यस एमएलए: भाजपा-कांग्रेस के नए चेहरों पर निगाहें

भोपाल/मनीष द्विवेदी।मंगल भारत। छतरपुर विधानसभा मुख्य


तौर पर भाजपा का गढ़ माना जाता है, लेकिन वर्तमान में यहां पर कांग्रेस से आलोक चतुर्वेदी उर्फ पज्जन विधायक हैं। यह ऐसी सीट है जहां पर भाजपा व कांग्रेस के अलावा तीसरे दल के प्रत्याशी भी जीतते रहे हैं। यह सीट कांगे्रेस के दो दिग्गज नेता विद्यावती चतुर्वेदी और उनके पुत्र सत्यव्रत का गृह शहर है , लेकिन वे धीरे -धीरे अपना प्रभाव खोते रहे जिसकी वजह से कांग्रेस इस सीट पर कमजोर होती चली गई।
बीते चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस विधायक बनने के बाद से इस सीट को वापस भाजपा के पाले में लाने के लिए संगठन पूरा जोर लगा रहा है। परन्तु, जिस तरह से दावेदारों के नाम आ रहे हैं, उसको लेकर माना जा रहा है कि कहीं भाजपा एक बार फिर से गुटबाजी और भितरघात की शिकार न हो जाए। इसकी वजह है इस बार भी इस सीट पर पूर्व मंत्री ललिता यादव और पिछला चुनाव हार चुकीं अर्चना सिंह द्वारा दावेदारी की जा रही है। इन दोनों नेत्रियों के बीच स्थानीय राजनीति में पटरी नहीं बैठती है। इसकी वजह से माना जा रहा है कि पार्टी कहीं किसी नए चेहरे पर दांव लगा सकती है। यह नया चेहरा नंदिता पाठक का बताया जा रहा है, जिससे पार्टी की मंशा जिले के ब्राह्मण वोट साधने की भी है। इनके अलावा पूर्व विधायक उमेश शुक्ला और अशोक दुबे की भी दावेदारी मजबूत बनी हुई है।
इसी तरह से अगर कांग्रेस की बात की जाए तो मौजूदा विधायक चतुर्वेदी से मतदाता खुश नहीें हैं। इसकी वजह है उनकी अपनी कार्यशैली। उन पर इलाके में रेत माफिया से सांठगांठ के आरोप भी लगते रहते हैं। कांग्रेस सरकार में भी उन पर विकास कामों पर ध्यान न देने के आरोप हैं। दरअसल बीते चुनाव में उनकी जीत की वजह रही थी, भाजपा में गुटबाजी और चुनाव में बसपा नेता रहे डीलमणि सिंह बब्बू राजा का साथ मिलना। यह जिले की ऐसी सीट है, जहां पर शहरी मतदाता का अनुपात अधिक है। यहां व्यापारी और व्यापारिक संगठन चुनाव को काफी प्रभावित करते हैं । वर्गवार आधार पर ओबीसी मतदाता अधिक हैं, लेकिन दलित और मुसलमानों की संख्या भी अच्छी खासी है। अगर जातीय गणित देख जाए तो पटेल, अहिरवार, यादव, मुसलमान, ब्राह्मण मतदाता भी प्र्याप्त हैं। इस बार भाजपा अभी से क्षेत्र में कराए गए विकास कामों को गिनाने में लग गई है। दरअसल माना जा रहा है कि लाड़ली बहना योजना, छतरपुर में रेलवे लाइन और शहर में पीने का पानी मिलना भाजपा के पक्ष में जा सकता है तो वहीं जिला मुख्यालय पर खुलने जा रहे मेडिकल कॉलेज और खजुराहो तक बनने वाले फोरलेन को भी भाजपा उपलब्धियों में गिना रही है। इसके उलट मौजूदा विधायक पज्जन चतुर्वेदी का दावा है कि हमारी सरकार 15 माह रही। इस दौरान तेजी से विकास कार्य हुए, उन्हें अपनी जनता के सामने रखेंगे । मैं क्षेत्र में हमेशा सक्रिय रहता हूं। लोगों के सुख-दुख में खड़ा रहता हूं। एक रुपए में भरपेट भोजन कराने का कार्य करके हमने हजारों लोगों को जोड़ा है। मेडिकल कॉलेज का शुरू नहीं हो पाना भाजपा सरकार की असफलता है ।
यह है जातीय गणित
इस सीट के जातीय समीकरण को देखा जाए तो यहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी प्र्याप्त है , जो कांग्रेस के पंरपरागत मतदाता माने जाते हैं। लेकिन हिंदू कई मौके पर एक साथ मतदान करते हैं तो भाजपा की जीत हो जाती है। इस सीट पर ब्राहमण मतदाता 35000, यादव 20000, अग्रवाल 20000 और जैन समाज के मतदाताओं की संख्या 10000 है। यह मतदाता भाजपा का वोटबैंक माना जाता है।
तीन बार चुने गए निगम
छतरपुर विधानसभा सीट उन सीटों में शामिल है, जहां पर तीसरा दल भी मौके -बे मौकों पर अपनी उपसिथति दर्ज कराता रहा है। इस सीट पर मतदाता तीसरे दल के नेता के रुप में जगदंबा निगम को तीन बार विधायक चुन चुके हैं। वे 1977, 85 और 1999 में हुए विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। इसके अलावा इस सीट पर ही सपा प्रत्याशी के रुप में विक्रम सिंह नाती राजा को भी विजय मिल चुकी है।
भाजपा में गुटबाजी
बीते आम चुनाव में भाजपा को इस सीट पर नेताओं के बीच की गुटबाजी की वजह से ही हार का सामना करना पड़ा था। यह गुटबाजी अब भी समाप्त नहीं हुई है। इसकी वजह से अभी से कहा जा रहा है कि अगर पार्टी ने इस मामले में कड़ा कोई निर्णय नहीं लिया तो फिर से कांग्रेस का रास्ता आसान हो जाएगा। जनता नए चेहरे की तरफ देख रही है। एक तरफ सत्ता के खिलाफ महौल है तो कांग्रेस का विधायक होने से उसके खिलाफ भी मूड बदलने की भी संभावना है। यही वजह है कि भाजपा व संघ को इस सीट के लिए काफी माथा-पच्ची करना पड़ रही है।
कम मतों से हुई थी जीत
बीते चुनाव में कांग्रेस भले ही जीती थी , लेकिन यह जीत बेहद मामूली थी। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी की अर्चना गुड्डू सिंह और कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी के बीच मुकाबला हुआ था, जिसमें कांग्रेस को 3495 वोटों से जीत मिली थी। उनके पहले इस सीट पर भाजपा की ललिता यादव विधायक बनकर मंत्री भी रह चुकी हैं। उन्होंने तब कांग्रेस प्रत्याशी आलोक चतुर्वेदी को 2217 मतों से पराजित किया था।