मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। मप्र में विकास की रेस में
बुंदेलखंड सबसे पिछड़ा है। नौकरी की तलाश में आज भी इसी इलाके से सबसे अधिक लोग पलायन करते हैं। स्थानीय स्तर पर खेती को छोड़ दें तो रोजगार का कोई दूसरा साधन नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंड की जनता ने भाजपा पर आंख मूंद कर भरोसा किया था। शायद यही वजह रही कि बुंदेलखंड की 26 में से 18 सीटों पर भाजपा को जीत मिली। भाजपा इस इलाके में अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराना चाहती है। चुनाव से पहले इस क्षेत्र को सरकार ने कई सौगातें दी हैं। लेकिन सवाल उठता है कि जिस तरह क्षेत्र के क्षत्रपों के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ी थी, उससे क्या पार्टी पूरी तरह उबर गई है? अगर कलह से उबर गई है तो क्या इस बार भी पुराना रिकॉर्ड दोहरा पाएगी?
गौरतलब है कि प्रदेश में चुनावी बिसात बिछने के साथ ही बुंदेलखंड क्षेत्र के दिग्गज नेताओं के बीच कलह सामने आने लगी थी। दरअसल पिछले दिनों बुंदेलखंड के दो केंद्रीय मंत्रियों और प्रदेश सरकार के तीन मंत्रियों के बीच का आपसी विवाद सामने आया था। हालांकि सत्ता और संगठन के हस्तक्षेप के बाद तथाकथित तौर पर इनके बीच के सारे मतभेद खत्म हो गए हैं? लेकिन वाकई ये एक हो गए हैं? क्या इनके दिल मिल गए हैं? क्या इस बार भी भाजपा बुंदेलखंड में अपनी जीत का रिकॉर्ड कायम रख पाएगी?
साढ़े तीन साल वर्चस्व की जंग
26 विधानसभा सीटों वाले बुंदेलखंड क्षेत्र में भाजपा कागजों पर काफी मजबूत नजर आ रही है। इसकी वजह है केंद्र के दो और राज्य के पांच मंत्रियों का इसी क्षेत्र से होना। लेकिन इन नेताओं के बीच पिछले साढ़े तीन साल से वर्चस्व की जंग देखने को मिली है। मंत्रियों के झगड़े सुर्खियां बने तो केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल की अफसरों से नाराजगी ने पार्टी के भीतर खदबदाते असंतोष को सतह पर ला दिया था। लेकिन चुनावी बेला में अब सब गले मिलकर एक मंच पर आने लगे हैं तो, कांग्रेस अपने नेताओं के मुकदमे में उलझी रही। पार्टी के दो पूर्व मंत्री और एक पूर्व विधायक जेल गए, जिससे बुंदेलखंड में कांग्रेस का नेतृत्व हांसिए पर चला गया। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दौरों ने उत्साह तो जगाया लेकिन, संगठन को चुनावी जंग के लिए तैयार करना अब भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। उत्तर प्रदेश की तरह मप्र के हिस्से वाले बुंदेलखंड में भी दलबदल दस्तूर की तरह है। कांग्रेस से दलबदल करने वाले दो विधायक भाजपा से जीत गए थे तो पृथ्वीपुर में भी भाजपा ने सपा से आए शिशुपाल यादव को उतारकर सीट जीत ली थी। इस बार इस फॉर्मूले को कांग्रेस भी आजमाने जा रही है। अभी तक 90 प्रतिशत दल बदलने वाले कांग्रेस में ही आए हैं। इनमें गुड्डू राजा बड़ा नाम है। पन्ना से छतरपुर, टीकमगढ़ निवाड़ी तक बड़ी खेप कांग्रेस में आई है। लेकिन, हर बार की तरह दल बदल जीत का मंत्र बनेगा या बोझ यह तो बाद में ही पता चलेगा। सूखा और पलायन बुंदेलखंड का बड़ा अभिशाप रहा है। केन-बेतवा लिंक परियोजना से उम्मीद जगी है, लेकिन अभी इसके पूरा होने में वक्त लगेगा। बेरोजगारी से उपजे पलायन और किसानी के संकट कोर इश्यू नहीं बन पा रहे। कांग्रेस ने खुरई में एक दलित युवक की हत्या को बुंदेलखंड में बढ़ते अत्याचार को मुद्दा बनाने की कोशिश की है।
