जातीय संगठन बढ़ा रहे हैं… सियासी दलों की मुश्किलें

सियासी दलों को अब जातीय आधार पर राजनीति करना


मुश्किल भरा लगने लगा है। इसकी वजह है तमाम जातीय संगठनों द्वार अब अपनी ताकत दिखाते हुए भागीदारी देने की मांग करना। दरअसल मप्र देश का ऐसा राज्य रह चुका है जहां, पर बीते कुछ साल पहले तक राजनीति में जातीवाद का कोई महत्व नहीं रहता था, लेकिन अपने सियासी नफा नुकसान के चक्कर में विभिन्न दलों द्वारा जाति आधारित राजनीति को जिस तरह से बढ़ावा दिया गया है उसकी वजह से अब यह बुराई प्रदेश में भी परवान चढ़ने लगी है। यही वजह है कि अब प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में सात माह का समय रह गया है , ऐसे में इसका फायदा अब जातिवादी नेता भी उठाने के लिए पूरी तरह से उतावले हो गए हैं। इसकी वजह से माना जा रहा है कि इस बार चुनाव में जातिवाद का रंग बेहद गाढ़ा रहने वाला है। इसी अंदेशे ने अब खासतौर पर भाजपा व कांग्रेस के रणनीतिकारों को बेहद परेशान कर रखा है। यह बात अलग है कि यह दोनों ही दल बीते कुछ माह से जातियों को खुश करने की कवायद में पूरी ताकत लगाए हुए हैं। इसकी वजह से ही राजनीतिक तौर पर समाज, जातियों का लाभ लेने के लिए सियासी तौर पर पूरे प्रयास किए जाने लगे हैं। इन्ही कारणों से अब सभी जातियों के नेता अपनी-अपनी ताकत दिखाकर सत्ता से लेकर टिकटों तक में भागीदारी की मांग करने लगे हैं। इसका श्रेय भी राजनेताओं को ही जाता है , जो अपने सियासी फायदे के लिए जाति और समाज के नाम पर लोगों को बांटने में लगे रहते हैं। अब तो प्रदेश में हाल यह हो चुके हैं कि सत्ताधारी दल भाजपा हो या मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस, दोनों ही वोट के लिए जातिवाद को जमकर बढ़ावा देने में लगी हुई हैं। सरकार जाति पर आधारित कई आयोगों का गठन कर चुकी है। जिनमें रजक कल्याण बोर्ड, तेलघानी बोर्ड, स्वर्णकार कल्याण बोर्ड, विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड के अलावा बांस विकास प्राधिकरण, माटी कल्याण बोर्ड आदि शामिल हैं। यह बात अलग है कि इन संस्थाओं के पास समाज का भला करने के लिए कुछ होता नहीं है। इसकी वजह है वे सिर्फ सरकार के पास अपनी अनुशंसाएं ही भेज सकती हैं, जिस अमल करना न करना सरकार की मंशा पर निर्भर करता है। यह बात अलग है कि इन संस्थाओं में पदस्थ होने वाले नेताओं पर जरुर सरकारी खजाने को भारी भरकम रकम खर्च करनी पड़ती है।
लगातार हो रहा शक्ति प्रदर्शन
चुनावी साल में समाजों के संगठनों ने सियासी दलों की परेशानी बढ़ा दी है। राजधानी भोपाल में दर्जनभर से ज्यादा समाज चुनावी साल में शक्ति प्रदर्शन या तो कर चुके है या फिर करने वाले हैं। हर समाज का संगठन चुनावों में अपनी भागीदारी के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव बना रहे हैं। कांग्रेस-बीजेपी समाजों का असर देखकर उन्हें महत्व देने का काम कर रही हैं। हर समाज अपने नेताओं के लिए टिकट, आयोग और आरक्षण की या फिर अन्य तरह की मांग कर रहा है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों समाज के संगठनों से बड़े लुभावने वादे कर रही है। बीजेपी सरकार ने तो इस मामले में चार समाजों को साधने के लिए उनके आयोग तक गठित कर दिए हैं। वहीं कांग्रेस भी उनको लेकर सरकार में आने पर उनकी मांगों पर अमल करने के वादे कर रही है।
इस तरह की मांगे
बाबा साहब की जयंती पर अजाक्स ने कांग्रेस बीजेपी से प्रमोशन में आरक्षण मांगा और निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की मांग उठाई। प्रदेश स्तरीय अग्रवाल युवक-युवती परिचय सम्मेल में शामिल हुए पूर्व सीएम कमलनाथ ने सत्ता में आने पर वैश्य समाज को पर्वत प्रतिनिधित्व देने की बात कही। तेलुगु समागम में सीएम हाउस में हुए 400 सामाजिक लोगों ने तीर्थ दर्शन योजना में अपने तीर्थ स्थल और राजनीतिक नियुक्तियों में भागीदारी की मांग की। सेन समाज ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर अपने समाज को वादे के मुताबिक एससी वर्ग में शामिल किए जाने मांग उठाई और समाज को राजधानी भोपाल में सभागार बनाने के लिए मांग रखी। उधर, भोजपुरी समाज ने अपना प्रतिनिधिव कांग्रेस और बीजेपी से मांगा, वही कमलनाथ से मुलाकात कर टिकिट की मांग रखी।
भाजपा व कांग्रेस दोनों दबाव में
मप्र की राजनीति में भले ही अभी तक जातिवाद हावी नहीं रहा है, लेकिन इस बार प्रदेश की चुनावी बेला में जातिवाद की हवा तेजी से बह रही है। जातिवादी सियासत करने वाली पार्टियां पैर पसारने लगी हैं और जातियों के आधार पर चुनावी माहौल बनाने लगी हैं। यह पहला मौका है जब एट्रोसिटी एक्ट, पदोन्नति में आरक्षण और आदिवासी हित जैसे विषयों ने जातिवादी संगठन खड़े कर दिए। ये संगठन इसी के दम पर चुनाव लडऩे का दंभ भी भर रहे हैं। अजाक्स (अजा-अजजा कर्मचारियों का संगठन), सपाक्स (सामान्य और ओबीसी वर्ग की संस्था), जयस (आदिवासी युवाओं का राजनीतिक संगठन) और भीम आर्मी की आजाद समाज पार्टी जैसे संगठन विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने के प्रयास में जुटे हैं। ये संगठन भाजपा और कांग्रेस, दोनों पर ही टिकट में भागीदारी करने के लिए भी दबाव बना रहे हैं। वैसे प्रदेश का अब तक का इतिहास देखा जाए तो जातिवादी राजनीति करने वाले दल बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना पार्टी और सवर्ण समाज पार्टी कभी भी सफल नहीं हो पाए पर इस चुनाव में परिदृश्य एकदम बदला हुआ नजर आ रहा है। भोपाल में अब तक करणी सेना, भीम आर्मी और जयस जैसे संगठनों ने भारी तादाद में लोगों को एकत्र कर शक्ति प्रदर्शन किया है। अब तक सामान्य और ओबीसी वर्ग भाजपा के साथ रहा है। इस वर्ग के ज्यादातर वोट भाजपा को ही मिलते हैं, इसकी खास वजह है प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व सीएम उमा भारती ओबीसी बिरादरी से हैं। वहीं सामान्य वर्ग से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह जैसे भाजपा के बड़े चेहरे हैं। पर इस वोट बैंक में करणी सेना और सपाक्स जैसे संगठन सेंध लगा सकते हैं। करणी सेना भी चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी है, जिसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। इधर ओबीसी आरक्षण के मसले पर यह वर्ग भी दोनों दलों में बंट गया है।