खाली सरकारी खजाने की वजह से हालात खराब.
मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। मप्र सहित देशभर में यह परंपरा दिन पर दिन बढ़ती जा रही है कि चार साल सरकार में रहने के बाद भी चुनावी साल में राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर देती हैं। इसे ही राजनीतिक भाषा में फ्रीबीज या रेवड़ी कल्चर कहा जाता है। आज यह रेवड़ी कल्चर चुनावी परंपरा बन गई है। यही वजह है कि मप्र में सत्तारूढ़ भाजपा के साथ ही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मुफ्त की घोषणाओं की भरमार कर दी है। खासकर भाजपा सरकार की घोषणाएं चर्चा में है। चुनावी साल में हुईं घोषणाएं सरकार के खजाने पर भारी पड़ रही हैं। गौरतलब है कि मप्र सरकार पहले से ही कर्ज में डूबी हुई है। बजट के मुताबिक सरकार की आमदनी 2.25 लाख करोड़ रुपए है और खर्च इससे 54 हजार करोड़ ज्यादा। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 23 हजार करोड़ की नई घोषणाएं कर चुके हैं। अकेले लाड़ली बहना योजना पर ही सालाना 19 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। ऐसे में सवाल यह है कि इन सबके लिए पैसा कहां से आएगा? चुनाव के बाद जब प्रदेश में नई सरकार बनेगी तो उस पर फ्रीबीज का भार पड़ेगा। नई सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा। ऐसे में सरकार चलाना भारी पड़ सकता है।
चार योजनाओं का भार
प्रदेश सरकार पर सबसे अधिक भार चार योजनाओं का पड़ रहा है। ये वे योजनाएं हैं जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं, किसानों और छात्रों के लिए शुरू कर रखी हैं। लाड़ली बहना योजना मप्र के इतिहास की सबसे महंगी योजना है। जून से इस योजना में 1.25 करोड़ महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए दिए जा रहे थे। अक्टूबर से यह राशि बढ़ाकर 1250 रुपए कर दी गई। अक्टूबर में 1.31 करोड़ महिलाओं के खाते में 1597 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए गए। योजना पर सालाना 19 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे। किसान सम्मान निधि अगस्त में प्रदेश के 87 लाख किसानों को मिलने वाली सम्मान निधि 4 हजार से बढ़ाकर 6 हजार रुपए करने की घोषणा की गई है। इससे सरकारी खजाने पर 1750 करोड़ का सालाना अतिरिक्त बोझ आएगा। मेधावी विद्यार्थियों को लैपटॉप में सरकार ने कक्षा 12वीं के 78,641 छात्र-छात्राओं के खाते में 25-25 हजार रु. ट्रांसफर किए। इससे सरकार पर 196 करोड़ 60 लाख रुपए का बोझ आया। सरकार ने ई- स्कूटी के लिए 120 लाख रुपए और पेट्रोल स्कूटी के लिए 90 हजार रुपए निर्धारित किए हैं। इस पर करीब 79 करोड़ रुपए खर्च हुए। इनके अलावा कर्मचारियों के लिए घोषित योजनाओं का भार सरकार के खजाने पर बढ़ा है। 21,110 पंचायत सचिवों को 7वां वेतनमान देने से सरकार पर सालाना 181 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ा है। 23 हजार रोजगार सहायकों को मानदेय 9 हजार से बढ़ाकर 18 हजार करने से हर साल 274 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ा है। कर्मचारियों का डीए 38 से बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने से खजाने पर सालाना 265 करोड़ रुपए का भार पड़ा है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाने से 271 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है। एक लाख सरकारी पदों पर नई भर्ती से सालाना 3 हजार करोड़ रुपए का खर्च बढ़ा है। 67,910 अतिथि शिक्षकों का मानदेय दोगुना करने से सालाना 565 करोड़ का बोझ पड़ा है। अतिथि विद्वानों का मानदेय 30 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने से हर साल 108 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है।
लगातार बढ़ रहा कर्ज
पिछले तीन-चार महीने में सरकार ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर घोषणाओं की ऐसी झड़ी लगाई की हितग्राहियों की तो बांछें खिल गईं, लेकिन सरकार को खाली पड़े खजाने के बीच इन घोषणाओं को पूरा करने के लिए लोन पर लोन लेना पड़ा। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक छह महीने में बाजार, नाबार्ड और अन्य स्रोतों से 29 हजार 860 करोड़ रुपए का कर्ज लिया। अकेले सितंबर माह में सरकार ने बाजार से 9 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया। सरकार ने आखिरी बार 3 अक्टूबर को 3 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया। खास बात यह कि सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के 12 महीने में करीब 43 हजार करोड़ का कर्ज लिया था। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आमतौर पर वित्त वर्ष के आखिरी महीनों (जनवरी से मार्च तक) सरकार ज्यादा लोन लेती है, लेकिन इस बार चुनावी घोषणाओं को पूरा करने के लिए वित्त वर्ष के शुरुआती महीनों में ही सरकार को बड़ा लोन लेना पड़ा। मौजूदा बजट के मुताबिक सरकार की आमदनी 2.25 लाख करोड़ रुपए है, जबकि खर्च इससे करीब 54 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है। सरकार की ओर से पिछले महीनों में की गई घोषणाओं पर बड़ी राशि खर्च होने के कारण सरकार का हर महीने का खर्च 10 प्रतिशत बढ़ गया है। सरकार का प्रति माह 20 हजार करोड़ का खर्च था, जो जून के बाद से बढक़र 22 हजार करोड़ रूपए प्रति माह के पार पहुंच गया है।
लोक लुभावन घोषणाएं पड़ेंगी भारी
चुनाव के बाद भाजपा या कांग्रेस जो भी पार्टी सत्ता में आए उसे भारी वित्तीय चुनौती का करना पड़ेगा। इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला यह है कि वैसे ही सरकार का हर महीने 2 हजार करोड़ से ज्यादा का खर्च बढ़ गया है। दूसरा, भाजपा और कांग्रेस चुनावी घोषणा पत्र में लोक लुभावन घोषणाएं करने की तैयारी में हैं। इनमें कई घोषणाएं ऐसी होंगी, जिन्हें पूरा करने के लिए सरकार को बड़ी राशि की जरूरत होगी। सरकार पर साल दर साल कर्ज बढ़ता जा रहा है। 31 मार्च, 2022 की स्थिति में मप्र पर 2.95 लाख करोड़ का कर्ज था। वर्तमान में यह बढक़र 3 लाख 40 हजार करोड़ के पार पहुंच गया है। बजट अनुमान के अनुसार 31 मार्च, 2024 तक यह आंकड़ा 3.85 लाख करोड़ होने का अनुमान है। मप्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023- 24 के लिए विधानसभा में 3 लाख 14 हजार 25 करोड़ रुपए का बजट पेश किया था।