इस बार टूटा 6 दशक का रिकॉर्ड.
मप्र में इस बार प्रदेश के 5 करोड़ 60 लाख से ज्यादा मतदाताओं में से 76.22 प्रतिशत वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर 66 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इस रिकॉर्ड वोटिंग को लेकर तरह-तरह के कयास लगाया जा रहे हैं। भाजपा अपनी जीत तो कांग्रेस अपनी जीत का दावा कर रही है। लेकिन वोटिंग प्रतिशत क्यों बढ़ा है इस पर कोई स्पष्ट बात नहीं कर पा रहा है। वोट प्रतिशत बढऩे से राजनैतिक पंडितों का आंकलन गड़बड़ा गया है। वे इस बात से हैरान है कि वोट बढऩे का वजह लाड़ली यहना योजना मानी जाए या फिर पुरानी पेंशन योजना और यूथ को लेकर कमलनाथ के वायदे को माना जाए। गौरतलब है कि प्रदेश में साल 1957 में हुए पहले चुनाव में सिर्फ 37.17 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। वहीं 2023 में यह रिकार्ड 76.22 प्रतिशत पहुंच गया। यानी 66 सालों में करीब 39 प्रतिशत मतदान बढ़ा है। बढ़े मतदान को देखकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपनी-अपनी जीत का दावा किया है। लेकिन बंपर मतदान से कांग्रेस में अधिक उत्साह है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पिछले 4 चुनावों से ‘जादुई नंबर’ यानी 116 का आंकड़ा पाने के लिए तरस रही कांग्रेस का सूखा दूर होगा। मप्र की 16 वीं विधानसभा के चुनाव में बहुमत के लिए लड़ाई इतनी कड़ी हो गई कि मतदान होते-होते समर्थकों के साथ-साथ कई सीटों पर प्रत्याशियों में बहस और लड़ाई तक हो गई। एफआईआर भी हो गई। लड़ाई करो या मरो की तरह नजर आई। इसके बावजूद सबसे बड़ा सवाल यही है कि चार चुनावों से जिस जादुई संख्या 116 के लिए कांग्रेस तरस रही है, वह इस बार हासिल कर पाएगी? या भाजपा सत्ता में लौट आएगी? कांग्रेस के एक जिम्मेदार नेता ने कहा, पार्टी सत्ता में प्रचंड बहुमत से आ रही है। भाजपा एक बड़े नेता की मानें तो संगठन के आंतरिक विश्लेषण में सामने आया है कि पार्टी 121 सीटों के साथ वापसी कर रही है।
कहीं आयोग का प्रयास तो नहीं
राजनैतिक विश्लेषक का कहना है कि पोलिंग प्रतिशत बढ़ा है, इसने पुराने अनुमान पर सवाल उठा दिए है। इसकी वजह यह है कि मतदान 2 प्रतिशत बढ़ने से सवाल खड़े हो रहे है कि क्या यह बढ़ा प्रतिशत सरकार की नाराजगी या कांग्रेस के वादों मेर भरोसा है, अथवा वर्तमान की लाड़ली बहना योजना का असर है या फिर कांग्रेस के वायदे पर भरोसा नहीं है। यही कारण है कि कोई भी नतीजों पर नहीं पहुंच पा रहा है कि, किसकी सरकार बनने वाली है। भारत निर्वाचन आयोग के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत बढ़े हुए प्रतिशत की वजह आयोग के प्रयास को बता रहे हैं, जिसने स्वीप अभियान के जरिए लोगों में जागरुकता फैलाई और वे बोट डालने मतदान केन्द्रों तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि इसे लोकतंत्र की जीत के रुप में देखना चाहिए। वर्ष 2018 में भी चौकाने वाले परिणाम सामने आए थे, तब भाजपा का वोट प्रतिशत कांग्रेस से ज्यादा था, लेकिन उसे 56 सीटों का नुकसान हुआ था। उस चुनाव में भाजपा को 41.2 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत ही वोट हासिल हो पाए थे। कांग्रेस ने 2013 के मुकाबले चार फीसदा ज्यादा वोट लेकर 56 सीटों के फायदे पर रही थी। उसके 114 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, और ज्यादा वोट लेने के बाद भी भाजपा के 109 विधायक ही जीत पाए थे।
मतदान प्रतिशत क्यों बढ़ा…?
