विधानसभा चुनाव: बागी बिगाड़ेंगे भाजपा का खेल

कई सीटों पर बागियों ने भाजपा को डाला उलझन में
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मंगल भारत। मनीष द्विवेदी। मप्र विधानसभा के लिए 17 नवंबर को मतदान होंगे। उधर, नामांकन वापसी के बाद अब प्रदेश में चुनावी तस्वीर साफ हो गई है। इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में बड़ी संख्या में बागी और असंतुष्ट मैदान में उतरे थे। भाजपा ने नाम वापसी की मियाद के खत्म होने से पहले बागियों को मनाने की पुरजोर कोशिश की। खुद केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रदेश के बड़े नेताओं को इस काम में लगाया था। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने एक-एक बागी नेता को फोन कर या मिल कर समझाने की कोशिश की। इनमें से कुछ को मनाने में कामयाब रहे लेकिन कुछ अब भी मैदान में डटे हुए हैं।
वैसे तो हर चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज नेता चुनावी मैदान में कूदते हैं और इनमें कई तो बाजी मार भी लेते हैं। लेकिन एक बात तो पक्की है कि वे अपनी-अपनी पूर्व पार्टियों को नुकसान जरूर पहुंचाते हैं। इस बार के चुनाव में कई ऐसी सीटें हैं जहां भाजपा के बागियों ने पार्टी प्रत्याशी को उलझा दिया है।
इन सीटों पर फंचा पेंच
भाजपा के बागियों के कारण जिन सीटों पर पेंच फंसा हुआ है उनमें से एक है बुरहानपुर। यहां से भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद नंद कुमार चौहान नंदू भैया के बेटे हर्षवर्धन सिंह निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं। हर्षवर्धन ने 2019 में खंडवा लोकसभा का टिकट मांगा था, लेकिन नहीं मिला। हर्ष की ताकत उनके पिता की विरासत है। इसका असर स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों के इस्तीफे से दिख रहा है। यहां भाजपा से पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस और कांग्रेस से मौजूदा विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा मैदान में हैं। वहीं सीधी में भी बागी भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। सीधी पेशाब कांड की आंच विधायक केदारनाथ शुक्ला पर भी आई थी। आरोपी उनका समर्थक था। भाजपा ने उनका टिकट काट दिया। नाराज शुक्ला निर्दलीय लड़ रहे हैं। आरोपी के घर बुलडोजर चलाने से ब्राह्मण समाज ने नाराजगी जताई थी। यहां ब्राह्मण वोटर निर्णायक हैं। इसे देखते हुए भाजपा ने सांसद रीति पाठक को उतारा, लेकिन यहां कांटे का मुकाबला है। बड़वारा (कटनी)में पूर्व मंत्री मोतीलाल कश्यप की बगावत से भाजपा के समीकरण बिगड़ गए हैं। कश्यप मांझी समाज के बड़े नेताओं में शामिल हैं। मुरैना सीट पर गुर्जर उम्मीदवारों की भिड़ंत है। भाजपा ने रघुराज कंषाना को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने 2013 का चुनाव हार चुके दिनेश गुर्जर को मौका दिया है। भाजपा से दावेदारी कर रहे राकेश सिंह गुर्जर बसपा के टिकट पर मैदान में हैं। राकेश के पिता पूर्व आईपीएस अफसर रुस्तम सिंह भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। भिंड में 2018 के चुनाव में बसपा से विधायक बने संजीव सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे। पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया वे फिर बसपा के टिकट पर मैदान में हैं। भाजपा ने नरेंद्र सिंह कुशवाहा को टिकट दिया है। 2018 में कुशवाहा सपा से लड़े थे और तीसरे नंबर पर रहे थे। कांग्रेस ने 2018 में भाजपा प्रत्याशी रहे राकेश सिंह चतुर्वेदी को उम्मीदवार बनाया। यहां दलबदल और जाति बड़ा मुद्दा है। सतना सीट पर ब्राह्मण वोट सबसे ज्यादा हैं। भाजपा और कांग्रेस ने टिकट देते वक्त ब्राह्मण समाज का ध्यान नहीं रखा। शिवा रत्नाकर चतुर्वेदी बसपा के कोर वोटरों के साथ इस नाराज ब्राह्मण वोट को एकजुट कर रहे हैं। राजनगर (छतरपुर)में घासीराम पटेल साडा के अध्यक्ष और भाजपा जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। बगावत कर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सीट पर 40 हजार से ज्यादा पटेल वोटर हैं। कांग्रेस ने मौजूदा विधायक विक्रम सिंह नातीराजा पर फिर से दांव लगाया है। घासीराम ने भाजपा में अपने समर्थकों और पटेल वोटरों का ध्रुवीकरण कर लिया तो उलटफेर कर सकते हैं। सेमरिया (रीवा) में भाजपा से विधायक रहे अभय मिश्रा टिकट मिलने से दो दिन पहले कांग्रेस में शामिल हुए। 2018 में भाजपा के केपी त्रिपाठी ने कांग्रेस के त्रियुगी नारायण शुक्ला को महज 7 हजार 776 वोटों से हराया था। इस बार भाजपा ने केपी त्रिपाठी को फिर उतारा है। देवतालाब में भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रहे पद्येश गौतम अब कांग्रेस के टिकट पर उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला अपने चाचा और विस अध्यक्ष गिरीश गौतम से है। अब ये 3 दिसंबर को ही पता चलेगा कि बागियों के मैदान में उतरने से भाजपा को कितना नुकसान होता है।

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