भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। भले ही मप्र गेंहू उत्पादन
के मामले में कई सालों से देश में शीर्ष स्थान पर चल रहा है, जिसके चलते प्रदेश को कृषि क्षेत्र का प्रतिष्ठित कृषि कर्मण पुरस्कार भी कई सालों तक लगातार मिला है। इसके बाद भी विदेशी कृषि तकनीकी का अध्ययन करने विलायत भेजे जाने वाले किसानों को बीते पांच सालों से मौका नहीं दिया जा रहा है। यह हाल तब है जबकि मप्र उत्पादन और उत्पादकता के मामले में देश के पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के बीच जाकर खड़ा हो चुका है। यही वजह है कि मप्र की कृषि क्षेत्र में हासिल उपलब्धियों को केंद्र सरकार द्वारा भी समय-समय पर सराहा जा चुका है। यही वजह है कि कृषि क्षेत्र में आ रहीं नई तकनीकों व उसकी लागत कम करने का अध्ययन करने के लिए प्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा किसानों को विदेश भेजा जाने लगा था , लेकिन बीते पांच सालों से प्रदेश के किसी भी किसान को विदेश जाने का मौका ही नहीं दिया जा रहा है।
यह बात अलग है कि अब तक जो किसान विदेशों में खेती के अध्ययन के नाम पर भेजे गए , उनमें से कितनों ने विदेश तकनीक का फायदा उठाया यह न तो सरकार को मालूम है और न ही अफसरों को। गौरतलब है कि प्रदेश के किसान मामूली खर्चे पर सरकार की मेहरबानी से विलायत घूम आते थे , लेकिन अब इस योजना पर पूरी तरह से अमल बंद सा हो गया है। दरअसल प्रदेश में जब कमलनाथ की सरकार बनी तो इस योजना पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन डेढ़ साल बाद ही उनकी जगह भाजपा की सरकार बन गई , जिसके बाद से माना जा रहा था कि एक बार फिर सरकार प्रतिबंध हटाकर किसानों को विलायत जाने का मौका देगी, लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
इसलिए शुरू की गई थी योजना
यह योजना प्रदेश के प्रगतिशील किसानों के लिए शुरू की गई थी। वे किसान जो कि कृषि उत्पादकता के मामले में अपने गांव, कस्बा और जिले में रोल मॉडल बने हुए हैं, जिन्होंने उत्पादकता के नए मापदंड तय किए हैं, जिससे कि खेती करना उनके लिए बेहद मुनाफे का सौदा साबित हुआ है। ऐसे किसानों को देश के दूसरे राज्यों के प्रगतिशील किसानों के साथ ही वहां अपनाए जा रही आधुनिक तकनीक से रूबरू कराने के लिए उनके भ्रमण की योजना तैयार की गई थी । जिसे अध्ययन यात्रा का नाम दिया गया था। इस तरह जिले के कुछ चुनिंदा प्रगतिशील किसानों को दुनिया भर में कृषि क्षेत्र में हो रहे नवाचार और वहां अपनाई जा रही नई तकनीक से अवगत कराने के लिए विदेश यात्रा की भी योजना बनाई गई थी। योजना लागू होने के कुछ साल तक तो किसानों को इस योजना का फायदा मिला। जिसके तहत उन्हें यूरोपीय देशों के अलावा ब्राजील, अर्जेंटीना आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तक जाने का मौका मिला। हद तो यह रही कि भले ही सामरिक मामलों में भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहट बनी हुई हो लेकिन जब एशिया के देशों में मप्र के किसानों को स्टडी टूर पर भेजने की बारी आई तो सबसे ज्यादा प्रदेश के किसान चीन ही भेजे गए। इसके अलावा इजराइल भी स्टडी टूर के लिए पसंदीदा देश बना रहा।