रीवा सीट पर फिर से त्रिकोणीय मुकाबला

विजेता तय करेंगे अजा-जजा और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता.

भोपाल/मंगल भारत। भाजपा का गढ़ बन चुके रीवा संसदीय सीट पर पिछली बार की ही तरह इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनी हुई है। भाजपा ने लगातार तीसरी बार जर्नादन मिश्रा पर विश्वास जताया है , तो कांग्रेस ने नीलम मिश्रा पर दांव लगाया है। वहीं बसपा ने एक नौजवान और नए चेहरे पर अपना भरोसा जताया है। बसपा ने अभिषेक पटेल को अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए चुनावी मैदान पर उतारा है। वैसे तो इस बार रीवा में लोकसभा का चुनाव भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच ही है, लेकिन अगर बात की जाए पूर्व में हुए लोकसभा चुनाव की तो अक्सर जनता चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है। पूर्व में हुए चुनावों पर अगर गौर किया जाए तो कांग्रेस भाजपा के साथ ही बसपा का पलड़ा भी भारी रहा है। कई बार के हुए चुनाव में चौंका देने वाले परिणाम भी आए। 1991 में बसपा ने रीवा संसदीय सीट का सारा समीकरण ही बिगाड़ दिया था। चुनाव हुए परिणाम आए और सम्पूर्ण भारत में बसपा ने रीवा संसदीय सीट से अपना खाता खोल लिया। जिसमें बासपा प्रत्याशी भीम सिंह पटेल रीवा संसदीय सीट से निर्वाचित हुए थे।
कभी समाजवादियों का गढ़ रहा रीवा लोकसभा अब भाजपा का गढ़ बन गया है। पिछले दो बार से यहां से भाजपा के जनार्दन मिश्रा चुनाव जीत रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी के पुत्र स्वर्गीय सुन्दर लाल तिवारी व पोते सिद्धार्थ तिवारी को चुनाव में पटकनी दी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी को जितने मत मिले थे, उससे अधिक मत से जनार्दन मिश्रा चुनाव जीते थे। भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा को 583769 मत मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी को 270961 मत मिले थे और भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा 312808 मतों से चुनाव जीते थे। बसपा सहित अन्य प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। लेकिन इस बार चुनावी मुकाबला एकतरफा नहीं दिख रहा है। बसपा ने युवा उम्मीदवार उतारकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
भाजपा मजबूत स्थिति में
सोलह लाख से अधिक मतदाता वाले रीवा लोकसभा में 26 अप्रैल को मतदान होगा। वहां मुख्य मुकाबला भाजपा प्रत्याशी व सांसद जनार्दन मिश्रा तथा भाजपा से सेमरिया से विधायक रही कांग्रेस उम्मीदवार नीलम मिश्रा के बीच है। कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी सेमरिया विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले हैं। नीलम मिश्रा के पति अभय मित्रा सेमरिया से कांग्रेस विधायक हैं। विधानसभा चुनाव परिणाम पर यदि नजर डाले ती आठ विधानसभा में सात विधानसभा रीवा, गुड़, देवतालाब, मनगंवा, मऊगंज, त्योथर व सिरमौर से भाजपा के विधायक है। कांग्रेस के कब्जे में एकमात्र विधानसभा सेमरिया है। लोकसभा के चुनाव परिणाम विधानसभा की तरह होंगे, यह कहना जल्दवाजी होगा। इसका प्रमुख कारण दो बार के सांसद जनार्दन मिश्रा के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी है। उन्होंने जनता से जो वायदे किए थे, वह पूरे नहीं किए। दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी महिला होने के साथ पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही है। इस कारण उनके खिलाफ कोई एंटी इंकम्बेंसी नहीं है। कहा यह जा रहा कि यहां पर मुकाबला जनार्दन व नीलम मिश्रा के बीच नहीं, बल्कि जिले के प्रतिद्वंदी उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला व विधायक अभय मिश्रा के बीच है।
जातीय समीकरणों को साधने पर जोर
जातीय समीकरण की दृष्टि से देखा जाए तो संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाता ब्राह्मण समाज के हैं। इसी कारण दोनों प्रमुख दलों भाजपा व कांग्रेस ने ब्राह्मण समाज के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। ब्राह्मण के बाद ओबीसी, अनुसूचित जाति जनजाति तथा राजपूत मतदाता हैं। बसपा प्रत्याशी अभिषेक पटेल कुर्मी समाज से है, जिसके मतदाता भी काफी तादाद में है। बसपा प्रत्याशी को अनुसूचित जाति के मतदाताओं का समर्थन मिलता है। ऐसी स्थिति में पटेल को छोडक़र अन्य पिछड़ा वर्ग, कोल व अन्य आदिवासी समाज तथा राजपूत मतदाताओं का रुख तय करेगा कि रीवा का सांसद कौन होगा। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव के पहले रीवा जिले के त्योधर में कोल समाज के मंदिर व उनकी जागीर कोलगवी के जीर्णोद्धार, शबरी माता का मंदिर, बिरसा मुंडा की मूर्ति, आवासीय कोचिंग संस्थान, संग्रहालय आदि बनाने की घोषणा की थी। जिसमें अभी बहुत काम बकाया है। कोल समाज के विकास हेतु लंबे समय तक काम करने वाले तत्कालीन भाजपा नेता देवेन्द्र सिंह अब बसपा में है। ऐसे में कोल समाज का बड़ा वोट बैंक किधर जाएगा कहना मुश्किल है। कोल समाज के मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कांग्रेस की तरफ से पूर्व विधायक रामगरीब कोल तथा भाजपा की तरफ से जिला पंचायत अध्यक्ष नीता कोल पूरा जोर लगा रहे हैं।