत्र कर शक्ति प्रदर्शन किया है। अब तक सामान्य और ओबीसी वर्ग भाजपा के साथ रहा है। इस वर्ग के ज्यादातर वोट भाजपा को ही मिलते हैं, इसकी खास वजह है प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम उमा भारती ओबीसी बिरादरी से हैं। वहीं सामान्य वर्ग से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह जैसे भाजपा के बड़े चेहरे हैं। पर इस वोटबैंक में करणी सेना और सपाक्स जैसे संगठन सेंध लगा सकते हैं। करणी सेना भी चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी है, जिसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। इधर ओबीसी आरक्षण के मसले पर यह वर्ग भी दोनों दलों में बंट गया है। वरिष्ठ भाजपा नेता डा. दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि मप्र के चुनाव हमेशा सरकार के परफारमेंस और विकास पर केंद्रित रहे हैं पर इस बार कांग्रेस ने इसे जातियों और धर्म में बांटने की कोशिश की है। लेकिन जनता इन जातिवादी ताकतों को स्वीकार नहीं करेगी। आने वाले चुनाव में जातिवादी ताकतों की सक्रियता निश्चित ही पिछले चुनाव से ज्यादा दिख रही है, हमें पूरा भरोसा है कि मप्र की जनता इनके छिपे मंसूबों को अच्छी तरह जानती है और चुनाव में वह इन्हें सबक सिखाएगी। मप्र कांग्रेस मीडिया विभाग की उपाध्यक्ष संगीता शर्मा का कहना है कि अब तक की 18 वर्ष की सरकार में भाजपा ने ही जातिवाद का बीज बोने का काम किया है। आज यह जातिवाद इन्हीं के गले की घंटी बन गया है। इन्होंने जातियों में संतुलन बनाकर नहीं रखा। कांग्रेस ने हर वर्ग का ध्यान रखा है कमल नाथ जी ने सभी वर्ग में सामंजस्य बनाकर सभी जाति-धर्म के साथ समानता का व्यवहार किया है। इसलिए कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
जातियों को साधने में जुटी भाजपा
भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि पार्टी ने 51 फीसदी वोट के साथ 200 से अधिक सीटें जीतने का जो टारगेट सेट किया है उसके लिए सभी जातियों और सभी क्षेत्रों में पैठ बढ़ानी होगी। इसलिए एससी-एसटी वर्ग के लोगों को साधने के लिए योजनाओं का लाभ दिलाने के साथ भाजपा का फोकस अब अगले माह से ओबीसी वर्ग पर होगा। इसके लिए भाजपा ने ओबीसी वर्ग की सभी बड़ी और छोटी जातियों के लोगों से संपर्क साधने का कार्यक्रम तय किया है। पार्टी के स्थापना दिवस छह अप्रैल से अंबेडकर जयंती 14 अप्रैल तक इसके लिए ओबीसी मोर्चा के प्रदेश में रहने वाले सभी राष्ट्रीय और प्रदेश पदाधिकारी तथा जिला और मंडल स्तर के पदाधिकारी कम से कम दस गांवों में जाकर संवाद करेंगे। प्रदेश संगठन के निर्देश पर पार्टी के ओबीसी मोर्चा ने जो तैयारी की है उसमें कहा गया है कि ओबीसी के छोटी जाति के जिन लोगों को अब तक आरक्षण का लाभ नहीं मिला है, उन्हें रोहिणी कमीशन के माध्यम से आरक्षण दिलाने के लिए मोर्चा पदाधिकारी और कार्यकर्ता काम करेंगे। केंद्रीय और नवोदय विद्यालयों में ओबीसी को आरक्षण का लाभ दिलाने का काम भी करना है। मोर्चा ने यह भी तय किया है कि ओबीसी वर्ग के जिन अधिकारियों, कर्मचारियों और मजदूरों के विरुद्ध अन्याय हुआ है उन्हें केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में शिकायत कराकर न्याय दिलाने का काम भी करना है। जो जातियां प्रदेश में ओबीसी की सूची में हैं लेकिन केंद्र की सूची में ओबीसी कैटेगरी में नहीं हैं, उनके लिए भी मोर्चा ने आवेदन कराने के लिए काम करने को कहा है। इस दौरान पिछड़ा वर्ग के बड़े सम्मेलनों का आयोजन भी किया जाएगा। ओबीसी वर्ग की बड़ी जातियों को लेकर भी मोर्चा द्वारा कार्यक्रम कराने के लिए क्षेत्र चिन्हित किए जाएंगे।