बुंदेलखंड की सीटों पर है सभी की नजर
इस साल विधानसभा चुनाव होना है जिसकी तैयारियों में भाजपा, कांग्रेस सहित सपा और बसपा लग गई हैं। इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में पिछड़ा इलाका कहा जाने वाला बुंदेलखंड पर सबकी नजर है। एक तरफ जहां कांग्रेस सबसे अधिक उन क्षेत्रों पर ध्यान दे रही है, जहां पिछले चुनाव में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। इसमें बुंदेलखंड क्षेत्र आता है तो वहीं, भाजपा भी यहां की सभी सीटों पर अपना परचम लहराना चाहती है। कमलनाथ सरकार के पतन की पटकथा बुंदेलखंड से ही लिखी गई थी। तब सरकार को समर्थन दे रहे बिजावर के सपा विधायक राजेश शुक्ला और बसपा की पथरिया विधायक रामबाई के अचानक गायब होने और फिर उनके गुरुग्राम के होटल में मिलने की दिलचस्प कहानी तो ध्यान भटकाने की स्क्रिप्ट थी। इसकी आड़ में ही सिंधिया समर्थक विधायकों को इधर-उधर होने का मौका मिला। कांग्रेस राजेश शुक्ला और रामबाई को अपने पाले में लाकर खुशी मना ही रही थी कि सुरखी विधायक गोविंद राजपूत सहित अन्य सिंधिया समर्थक विधायक ऐसे गायब हुए कि फिर दिल्ली में भाजपा के पाले में ही प्रकट हुए। इस इलाके के कांग्रेस के तीन विधायक टूटे तो सरकार ही चली गई। सागर की सुरखी और छतरपुर की बड़ामलहरा सीट दलबदल कर कांग्रेस से छीन ली तो कांग्रेस ने दमोह को बचा लिया। कांग्रेस को बड़ा झटका पृथ्वीपुर पर मिला, जहां के विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन से हुए उपचुनाव में उसे हार मिली थी। सत्ता बदली तो समीकरण भी बदल गए। 26 सीटों वाले बुंदेलखंड में भाजपा ने 2018 में जीती 14 सीटों की संख्या को उपचुनाव के जरिए बढ़ाकर 18 कर लिया था तो कांग्रेस सात पर आ गई।
दिग्गजों के गढ़ में पीएम मोदी मोर्चे पर
भाजपा के पास बुंदेलखंड इलाके में दिग्गजों की फौज है। राज्य सरकार में कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, नरोत्तम मिश्रा, बृजेंद्र प्रताप सिंह और गोविंद सिंह राजपूत आते हैं। वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और वीरेंद्र खटीक का संसदीय क्षेत्र भी इसी इलाके में है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का संसदीय क्षेत्र खजुराहो भी बुंदेलखंड में ही आता है। बुंदेलखंड ही ऐसा अंचल है, जो दो हिस्सों में बंटा हुआ है। जितना मध्यप्रदेश के हिस्से में है कमोवेश यूपी के पास भी उतना भी है। इन दोनों के सियासी परिणाम एक दूसरे पर गहरा असर डालते हैं। यही वजह है कि भाजपा बुंदेलखंड पर खास फोकस कर रही है। महज एक महीने के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो रैलियां इलाके की अहमियत को बताती हैं। अगस्त में पीएम ने संत रविदास के मंदिर की आधारशिला रखी थी अब बीना में भारत ओमान रिफायनरी के विस्तार को हरी झंडी दिखाई है। संत रविदास के जरिए भाजपा की रणनीति मप्र, उप्र के बुंदेलखंड को भी साधने की है। जिस तरह प्रधानमंत्री की रैलियां हो रही हैं, साफ है कि चुनाव का चेहरा भी वही हैं। कांग्रेस दलितों को लेकर सतर्क है यही वजह है कि पीएम के दौरे के कुछ दिन बाद ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सागर में सभा की थी। यह भी दिलचस्प है कि तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2018 के चुनाव अभियान का आगाज सागर से ही किया था।