गौरतलब है कि मप्र में पिछले कुछ चुनावों से लगातार मतदान प्रतिशत में वृद्धि हो रही है। 2018 से पहले तक वोटिंग प्रतिशत बढऩे का लाभ भाजपा को मिलता रहा है, तो 2018 में अधिक वोट पाने के बाद भी सरकार कांग्रेस ने बनाई थी। ऐसे में राजनैतिक पंडित मतदान से पहले अपने-अपने तरह से समीकरण सामने ला रहे थे। लेकिन इस बार लगभग 2 प्रतिशत वोट बढऩे से इन विश्लेषकों का आंकलन गड़बड़ा गया है। सवाल खड़ा हो रहा है कि जो मतदान का प्रतिशत बढ़ा है, क्या लाडली बहना योजना की वजह से महिलाएं वोट डालने निकली और उन्होंने पिछले चुनाव से ज्यादा इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग किया या फिर पुरानी पेंशन बहाली को लेकर कमलनाथ के वायदे पर भरोसे के चलते वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ है। जो राजनीति के जानकर पहले दावा कर रहे थे कि बेरोजगारी की वजह से प्रदेश का युवा नाराज है, तो क्या यह माना जाए कि यूथ की नाराजगी की वजह से वोट प्रतिशत में वृद्धि हुई है या फिर हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी या रोजगार देने भाजपा के संकल्प की वजह वृद्धि का कारण बना है। कांग्रेस की 100 यूनिट बिजली बिल साफ और 200 यूनिट हाफ बिल के कयदे ने जनता को वोट डालने घर से बाहर निकाला है या फिर 450 रुपए में उज्जवला योजना की हितग्राही को ईंधन गैस रिफिल करने की वजह से वोटर मतदान केंद्र पहुंचे है। यह ऐसे सवाल है जिसने अब तक सबको भ्रमित कर दिया है। कोई भी जानकार इस वोट प्रतिशत को लेकर दावा नहीं कर पा रहा है कि आखिर 3 दिसम्बर को किसके नंबर ज्यादा होंगे।
इस चुनाव में प्रमुख फैक्टर
सत्ता विरोधी रुझान कई जगह सामने आया। भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी थी तो उधर, कांग्रेसी आक्रामक नजर आयी। भाजपा का सीएम चेहरा सामने न रखना कई लोगों को पसंद नहीं आया। यह बात अलग है कि प्रदेश के सभी अंचलों में पार्टी ने सीएम पद के दावेदार चेहरों को उतार कर अच्छी चाल चली है, लेकिन उसका असर कितना हुआ , यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चल सकेाग। भाजपा की सबसे बड़ी उम्मीद लाडली बहना योजना ही नजर आई। इस योजना की वजह से ही महिलाएं भाजपा के साथ दिखीं। अन्य किसी मुद्दे में ऐसी अपील नहीं दिखी। महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत ज्यादा सामने आया है। भाजपा इसे अपने पक्ष में मान रही है। कर्मचारी पुरानी पेंशन के कांग्रेस वादे से प्रभावित दिखे। मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया। वर्ष 2003 से हर चुनाव में मत प्रतिशत बढ़ा है। 2018 के चुनाव को छोड़ हर बार इसका फायदा सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में गया। पिछले चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस को पांच सीटें ज्यादा मिलीं लेकिन वोट ज्यादा भाजपा को मिले थे। विश्लेषक बता रहे हैं कि इस बार सामान्य वोट बढऩा तो कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है लेकिन यदि उनमें महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ा तो इसका फायदा भाजपा के पक्ष में जाने का अनुमान है। भाजपा मीडिया विभाग के प्रमुख आशीष अग्रवाल का कहना है कि बढ़ा हुआ प्रतिशत गरीब की जिंदगी बदलने वाली योजनाओं और लाड़ली बहना, बेघरों को घरों में बसाने पर मिलने वाले आशीर्वाद और एमपी के मन में मोदी, मोदी के मन में एमपी अभियान का परिणाम है। भाजपा ने जनता से जो कहा वो वायदे पूरे किए। पीसीसी चीफ कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पियूष बबेले का कहना है कि जनता भाजपा के झूठे वायदे से त्रस्त आ चुकी है, इसलिए वह वोट डालकर अपनी नाराजगी का इजहार कर रही है। यह बढ़़ा प्रतिशत बदलाव का संकेत है।