विधानसभा चुनाव में अब महज छह माह का ही समय रह
गया है। इस बीच एक बार फिर से ओबीसी आरक्षण को लेकर कांग्रेस व भाजपा में तलवारें खींचने लगी हैं। दोनों ही दल के नेता एक दूसरे को ओबीसी विरोधी साबित करने में लग गए हैं। इस मामले में सियासत ऐसे समय की जा रही है जब यह मामला अदालत में लंबित है। दरअसल इस मामले को लेकर दोनों ही दलों की नजर प्रदेश की 52 फीसदी आबादी के मतदाताओं पर लगी हुई है। इन मतदाताओं का जिन्हें समर्थन मिल जाता है, उसकी सत्ता में वापसी हो जाती है। कांग्रेस ने इस मामले को चुनावी मुद्दा बनना तय कर लिया है, जिसकी वजह से भाजपा भी इस मामले में श्रेय लेने में पीछे नही रहना चाहती है। दरअसल प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के मामले को छेड़ने की शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी , जो मामला अब उसके लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। इसकी वजह है इस मामले में भाजपा का पूरी तरह से बीते लंबे समय से कांग्रेस पर हमलावर रहना और इस वर्ग के बीच यह संदेश देना की कांग्रेस की वजह से ही उन्हें 27 फीसदी आरक्षण नहीं मिल पा रहा है। उधर, बीते रोज मप्र कांग्रेस पिछड़ा वर्ग विभाग की बैठक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि हम जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विकास में पिछड़ा वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमारी सरकार ने प्रदेश में पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। यह हमारा वचन था, जो हमने अपने पिछड़े वर्ग के बंधुओं को दिया था, लेकिन भाजपा सरकार अब तक उसे लागू नहीं कर पाई है। मामले में अभी कोर्ट-कचहरी ही चल रही है। विधानसभा चुनाव में अब कम समय बचा है, इसलिए पूरी ताकत से जुट जाएं। उन्होंने कहा कि आप लोगों को पांच महीने और कठिन परीक्षा देना है, फिर आपके साथ न्याय होगा। बैठक में निर्णय लिया गया कि विभाग पूरे प्रदेश में 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने में भाजपा की असफलता को प्रचारित करेगा। संगठन का विस्तार बूथ, सेक्टर और मंडलम स्तर तक किया जाएगा। मतदान केंद्र स्तर पर जनसंपर्क अभियान चलाया जाएगा, जिसमें कमलनाथ सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग के हित में उठाए गए कदमों की जानकारी दी जाएगी।
कांग्रेस पर आरोप
इस पर पलटवार करते हुए नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने विधानसभा में यह संकल्प पारित कराया कि बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव नहीं होना चाहिए और इसके लिए सरकार अध्यादेश तक लेकर आई थी, लेकिन कांग्रेस ने हमेशा की तरह राजनीतिक स्वार्थ में पूरे प्रकरण को अपनी पार्टी के याचिकाकर्ताओं के माध्यम से न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझाकर ओबीसी हितों को कुचलने का काम किया है। मंत्री सिंह ने कहा कि कमलनाथ को बताना चाहिए कि जब जबलपुर हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के लिए सिर्फ तीन परीक्षाओं पर स्टे लगाया था, तब एक साल मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने सारी परीक्षाओं और नियुक्तियों में 27 प्रतिशत की बजाय 14 प्रतिशत आरक्षण देकर ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ अन्याय क्यों किया ?
कमलनाथ ने की थी शुरुआत
इस मुद्दे को सबसे पहले कांग्रेस ने ही उठाया था। 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस की सरकार ने 2019 में कैबिनेट में एक प्रस्ताव पारित कर राज्य में ओबीसी का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का फैसला किया था। जिसे विधानसभा ने सर्वानुमति से मंजूरी भी दी थी। मामला आगे बढ़ता, उससे पहले ही मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाले कुछ छात्रों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। कोर्ट ने स्टे दे दिया। तब से ही मामला कोर्ट के विचाराधीन है।
कांग्रेस ने बनाया था रामजी महाजन आयोग
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि पिछड़ा वर्ग के लिए मंडल कमीशन आने के पहले ही कांग्रेस सरकार ने रामजी महाजन आयोग का गठन किया और 14 प्रतिशत आरक्षण दिया था। कमलनाथ ने साहसिक निर्णय करते हुए 27 प्रतिशत आरक्षण दिया, पर भाजपा सरकार ने न्यायालय में सही तरीके से पक्ष नहीं रखा, जिसके कारण यह 14 प्रतिशत रह गया। पिछड़ा वर्ग विभाग बूथ, सेक्टर और मंडलम स्तर पर कमेटी बनाकर काम करे। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैप्टन अजय सिंह यादव ने कहा कि अनुसूचित जाति- जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक विभाग मिलकर काम करें।
कांग्रेस पर ओबीसी वर्ग के शोषण की साजिश रचने का आरोप
उधर, असेबीसी आरक्षण के मामले में भाजपा ने भी जोरदार ढंग से पलटवार किया है। इस मामले में नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कांग्रेस पर ओबीसी वर्ग के शोषण की नई साजिश रचने का आरोप लगाते हुए कहा है कि भाजपा सरकार में ही ओबीसी वर्ग को संवैधानिक आयोग का दर्जा दिया। त्रिस्तरीय पंचायती राज चुनाव तथा नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने के भाजपा सरकार के फैसलों को कांग्रेस ने जिस तरह अदालतों में उलझाने के हथकंडे अपनाए, उससे सिद्ध हो चुका है कि कांग्रेस ने अपने ओबीसी विरोध की मानसिकता को छोड़ा नहीं है। सिंह ने कहा कि कांग्रेस का इतिहास है कि उसने अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं को कभी शीर्ष और महत्वपूर्ण पदों पर नहीं रखा। कांग्रेस ने मप्र में कभी ओबीसी का मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया और न ही इस वर्ग के किसी लीडर को विपक्ष का नेता बनाया। आज भाजपा सरकार में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से हैं। उन्होंने कहा कि वह कमलनाथ सरकार ही थी, जिसने विधानसभा में 8 जुलाई, 2019 को मप्र लोकसेवा आरक्षण संशोधन विधेयक में यह भ्रामक और असत्य आंकड़ा प्रस्तुत किया कि अन्य पिछड़े वर्ग की मप्र में कुल आबादी सिर्फ 27 प्रतिशत है। यह कांग्रेस का वह असली ओबीसी विरोधी चेहरा है, जो मप्र की विधानसभा के दस्तावेजों में सदैव के लिए साक्ष्य बन गया है।
13 जिलों में सर्वाधिक ओबीसी: चंबल से लेकर बुंदेलखंड और विंध्य अंचल तक में ओबीसी आबादी सर्वाधिक है। इन क्षेत्रों में 13 जिले मुरैना, भिंड, दतिया, शिवपुरी, अशोक नगर, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, पन्ना, सतना, रीवा और सिंगरौली आते हैं। इन जिलों की 61 सीटों में से 40 पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि कांग्रेस 19 सीटों पर काबिज है। जबकि बीएसपी और सपा के पास एक-एक सीट है।